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महाराजा अग्रसेन महोत्सव। सजी सुंदर रंगोली, मिले पुरस्कार

महाराजा अग्रसेन महोत्सव। सजी सुंदर रंगोली, मिले पुरस्कार


सागर ।अग्रवाल समाज सागर द्वारा आयोजित महाराजा अग्रसेन महोत्सव  में रंगोली सजाओ प्रतियोगिता में अंजली अग्रवाल प्रथम,मुस्कान अग्रवाल दितीय,अथर्व अग्रवाल ने तृतीय दुख दिए अग्रवाल ने तृतीय स्थान प्राप्त किया ।
       ग्रुप अ में रंगोली स्वाति अग्रवाल प्रथम ,अनुजा अग्रवाल द्वितीय मोनिका अग्रवाल तितीय रही,चित्रकला प्रतियोगिता में वर्ग अ में मिशिका अग्रवाल प्रथम, नव्या पोद्दार द्वितीय ,गौरांशी अग्रवाल ने तृतीय स्थान प्राप्त कियाम
 चित्र कला वर्ग ब में अनुष्का प्रथम,यशवी अग्रवाल द्वितीय एवं केशव अग्रवाल ने तृतीय स्थान प्राप्त किया ।गिफ्ट पैकिंग प्रतियोगिता में प्रणव अग्रवाल प्रथम कृष्णा अग्रवाल द्वितीय ,वानिशी पोद्दार ने तृतीय स्थान प्राप्त किया 
थाली सजाओ प्रतियोगिता में पारुल अग्रवाल बरखा अग्रवाल प्रथम ,सुनीता अग्रवाल खुशबू अग्रवाल ने द्वितीय,रोशनी अग्रवाल एवं रानी अग्रवाल ने तृतीय स्थान प्राप्त किया 
         कलश सजाओ प्रतियोगिता में मोनिका अग्रवाल प्रथम,सेजल अग्रवाल द्वितीय एवं दिशा अग्रवाल तृतीय स्थान प्राप्त किया दोपहर के कार्यक्रम के प्रारंभ में अग्रवाल महिला मंडल की वरिष्ठ सदस्य श्रीमती शशिकांत अग्रवाल एवं सुनीला अग्रवाल जी ने महाराज अग्रसेन जी के चित्र पर दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की शाम के समय महाराजा अग्रसेन जी की 5143 जयंती पर महाराजा अग्रसेन जी की आरती पूजन किया गया ।जिसमें समाज के सभी वरिष्ठ जन महिला पुरुष एवं स्वजातीय बंधुओं उपस्थित रहे।
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भाषा विमर्श"।चर्चित अँग्रेजी लेखक हिमांशु राय के दो उपन्यासों पर चर्चा

