परमात्मा बनने की साधना है पर्यूषण पर्व: आचार्य निर्भय सागर जी

परमात्मा बनने की साधना है पर्यूषण पर्व:
आचार्य निर्भय सागर जी

 सागर।संसार के सभी प्राणियों में इंसान सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, इंसान को अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए पर्यूषण पर्व तोहफे के रूप में मिला है ।इस पर्युषण पर्व की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा की जो चारों ओर से आत्मा में रहने वाले पाप कर्मों को जलाए उसे पर्यूषण पर्व कहते हैं ।कर्मों के जलने पर संसारी आत्मा परमात्मा बनती है अतः उन्होंने पर्यूषण को आत्मा में परमात्मा बनाने वाला साधन बताया ।यह पर्युषण पर्व की साधना मुनि जीवन पर्यंत करते हैं। जबकि घर में रहने वाले श्रावक भादो माह की शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक साधना करते हैं ।इन 10 दिनों में की जाने वाली साधना में *उत्तम क्षमा धर्म* से क्रोध को पी जाना, आवेग में नहीं आना ,अपराधी को क्षमा करना ।*मार्दव धर्म  से एक दूसरे के सामने विनय पूर्वक झुक जाना। *आर्जव धर्म* से छल कपट माया चारी नहीं करना ।*शौच धर्म* से लोभ लालच नहीं करना । *सत्य धर्म* से नाजायज तरीके से धन संग्रह नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, ईमानदारी से कार्य करना ।
*संयम धर्म* से सब्र रखना ।मन वचन काया में लगाम लगाना। *तप धर्म* से अपने आप को त़पाना और आत्मा को 100 टंच शुद्ध बनाना। *त्याग धर्म* से गरीब ,असहाय ,दीन दुखियों का सहयोग करना ।संग्रह किए हुए धन आदि को समाज एवं 
धर्मात्माओं की मदद में लगाना। *आकिंचन धर्म* से शरीर के प्रति मोह ममता ना रखकर त्याग तपस्या में लगाना । *ब्रह्मचर्य धर्म* से पराई नारी के प्रति बुरी नियत नहीं रखना और अंत में समस्त विषय कषायों को छोड़कर, इंद्रियों को जीतकर अपनी आत्मा में लीन हो जाने की शिक्षा और साधना पर्यूषण पर्व के माध्यम से की जाती है ,यही वजह है कि दुनिया भर के जैनी लोग इस पर्व में उपवास रखते हैं अथवा दिन में मात्र एक बार भोजन करते हैं ।इंद्रिय और प्राणी संयम रखते हैं एवं समस्त सांसारिक क्रियाएं छोड़कर त्याग, तपस्या ,आत्म भावना ,धर्म ग्रंथों का अध्ययन एवं विश्व की शांति की भावना कामना करते हैं इस पर्व में भक्ति ,पूजा ,योग ,ज्ञान, ध्यान ,स्वाध्याय एवं पूरे वर्ष में हुए जाने अनजाने में पापों के प्रायश्चित हेतु प्रतिक्रमण को दिन में तीन बार किया जाता है जिससे मन एवं आत्मा विशुद्ध होती है यही पर्यूषण पर्व का उद्देश्य होता है।

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