भूले -बिसरे स्वतंत्रता सेनानी आका सूफी विषयक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन ★ आका सूफी ने लेखनी से जनजागरण किया -शशिकांत भाई

भूले -बिसरे स्वतंत्रता सेनानी आका सूफी  विषयक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन

★ आका सूफी ने लेखनी से जनजागरण किया -शशिकांत भाई

महू। 'वीर सेनानी आत्मप्रकाश जिन्हें हम आका सूफी के नाम से भी जानते हैं, ने अपने लेखन से अंग्रेजों की ना केवल नींद उड़ाई बल्कि उन्हें अपने कई फैसलों को रोकना भी पड़ा।' यह बात वरिष्ठ विचारक एवं भारत-तिब्बत मैत्री संघ के अध्यक्ष शशि कांत सेठ ने कही। श्री सेठ आज डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामजिक विज्ञान विश्वविद्यालय एवं हेरीटेज सोसाईटी, पटना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार को संबोधित करते हुए कही। श्री सेठ ने आगे कहा कि वीर सेनानी आका सूफी को इस बात का अहसास हो गया था कि अंग्रेजों से शस्त्र से नहीं जीता जा सकता है तो उन्होंने कलम को हथियार बनाया और अपनी लेखनी से जनजागरण आरंभ किया। आका सूफी को इस बात का भी ज्ञान हो चला था कि अंग्रेज नवाबों और राजाओं को साथ लेकर भारत भूमि के खिलाफ षडयंत्र रच रहे हैं तो उन्होंने उनके खिलाफ लिखना शुरू किया। आका सूफी के लेखों से परेशान होकर अंग्रेजों को अपनी योजना स्थगित करनी पड़ी। इसके बाद  अंग्रेजो ने उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों के बीच फूट डालना शुरू किया तो आगा सेठ ने फिर लिखा तो क्रोधित  होकर अंग्रेजों ने उन्हें डेढ़ वर्ष के लिए जेल भेज दिया। इसके बाद उन्होंने स्वयं का साप्ताहिक पत्र शुरू किया और अंग्रेजों ने पुन: उन्हें गिरफ्तार कर 6 वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया।

श्री सेठ ने बताया कि 6 वर्ष की सजा काटने के बाद वे हैदराबाद चले गए जहाँ  नवाब ने उन्हें पूरा संरक्षण दिया लेकिन जल्द ही वे लाहौर चले गए। इसके बाद वे नेपाल गए और वापस उन्हें लाहौर भेज दिया गया। लेकिन इसके बाद वे ईरान गए और अपनी लेखनी से वहां भी लोगों में जन-जागरण आरंभ किया। ईरान में आज भी उन्हें पूजा जाता है। उन्होंने अफसोस जताया कि आज भारत के लोग वीर सेनानी आका सूफी को नहीं जानते हैं। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी की सजा सुनायी तो स्वयं समाधि लेकर स्वयं को पंचतत्व में विलीन कर लिया। 

वेबीनार के आरंभ में कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. डी. के. वर्मा ने विषय पर प्रकाश डालते हुए मुख्य अतिथि का स्वागत किया। प्रो. वर्मा ने विश्वविद्यालय की गतिविधियों से उपस्थितजनों को अवगत कराया। प्रो. वर्मा ने कहा कि ऐसे वीर सेनानियों के बारे में हम सबको जानना जरूरी होता है। प्रो. वर्मा के अनुरोध पर श्री सेठ ने वीर सेनानियों के बारे में स्रोत की जानकारी दी। श्री सेठ ने बताया कि सौगंध स्वराज की पुस्तक में अनेक वीर सेनानियों के बारे में जानकारी संकलित किया गया है।  वेबीनार में उपस्थित कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने मुख्य अतिथि श्री शशिकांत सेठ का स्वागत किया।

वेबिनार का समापन हेरीटेज सोसाईटी  के महानिदेशक डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी  के धन्यवाद ज्ञापन से सम्पन्न हुआ। अपने वक्तव्य में डॉ. द्विवेदी ने आका सूफी जैसे भूले-बिसरे स्वतंत्रता विभूतियों से जनमानस को अवगत कराने हेतु बल दिया । साथ ही दर्शकों से अनुरोध भी किया कि अपने क्षेत्र के स्वतंत्रता नायकों को लिपिबद्ध कर अवगत भी कराएं। 

 कार्यक्रम का संचालन आयोजन के समन्वयक डॉ. अजय दुबे ने किया। ऑनलाइन आयोजन में तकनीकी सहयोग सानन्त समूह के सदस्यों ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय एवं सोसाईटी के अधिकारी, शोधार्थी, विभिन्न प्रांतो के सदस्य तथा प्रतिभागी भी जुड़े रहें। प्रतिभागियों  हेतु फीडबैक लिंक भी उपलब्ध कराया गया ताकि उन्हें प्रतिभागिता प्रमाणपत्र दिया जा सके।

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