"भाषा विमर्श"।चर्चित अँग्रेजी लेखक हिमांशु राय के दो उपन्यासों पर चर्चा

सागर।  श्यामलम् संस्था ने अपने नये  कार्यक्रम "भाषा विमर्श" की शुरुआत की। आदर्श संगीत महाविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में  सागर के युवा चर्चित अँग्रेजी लेखक हिमांशु राय के दो उपन्यासों पर चर्चा से की गई।
       इस अवसर पर कवि व लेखक डा.मनीष झा ने उपन्यास 'आई एम आलवेज़ हिअर विथ यू' पुस्तक की समीक्षा करते हुए पुस्तक का सार श्रोताओं को बताया तथा कहा कि यह पुस्तक एक प्रेम कहानी होते हुए भी प्रेम के एक अन्य पक्ष पिता और पुत्र के प्रेम को गहराई से उकेरती है। साथ ही जीवन के बाद के जीवन का विमर्श भी इस पुस्तक की खासियत है।
     डा. हरीसिंह गौर वि.वि.सागर में भाषा संकाय की डीन प्रो.निवेदिता मैत्रा ने पुस्तक "माई म्यूट गर्ल फ्रेंड" पर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे उपन्यास रचे जाने चाहिए जिनमें प्रेम के इस निर्मल स्वरूप को वर्णित किया गया हो तथा मानसिक रूप से स्वस्थ तथा नैतिक रूप से श्रेष्ठ हो। उन्होंने भारत में अंग्रेजी उपन्यासों के इतिहास पर प्रकाश डाला।
          कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित पुस्तकों के लेखक  हिमांशु राय ने सागर में बिताए दिनों को सप्रेम याद किया। उन्होंने कहा कि उनका उपन्यास 'माय म्यूट गर्ल फ्रेंड' एक आत्मकथ्यात्मक उपन्यास है, तथा सागर की पृष्ठभूमि में घटित वास्तविक घटना पर आधारित है। उन्होंने अपने आगामी उपन्यासों के बारे में भी विस्तार पूर्वक जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि हिमांशु के 4 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें से सर्वाधिक चर्चित उपन्यास माई म्यूट गर्लफ्रैंड का हिन्दी अनुवाद भी "प्यार तो होना ही था" नाम से प्रकाशित हो चुका है।
        कला समीक्षक तथा ललित कला मंडल सागर के अध्यक्ष  मुन्ना शुक्ला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि प्रेम संसार की दिव्यतम अनुभूति है, जिसे त्याग की वृत्ति से ही पाया जा सकता है। इसमें लक्ष्य भी प्रेम है और प्राप्ति भी प्रेम है। इस अनुभूति को उपन्यासकार हिमांशु राय ने अद्वितीय अभिव्यक्ति देकर एक अप्रतिम उपन्यास रचा है।
           कार्यक्रम का प्रारंभ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती व लेखक हिमांशु राय के माता-पिता स्व.प्रफुल्ल राय तथा स्व.मीरा राय के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।गायक शिवरतन यादव ने सरस्वती वंदना की।श्यामलम् अध्यक्ष उमा कान्त मिश्र ने स्वागत उद्बोधन व कार्यक्रम परिचय दिया।डा.अलका सिद्धार्थ शुक्ला ने प्रभावी संचालन किया।आभार श्यामलम् के कार्यकारिणी सदस्य रमाकांत मिश्र ने माना।
    लेखक से विमर्श में डा.जीवनलाल जैन, डा.चंचला दवे, प्रो.उदय जैन,डॉ.शरद सिंह, डा.अरविंद गोस्वामी,आशीष ज्योतिषी,डा. श्याममनोहर सीरोठिया, डा.आशुतोष गोस्वामी, टी.आर.त्रिपाठी ने भी अपनी बात रखी जिनका लेखक हिमांशु राय ने समुचित समाधान किया।
           इस अवसर पर शुकदेव प्रसाद तिवारी, के.के. सिलाकारी, डा.दिनेश अत्रि,डा.आशुतोष मिश्र, डा.आशीष द्विवेदी,डा.अभिषेक ऋषि, पी.आर. मलैया,डा.ऋषभ भारद्वाज,वीरेंद्र प्रधान, डा. रामरतन पाण्डेय,प्रदीप पाण्डेय, डा.कविता शुक्ला,सोना राय, सरोज तिवारी, दीपा भट्ट, वन्दना खरे, अर्चना श्रीवास्तव,हरी शुक्ला,कुंदन पाराशर, कपिल बैसाखिया, आर.के. तिवारी, गोवर्धन पटैरिया,डा.जी.आर. साक्षी,हरीसिंह ठाकुर, डा.विनोद तिवारी,मुकेश निराला, अशोक गोपीचंद रायकवार, रमेश दुबे, एम. शरीफ, दामोदर अग्निहोत्री,डा.दिनेश साहू, मितेन्द्रसिंह सेंगर,नवनीत धगट,अमित आठिया,दामोदर चतुर्वेदी, सिद्धार्थ शुक्ला, आर.के.चतुर्वेदी, मुकेश तिवारी,भगवान दास रायकवार, पुष्पदंत हितकर,राधाकृष्ण व्यास,अमीस साक्षी सहित बड़ी संख्या में बौद्धिक वर्ग की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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"श्राद्ध पक्ष की वैज्ञानिकता" पर हुई परिचर्चा



