कोटपा एक्ट संशोधन के विरोध में महिला बीड़ी मजदूरों ने विधायक शेलेन्द्र जैन को दिया ज्ञापन विधायक बोले कानून से बीड़ी के धंधे को नुकसान होगा ,सीएम से चर्चा की है

कोटपा एक्ट संशोधन के विरोध में  महिला बीड़ी मजदूरों ने विधायक शेलेन्द्र जैन को दिया ज्ञापन

विधायक बोले कानून से बीड़ी के धंधे को नुकसान होगा ,सीएम से चर्चा की है




साग़र। केंद्र सरकार द्वारा बीड़ी कारोबार से जुड़े कोटपा कानून 2003 में संशोधन  के विरोध में आज सेकड़ो महिला बीड़ी मजदूरों ने विधायक शेलेन्द्र जैन को एक ज्ञापन मुख्यमंत्री के नाम सौंपा।  जिले भर के ग्रामीण इलाकों से आई महिलाए अपने हाथों में तख्तियां लेकर एक जुलूस की शक्ल में विधायक निवास पर पहुची। 

 सागर के रविदास वार्ड की बीड़ी मजदूर महिला भगवती देवी  ने ज्ञापन का वाचन किया। दो सौ से अधिक महिलाओं के हस्ताक्षर वाले ज्ञापन में कहा गया कि हम अनपढ़ महिलाए बीड़ी बनाकर अपनी रोजीरोटी चलाते है। ऐसा पता चला है कि कोटपा कानून में बदलाव आने वाला है। इसका बुरा असर बीड़ी पर पड़ेगा। बीड़ी का बनवाना कम हो जाएगा। हम लोगो को खेती किसानी भी नही आती है। सरकार ने महिलाओं के हिता में कई अच्छी योजनाएं भी चलाई है। हमारी महिलाओं की मांग है कि इस कोटपा कानून में कोई बदलाव नही लाये । ताकि परेशान नही होना पड़े। महिलाएँ घर-परिवार को सहजता से सम्भालते हुए आत्मनिर्भर ढंग से बीड़ी बनाकर अपने परिवार की आय बढ़ातीं हैं। 

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कोटपा कानून से बीड़ी कारोबार को नुकसान, मुख्यमंत्री से चर्चा हुई है : विधायक शेलेन्द्र जैन

इस मौके पर विधायक शेलेन्द्र जैन ने बीड़ी मजदूरों को भरोसा दिलाया कि इस कानून के विपरीत पढ़ने वाले संशोधनों को लागू नही होने दिया जाएगा। पिछले दिनों नगरीय प्रशासन मन्त्री भूपेंद्र सिंह के नेतृत्व में हमने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की थी। केंद्रीय मंत्री से भी बातचीत हुई है। कोटपा कानून  इतना खतरनाक है कि यह लागू हो गया तो पूरे देश से से बीड़ी का धन्धा खत्म हो जाएगा। इसका नुकसान बीड़ी मजदूरों को होगा। हम लोगो ने चर्चा कर रहे कि ऐसे संशोधन लागू नही हो जिनसे मजदूरों का नुकसान हो। 
इस मौके पर भारी संख्या में सागर और आसपास के इलाकों से बीड़ी महिला मजदूर आई थी। 


