परंपरागत देवी आराधना गरबा 300 वर्षों के संस्कारों का निर्वहन ★ गुजराती ब्राह्मण बाज खेड़ावाल समाज, सागर का आयोजन

परंपरागत देवी आराधना गरबा 300 वर्षों के संस्कारों का निर्वहन 

★ गुजराती ब्राह्मण बाज खेड़ावाल समाज, सागर का आयोजन


सागर । महराजा छत्रसाल के शासन काल में गुजरात से मध्य प्रान्त में बस गए ब्राह्मण  परिवारों की पंद्रहवीं पीढ़ी, लगभग 300 वर्षों के बाद भी गुजरात की देवी आराधना परंपराओं का निर्वहन श्ऱद्धा पूर्वक करती आ रही हैं ।
मुगल काल में गुजरात में बढ़ते धर्मान्तरण के दबाव से बचने और स्वधर्म निर्वहन करते रहने के लिए शुरुआती दौर में पन्ना और इसके बाद हटा,दमोह, सागर,जबलपुर आदि स्थानों में आकर बस गए गुजराती ब्राह्मण, बाज खेड़ावाल गुजराती कहलाते हैं ।


एक समय में इन नगरों में गुजराती परिवारों की संख्या उल्लेखनीय थी । प्रदेश के  विभिन्न प्रशासनिक सामाजिक क्षेत्रों में ये परिवार सम्मानजनक स्थिति में रहे। कालांतर में सौ प्रतिशत शिक्षित और दहेज मुक्त इन परिवारों की युवा पीढियों ने महानगरों का रुख किया।
सीमित बच रहे ये गुजराती ब्राह्मण परिवार, गुजरात से विस्थापन के लगभग 300 वर्ष बाद भी देवी आराधन के अपने परंपरागत गरबों का श्रद्धा पूर्वक निर्वहन करते आ रहे हैं । सागर, चकराधाट स्थित श्री मल्ली माता मंदिर, और गुजराती समाज भवन, में ये परिवार शारदेय नवरात्रि में एकजुट होकर श्रद्धा पूर्वक दैनिक देवी आराधन में लीन होते हैं । स्थानीय नागरिक भक्ति भाव से की जा रही प्रस्तुतियों को देख कर मंत्रमुग्ध  हो जाते हैं  ।विगत वर्षों में कोविड संक्रमण प्रोटोकाल से आंशिक राहत मिलने पर ये परिवार पुनः श्रद्धा पूर्वक इन देवी आराधना के गरबों और दैनिक पूजन अर्चन में आ जुटे ।




इस शारदेय नवरात्र में समाज के युवा मण्डल ने गरबों में नए प्रयोग किए पर गरबों के आध्यात्मिक भक्तिभाव स्वरूप और देवी आराधना पक्ष को ही केन्द्र में रखा गया है । इस शारदेय नवरात्र में मंदिर में जहाँ परंपरागत गरबे हो रहे हैं , वहीँ समाज के उत्साही युवाओं ने देवी आराधना के आध्यात्मिक पक्ष को अपना कर इन गरबों को नया पर शुचिता पूर्ण स्वरूप दिया है । दैनिक आरती पूजन, हवन आदि मंदिर के पुजारी श्री शत जी करा रहे हैं ।क्ति मिश्रा पंडित जी करा रहे हैं  ।
 


गुजराती बाज खेड़ावाल ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष  संदीप भाई मेहता का कहना है की बदलते परिवेश गुजरात सहित देश और दुनिया में देवी आराधना नृत्य गरबों का स्वरूप बदला है । धर्मानुरागी समाज, गरबों में धर्म भाव पक्ष की कमी को देख कर व्यथित होते रहे है । मनोरंजन केन्द्रित गरबा नाइट्स पंडालों की कथित विसंगतियों से दुःखी हैं । सुखद संतोष है कि हमारे समाज के परिवारों  की पंद्रह से अधिक पीढ़ियों ने गुजरात से विस्थापन की तीन शताब्यिों के बाद भी गरबों में धर्म प्रधानता अक्षुण्य रखी है । हम देवी आराधना के परंपरागत भक्ति पक्ष का ही निर्वहन करते आ रहे हैं।

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