"श्राद्ध पक्ष की वैज्ञानिकता" पर हुई परिचर्चा

सागर । भारतीय शिक्षण मण्डल, महिला प्रकल्प सागर  की "श्राद्ध पक्ष की वैज्ञानिकता" पर परिचर्चा आयोजित की गई।विषय की  चर्चा प्रवर्तक श्रीमती हंसमुखी चतुर्वेदी ने कहा कि हिन्दू संस्कृति में प्रति आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की पहली तिथि से अमावस्या तक 15 दिनों तक श्राद्धपक्ष चलता है जो मानव द्वारा अपने मृत सम्बन्धियों के प्रति किया जाता है यह  'श्राद्ध' शब्द श्रद्धा से निर्मित रूप है । श्रद्धा का यह रूप श्रत् + धा धातु से बना है। श्रत्=सत्यम/ धा=दधाति अर्थात् -- सत्य को धारण करने वाली क्रिया का ही नाम श्रद्धा है।श्राद्ध का वेदों, स्मृतियों, पुराणों, उपनिषदों रामायण महाभारत सभी धर्म ग्रंथों में वर्णन है।परिचर्चा अदिति मण्डल की   संयोजक -श्रीमती  सुधा जैन जी के यहां  आयोजित की गयी।

        परिचर्चा में डॉ सरोज गुप्ता ने कहा कि स्वामी दयानंद जी ने भी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में  श्राद्धपक्ष की वैज्ञानिकता का उल्लेख किया है।हमारी संस्कृति में  गतिविज्ञान, मृत्युविज्ञान , परलोक ,पुनर्जन्म एवं मोक्ष, जन्मान्तर रहस्य आदि पर कई पुस्तकें हैं जो हमें अपने ही स्वरुप, चितिशक्ति ,जन्म मृत्यु के रहस्यों की जानकारी देती हैं। आज हमारा ज्ञान अत्यन्त सीमित हो गया है। पढ़लिख कर हमने अपनी  भारतीय संस्कृति को दकियानूसी कहना शुरू कर दिया है जबकि हमारी संस्कृति वैज्ञानिक है ।  देवताओं की पूजा-आराधना के समान पितरों का स्मरण करना एक आवश्यक वैदिक नित्य कर्म माना गया है। देवों की तरह पितरों के तृप्त होने पर परिवार में खुशहाली, श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है।  पितरों के तृप्त होने पर अपने वंशजों का मंगलसाधन ,वृद्धि व  आशीर्वाद की परम्परा है।आज भी यह वैदिक परम्परा अधिकांश हिन्दू समाज में प्रचलित है कुछ परिवार पितृऋण से मुक्त होने के लिए, पितरों का श्राद्ध व उनके नाम का भोजन ग़रीबों को खिलाते हैं , दान पुण्य करते हैं। तिल,मधु,चावल,अन्न आदि से तर्पण करते हैं और गया- बिहार में ले जाकर उन्हें मोक्षधाम में छोड़ना आदि कार्य करते हैैं। मैक्समूलर तथा शाहजहां ने भी भारतीय श्राद्धपद्धति की भूरिभूरि प्रशंसा की है।
        डाक्टर क्लीन राय ने कहा कि पित्र पक्ष की जो १५ दिन की अवधि निर्धारित की गई है वह सूर्य के दक्षिणायन होने पर मनाई जाती है ,इस समय मौसम थोड़ा ठंडा हो जाता है जो पितरों के लिए उपयुक्त होता हैक्लीन जी ने आगे कहा कि आत्मा के प्रति श्रद्धा आत्मा से होनी चाहिए,इसके लिए पुरुष या स्त्री के शरीर का होना महत्वपूर्ण नहीं है।डाक्टर कृष्णा गुप्ता ने कहा कि आजकल दिखावा ज़्यादा होने लगा है,जो ठीक नहीं है श्राद्ध श्रद्धा से होना चाहिए।।                राजश्री दबे के अनुसार जब ब्राह्मण भोजन से तृप्त होता है तो उसकी सूक्छ्म तरंगे आत्मा को तृप्त करती हैं,राजश्री ने आगे कहा कि लड़कों द्वारा ही श्राद्ध कराने के पीछे वैज्ञानिक आधार यह है कि लड़का में xy क्रोमोजोंस होते हैं और लड़की में xx क्रोमोजोंस होते हैं ,लड़कियों में सात पीढ़ी के बाद यह क्रोमोजोंस समाप्त हो जाता है किंतु लड़को में बना रहता है। श्रीमती ज्योति राय ने कहा कि हर धर्म में लोग श्राद्ध करते हैं बस इसका स्वरूप भिन्न -भिन्न होता है।
           शशि भदोरिया ने कहा कि केवल पित्र पक्छ में नहीं वरन सामान्य स्थिति में भी अपने पूर्वजों को याद करना चाहिए।स्नेह जैन ने कहा कि श्राद्ध के द्वारा हम अपनी अगली पीढ़ी को पिछली पीढ़ी से परिचित कराते हैं।इस तरह से हमारे संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बहुत आसानी से हस्तांतरित हो जाते हैं।आराधना रावत के अनुसार ज़रूरत मंद को भोजन कराना चाहिए।शशि दीक्षित ने कहा कि अपने पूर्वजों का ध्यान जीते जी रखना चाहिए।तभी आत्म-संतुष्टि प्राप्त होती है।अंत में आभार प्रकट करते हुए डाक्टर सुधा जैन ने कहा कि पूर्वजों द्वारा किए गाए उपकार को याद करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है श्राद्ध।परिचर्चा में  श्रीमती पल्लवी सक्सेना,श्रीमती रमा पांडे,श्रीमती रूपा राज,श्रीमती ज्योति राय,श्रीमती अरूणा मिश्रा,श्रीमती साक्षी जैन,जयश्री अहिरवर,शशि भदोरिया आदि सदस्य उपस्थित रहे।समापन संगठन मंत्र से किया गया।
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ASI पर एसिड अटैक। वारंटी ने फेंका तेजाब ,वारंटी पकड़ने गई थी पुलिस , एक अन्य पर भी गिरा तेजाब