*ये है कोटपा एक्ट के संशोधन*

भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा १/१/२१ को सिगरेट एंड अदर टोबको प्रॉडक्ट्स ऐक्ट, COTPA, २००३, की मौजूदा कड़क नियमावली में और भी अधिक कठोर संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं । अगर ये प्रस्तावित संशोधन क़ानून मै बदलते हैं, तो २०० वर्ष पुराना "हस्त निर्मानित, सम्पूर्ण स्वदेशी" बीड़ी का कुटीर उद्योग रातों रात समाप्त होने की स्तिथि में आ जाएगा। इन संशोधनों के कुछ मुख्य मुद्दे, जिनका नकारात्मक प्रभाव बीड़ी उद्योग से जुड़े लगभग तीन करोड़ कामगारों पर पड़ेगा, इस प्रकार है: 
बीड़ी के बंडल पैकेट पर ब्रांड का नाम छापने की मनाई 
बीड़ी के बंडल पेक में सरकार द्वारा निर्धारित की गयी संख्या ही 
बीड़ी बिक्री और व्यापार के लिए सरकार से, दुकानदार से ले कर छोटे से छोटे ग्रामीण रेडी और फेरी वालों तक को, विशेष ट्रेड लाइसेन्स लेना अनिवार्य रहेगा
हस्त निर्मित बीड़ी के हाथ से बंधे, शंकु आकर, छोटे से बंडल पर भी निर्माण की तारीख़ और बीड़ी दाम छापना पड़ेगा  
मौजूदा कठोर विज्ञापन प्रतिबंध के ऊपर और भी सख़्त प्रतिबंद प्रस्तावित, जैसे दुकान या गोदाम पर बीड़ी सूचना बोर्ड लगाना वर्जित , बीड़ी ब्रांड या नाम से अन्य कोई भी प्रकार का उत्पाद और उसकी बिक्री वर्जित इत्यादि
नियमों के ना पालन करने पर अति सख़्त दंड, जैसे कारावास, और सबसे उच्च कोटि का जुर्माना प्रस्तावित

इन प्रवधानो का निष्ठा से पालन, विशेष रूप से एक पूर्णतः हस्त निर्मित कुटीर उद्योग को करना, असम्भव है। COTPA २००३ के नए प्रस्तावित संशोधन बीड़ी उद्योग की समाप्ति का कारण और इस उद्योग से जुड़े तीन करोड़ से अधिक श्रमिक का बेरोज़गारी का कारण बन सकते हैं। बीड़ी के काम में ८५ लाख कारीग़र जुड़े है, जिन में से महिलयों की संख्या ६५ लाख है। ये महिला श्रमिक घर बैठ बीड़ी बना कर अपना रोज़गार कमाती हैं, अपने परिवारों का पालन पोषण इस रोज़गारी से करती हैं। तेंदू पत्ता के तुड़वायी में ७० लाख औरत और आदिवासी  जुड़े है। बीड़ी के तम्बाकू के उत्पादन में ३० – ४० लाख से अधिक किसान और श्रमिक जुड़े है। ७५ लाख छोटे दुकानदार देहातों में बीड़ी की बिक्री कर के रोज़गार कमाते हैं । यह प्रस्तावित संशोधन क़ानून बन कर लागू होने पर बीड़ी की बिक्री सबसे अधिक घटेगी,  मशीन निर्मित सिगरेट और खाने की तंबाखु  से कहीं ज़्यादा, जो इस तरह की रोज़गारी नहीं देते हैंऔर ना ही दे सकते हैं। COTPA के प्रस्तावित संशोधन के तहत बीड़ी बिक्री गिरने पर बीड़ी श्रमिकों के रोज़गार पर बहुत गहरा और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ध्यान रखने की बात यह भी है की महिलाएँ ग्रहणी के कर्तव्य निभाते हुए, घर बैठ के ही,  अपनी सवेछा से यह काम करती हैं और आत्मा निर्भर भारत का प्रतीक हैं। इन ६५ लाख रेजिस्टर्ड बीड़ी महिला श्रमिकों को आज हाल में इस तरह का कोई भी घर बेठे आमदनी देने वाला निपुण कार्य नहीं आता है।यह हस्त निपुणता से बना, रोज़गारी देने वाला उत्पाद इन महिला श्रमिकों का वर्षों से स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। इन हालात को देखते हुए सरकार को बीड़ी से जुड़े करोड़ों श्रमिकों का ध्यान, अन्य तंबाखु उत्पादों से अलग रख कर, करना उचित रहेगा। सरकार को बीड़ी श्रमिकों के रोज़गार, बीड़ी उद्योग पर लागू होने वाले क़ानून और समाज का स्वास्थ्य, तीनों मुद्दों पर संतुलित विचार करना उचित और आवश्यक है।

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