ASI पर एसिड अटैक। वारंटी ने फेंका तेजाब ,वारंटी पकड़ने गई थी पुलिस , एक अन्य पर भी गिरा तेजाब


सागर । सागर के कोतवाली थाना क्षेत्र में एक वारंटी को पकड़ने गई पुलिस टीम पर आरोपी ने तेजाब से हमला कर दिया। इसमें ASI सहित दो अन्य पुलिसवालो पर तेजाब गिरा। । पीड़ित   asi को अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है ।उधरपुलिस ने वारंटी को गिरफ्तार कर लिया है ।कोतवाली पुलिस योगेश को धारा 125 के मामले में भरणपोषण केमामले में वारंट तामीली को गई थी।
        जानकारी के मुताबिक कोतवाली थाना क्षेत्र में पुरव्याऊ टोरी पर गणेशघाट के पास निवासी  योगेश सोनी पिता श्याम बिहारी सोनी उम्र 33 साल  के खिलाफ  वारंट था । उसकी तामीली के लिए  करने ASI अनिल कुजूर,एच एन मिश्रा,आरक्षक राजेश पांडे और दो महिला आरक्षक गई थी। जैसे ही पुलिस ने पकड़ने की कोशिश की तो आरोपी योगेश ने सोने चांदी के काम मे आनेवाली तेजाब को फेंका। जिसमे अनिल कुजूर को पीछे से लगी। उनकी शर्ट आदि जल गई और अंदर तक तेजाब लगा। जिससे वे बुरी तरह झुलस गए। इसमे तेजाब एच एन मिश्रा के हाथ पर और एक  अन्य पुलिस कर्मी के शरीर पर गिरा। ज्यादा झुलसे अनिल कुजूर को कोतवाली टीआई राजेश बंजारा अस्पताल लेकर गए। सागर श्री हॉस्पिटल में अनिल का इलाज जारी है । इस घटना की खबर लगते ही एसपी अमित सांघी asp राजेश व्यास अस्पताल पहुचे और asi अनिल कुजूर का कुशल क्षेम पूछा और बेहतर इलाज के निःर्देश दिए । 
एसपी अमित सांघी ने बताया कि अनिल कुजूर और पुलिस कर्मी वारंटी योगेश सोनी को पकड़ने गई थी। इस दौरान आरोपी ने तेजाब फेंका। अनिल कुजूर को हाथ ,चेहरेऔर पीठ तेजाब के निशान है  । पीड़ित पुलिस अधिकारी की हालत खतरे से  बाहरहै । आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है । उसके खिलाफ इस घटना की रिपोर्ट दर्ज की जा रही है ।
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जी हाँ, यथासमय मिले तो अवार्ड और उसे पानेवाले धन्य होते हैं


जी हाँ, यथासमय मिले तो अवार्ड और उसे पानेवाले धन्य होते हैं
सिने विमर्श/ विनोद नागर
       इस हफ्ते भले ही कोई समीक्षा योग्य फिल्म रिलीज़ नहीं हुई, लेकिन मंगलवार की सांध्य बेला बॉलीवुड से जुड़ी साल की सबसे बड़ी खुश खबरी लेकर आई. केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शाम सात बजकर ग्यारह मिनट पर ज्योंही अपने ट्विटर अकाउंट पर अमिताभ बच्चन को सर्व सम्मति से वर्ष 2018 के दादा साहब फाल्के अवार्ड के लिये चुने जाने की सूचना दी तो देश भर में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. देखते ही देखते बधाइयों का तांता लग गया. जी हाँ, यथासमय मिले तो अवार्ड और उसे पानेवाले दोनों धन्य होते हैं. हालाँकि अपनी फौरी प्रतिक्रिया में लताजी ने भी हौले से कह ही दिया कि अमिताभ बच्चन को यह पुरस्कार काफी पहले मिल जाना चाहिए था.   
अमिताभ 50 वे फिल्मी कलाकार,जिन्हें शिखर अलंकरण मिला
      बहरहाल भारतीय सिनेमा के विकास में असाधारण योगदान के लिये चिन्हित इस शिखर अलंकरण से विभूषित होने वाले अमिताभ पचासवें शख्स होंगे. प्रकारांतर से यह भारतीय सिनेमा को समृद्ध बनाने में विशिष्ट योगदान की खातिर दिया जाने वाला सबसे प्रतिष्ठित लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड ही है जिसे गरिमामय समारोह में भारत के राष्ट्रपति अपने करकमलों से प्रदान करते हैं. ज्ञातव्य है पुरस्कार के रूप में दस लाख रुपये और स्वर्ण कमल भेंट किया जाता है. हालाँकि लोकसभा चुनाव की वजह से इस वर्ष राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा काफी विलम्ब से हुई है. इस बीच मध्यप्रदेश सरकार ने भी किशोर कुमार के नाम पर वर्ष 2017 और 2018 में दिये जाने वाले राष्ट्रीय सम्मान की विलंबित घोषणा अब जाकर की है जो क्रमशः वयोवृद्ध अभिनेत्री वहीदा रहमान (81) और चेन्नई निवासी अहिन्दीभाषी फिल्म निर्देशक प्रियदर्शन को मिलेगा.  
       चयन में पारदर्शिता का ढिंढोरा पीटे जाने के बावजूद राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों पर जनसाधारण में  लोकप्रियता को दरकिनार कर कलात्मक बौद्धिकता हावी रहने के आरोप लगते रहे हैं. रेल की पटरियों की तरह सिनेमा को सामानांतर फिल्मों और बम्बइया फिल्मों में बाँटने की कोशिश भी हुईं. भारत की गरीबी और अभावग्रस्त जीवन को दर्शाती नई लहर की फिल्मों को विश्वस्तरीय सिनेमा मानने वाले बुद्धिजीवियों की बिरादरी, जो 'जंजीर' से लेकर 'अग्निपथ' के बीच आई अमिताभ की दर्जनों कामयाब मनोरंजक फिल्मों को चलताऊ फ़िल्में कहकर खारिज करती रहीं आज बौखलाई हुई है. दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिये चुने जाने की बेला में बिग बी और सदी के महानायक की आन, बान और शान में सोशल मीडिया पर पढ़े जा रहे कसीदों के सैलाब से वह भौंचक हैं.  
गुजिश्ता दौर में हिन्दी सिनेमा का नेतृत्व करनेवाले सक्षम और समर्थ लोगों की बिरादरी ने इसीलिये वर्षों तक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों और राष्ट्रीय फिल्म समारोहों से दूरी बनाए रखी. फ़िल्मी दुनिया में फिल्म फेयर पुरस्कारों का बोलबाला यूँ ही कायम नहीं रहा. इधर टेलीविजन की नई अवतरित दुनिया में ग्लैमर का तड़का लगते ही फिल्म फेयर सरीखे अनेक फिल्म अवार्ड देने का सिलसिला शुरू हुआ. कमोबेश सभी अवार्ड प्रदाताओं पर पक्षपात के आरोप लगते रहे और विश्वसनीयता पर उंगलियाँ उठती रहीं. सूचना और प्रसारण मंत्रालय के नौकरशाहीभरे रवैये के चलते राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के नामांकन और चयन की प्रक्रिया तो आज भी सरकारी कायदे कानून की तरह जटिल बनी हुई है, जिसका सरलीकरण किया जाना चाहिए.
समय पर मिले संम्मान तो उसकीअनुभूति अलग
यदि लोकतंत्र में लोक रूचि और जन भावनाओं की कद्र न हो तो तंत्र किस काम का. सालों तक मुख्य धारा के हिंदी सिनेमा अर्थात आम फार्मूला फिल्मों को हेय दृष्टि से देखे जाने के इस तथाकथित बुद्धिजीवी नज़रिए ने ही आज तक मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, मुकेश और महेंद्र कपूर जैसे महान पार्श्व गायकों; सचिन देव बर्मन, राहुलदेव बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कल्याणजी आनंदजी, शंकर जयकिशन, रोशन, रवि और रविन्द्र जैन सरीखे गुणी संगीतकारों; भरत व्यास, साहिर लुधियानवी, हसरत जयपुरी, शकील बदायूंनी, राजेंद्र कृष्ण, शैलेन्द्र, इंदीवर, अनजान और आनंद बक्षी जैसे दिलकश नगमा निगारों को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से वंचित रखा है. बीते 50 सालों में गीत संगीत और पार्श्व गायन के क्षेत्र से पंकज मलिक (1972), रायचंद बोराल (1978), नौशाद (1981), लता मंगेशकर (1989), भूपेन हजारिका (1992), मजरूह सुल्तानपुरी (1993), कवि प्रदीप (1997), आशा भोंसले (2000), मन्ना डे (2007) और गुलज़ार (2013) ही इसके हकदार बने. 
देविका रानी और अशोक कुमार ने 1936 में बॉम्बे टॉकीज से अपने कैरियर की शुरुआत एक साथ की थी. लेकिन 1969 में स्थापित दादा साहब फाल्के पुरस्कार सबसे पहले भारतीय सिनेमा की प्रथम महिला के बतौर  देविका रानी को मिला जबकि अशोक कुमार का नंबर उन्नीस साल बाद 1988 में आया. समकालीन सितारों की तिकड़ी में उम्र के लिहाज़ से दिलीप कुमार देव आनंद से एक वर्ष बड़े और राज कपूर देव आनंद से एक बरस छोटे थे. अदाकारी और लोकप्रियता में कोई किसी से कम न था पर दादा साहब फाल्के पुरस्कार पहले राज कपूर को, फिर दिलीप कुमार को और आखीर में देव आनंद को मिला. अगर देश की स्वतंत्रता के रजत जयंती वर्ष (1972) में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के धनी इन तीनो महानुभावों को एक साथ फाल्के अवार्ड प्रदान कर दिया जाता तो यह हिंदी फिल्मो के इतिहास की विलक्षण घटना होती. यही दलील दिवंगत मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और किशोर कुमार की त्रयी को याद करते हुए दी जा सकती है, जिन्हें मरणोपरांत भी आज तक इस पुरस्कार के लायक नहीं समझा गया.
बड़ा देश, बड़ा वॉलीवुड पर सम्मान पाने वाले कम
दुनिया में सर्वाधिक फिल्मे बनाने वाला देश सिनेमा की शताब्दी मना चुका है लेकिन अब भी रुपहले परदे की चमक बढ़ाने वाली ऐसी अनेक हस्तियों के नाम ऊँगलियों पर गिनाये जा सकते हैं जिन्हें यह पुरस्कार जीते जी प्रदान करने से सरकार या मंत्रालय विशेष का मान नहीं घटता बल्कि अवार्ड की विश्वसनीयता ही बढ़ती. इनमे सबसे पहला नाम है राजेश खन्ना का जिन्हें सुपर स्टार का दर्जा फिल्मों की बेशुमार कामयाबी और करोड़ों प्रशंसकों के दिलों में घर कर जाने पर मिला था, मीडिया के उतावलेपन से नहीं. मगर जिसकी हर अदा पर ज़माना रहा फ़िदा उस हरदिल अजीज सितारे को जीते जी प्राण से भी गया गुजरा समझा गया. देशभक्ति के जज्बे से सराबोर भारत यानि मनोज कुमार के उपकार का ख्याल भी भारत सरकार को प्राण के महाप्रयाण के बाद ही याद आया.
अब भी वक़्त है फिल्म पुरस्कारों के चयन प्रक्रिया की खामियों को दुरुस्त करने का. काश कि धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र, शत्रुघ्न सिन्हा, डैनी डेन्जोंगपा, नसीरुद्दीन शाह, नाना पाटेकर, अनुपम खेर और अक्षय कुमार जैसे समर्थ कलाकारों, हेमा मालिनी, रेखा, माधुरी दीक्षित, जूही चावला, सुभाष घई, डेविड धवन, महेश भट्ट, संजय लीला भंसाली और राजकुमार हिरानी जैसे निर्देशकों, सोनू निगम, अलका याग्निक, उदित नारायण, कविता कृष्णमूर्ति जैसे पार्श्व गायकों तथा गीतकार समीर और संगीतकार एआर रहमान को कभी यह सर्वोच्च अलंकरण अस्पताल में या व्हील चेयर पर बैठकर लेने का अवसर न आये.  
                                   
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वो वसुंधरा राजे जिनको हम जानते ना थे,,

वो वसुंधरा राजे जिनको हम जानते ना थे,,,,

सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट /ब्रजेश राजपूत

वैसे तो सुबह हम निकले थे सहकारिता मंत्री गोविंद सिंह के घर की ओर मगर चौहत्तर बंगले के पास पहुंचते ही फालो गार्ड के साथ गाडियों का काफिला निकला। सोचा कौन हो सकता है तभी याद आया कि ये हो ना हो राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधरा राजे सिंधिया होंगी जो बीजेपी के नेता कैलाश सारंग के घर जा रहीं हैं। बस फिर क्या था अपनी गाडी घुमायी और सारंग जी के घर पर पहुंचे। बाहर मीडिया के साथी इंतजार कर रहे थे वसुंधरा जी के बाहर आने का जो भोपाल आयीं हुयीं थी पार्टी की ओर से धारा 370 पर प्रबुदृध लोगों से मिलने। मेरे अंदर जाते ही दिख गये विश्वास सारंग जो कैलाश सारंग के बेटे और भोपाल के नरेला से विधायक हैं। उन्होंने मेरा हाथ पकडा और अंदर बैठा दिया उस डाइग रूम में जहां सामने के सोफे पर ग्रे और पिंक शिफान साडी पहने राजस्थान की दो बार की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया बेहद घरेलू तरीके से बैठीं हुयीं थीं। उनके बायीं तरफ बैठे थे कैलाश सारंग जी और सामने बैठा था पूरा सारंग परिवार। जिनसे वसुंधरा एक एक कर परिचय ले रहीं थीं। वो विश्वास के बडे भाई विवेक के दोनों बेटों से मिलकर पूछ रहीं थीं कि पढाई के बाद क्या करने का सोचा है तो थोडी देर बाद विश्वास के परिवार के बच्चों को उनके दादा जी के बारे में बता रहीं थीं। 
            दरअसल वसुंधरा राजे की मां विजयाराजे सिंधिया और कैलाश सारंग जी जनसंघ के जमाने से साथ थे। वसुंधरा कह रहीं थीं कि जब हमारी मां प्रचार के लिये निकलती थीं तो हम सब उनके साथ उस शहर के सर्किट हाउस या होटल के बजाय किसी कार्यकर्ता के घर पर ही रूकते थे। रात में सभाएं खत्म कर ग्यारह बजे जब झिझकते हुये किसी के घर पहुंचते थे तो उस घर की बहुंए जागती हुयीं मिलती थीं। हमको बुरा लगता था कि अम्मा महाराज इतनी रात में किसी के घर परेशान करने क्यों जाते हैं मगर वो हमें प्यार से झिडकती और कहती अरे किसी दूसरे के घर नहीं अपने परिवार में ही तो जा रहे हैं। फिर उस घर में पहुंचने के बाद उतनी रात को ही सबका साथ में खाना होता था और होती थीं ढेर सारी बातें इस घर में कितनी बहुएं और कितने बच्चे हैं बहुएं कहां की हैं उनको क्या पसंद है वगैरह वगैरह। मगर अब ये सब वीआईपी कल्चर और खासकर हैलीकाप्टर आने के बाद खत्म हो गया है। अब प्रचार के लिये हम सुबह नौ बजे जयपुर से उडते हैं तो दोपहर की चार या पांच सभाएं कर पांच बजे तक हैलीकाप्टर से उडकर वापस आ जाते हैं। हैलीकाप्टर शाम के बाद उडता नहीं इसलिये उस मारामारी में किसी परिचित कार्यकर्ता के घर जा नहीं पाते और वो कार्यकर्ता भी उतनी सहुलियत से मिल नहीं पाता। इससे ये नेताओं के परिवार के बीच की बाउंडिंग खत्म हो गयी है मगर अब जब मुुझे भोपाल आने को मिला तो मैं उन जगह जरूर जा रहीं हूं जहां अपनी मां के साथ पुराने दिनों में जाती थीं। 
इन बातो के बीच मे ही सारंग परिवार के किसी सदस्य ने उनको मोबाइल पर उनकी पुरानी फोटो दिखा दी जिसमें वो विजयाराजे सिंधिया और सारंग जी के बीच खडी नजर आ रहीं थीं। बस फिर क्या था वसुंधरा बच्चों जैसे ऐसे प्रसन्न हो गयीं जैसे कोई बहुत पुरानी चीज मिल गयी हो। अरे देखो देखो मैं उन दिनों कैसे लगती थीं। फिर सारंगजी की तरफ मुखातिब होकर कहा आपसे मिलकर जनसंघ के दिनों के संघर्ष याद आने लगते हैं। फिर परिवार के सदस्यों की तरफ देख कहा उन दिनों हम अपनी मां और उनके साथ रहने वाले इन सब पर हंसते भी थे ऐसी राजनीति क्यों कर रहे हैं ये सब, क्या हासिल होगा इससे मगर मालुम नहीं चला कब हम भी वही करने लगे जो ये सब कर रहे थे आज देखो जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी और हमारी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार। इस बीच में वसुंधरा को नाश्ते के लिये हलवा और गुलाब जामुन लाया गया। देखते ही वो नो स्वीट नो स्वीट करने लगीं तो उनकी मनुहार करने विश्वास की पत्नी आगे आयीं और कहा खाइये ना तो वसुंधरा ने उलटकर जबाव दिया तुम खाती नहीं ओर मुझे खिला रहीं हो अच्छा चलो तुम एक खाओ तो मैं दो खाउंगी मगर मुझे मालुम है ऐसा नही होगा मगर तुम्हारा दिल रखने चलो हलवा टेस्ट करते हैं।                    
मैंने कहा आप बहुत दिनों के बाद भोपाल आयीं हैं तो वो अरे दिनों नहीं सालों अब मैंने भोपाल और ग्वालियर आना छोड दिया। क्यों। हंसकर कहा अरे यहां पहले ही सिंधिया कम हैं क्या। मैंने फिर छेडा यदि आप 1984 में भिंड का संसदीय चुनाव जीत जातीं तो एमपी से ही राजनीति करतीं ओर आज आप मध्यप्रदेश बीजेपी की बडी नेता होती। अरे नहीं वो चुनाव तो हमको हारना ही था। मेरी मां वहां से पिछला चुनाव लंबे मार्जिन से जीती थीं फिर वहंा से ज्यादा संपर्क रहा नहीं था इंदिरा जी की हत्या की सहानुभूति भी थी फिर भी अपनी मां की जिद के कारण मुझे वहां से लडना पडा। फिर हंस कर बोलीं राजनीतिक परिवार से होना हर वक्त फायदा नही देता। मगर मेरी मध्यप्रदेश से राजनीति करने की इच्छा कभी नहीं हुयीं। इस बीच में कमरे में और पत्रकार साथी आ गये थे और सभी कुछ ना कुछ पूछने लगे मगर वसुंधरा ने सारे सवालों के जबाव पूरे भरोसे और बिना डरे दिये। वरना आजकल तो नेता ऐसे मौंकों पर भी पहले ही चेता देते हैं देखो जो बोल रहा हूं कुछ छापना नहीं। करीब डेढ घंटे की इस मुलाकात में हमने उस वसुंधरा को देखा जिनको सिंधिया  राजघराने और दस साल तक राजस्थान का सीएम रहने का जरा भी गुमान नहीं था। वो बेहद गर्मजोशी और पारिवारिक तरीके से सब से ऐसे मिल रहीं थीं जैसे परिवार का कोई सदस्य बहुत दिनों के बाद मिलने आया है। सबके साथ फोटो खिंचवा रहीं थी और सारंग परिवार के बच्चों से कह रहीं थी देखो भूलना नहीं हम सब एक परिवार के लोग हैं मिलते रहना।

ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज, भोपाल
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