जब निधन हो जाए तो धन का महत्व नहीं: श्री कमल किशोर नागर जी ★ श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा सप्ताह का आयोजन


जब निधन हो जाए तो धन का महत्व नहीं
: श्री कमल किशोर नागर जी

★ श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा सप्ताह का आयोजन

★कथा के छठवें दिन ग्रामीण क्षेत्रों से पहुंचे हजारों श्रद्धालु

"★ खनिज विकास निगम उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मोकलपुर, सुशील तिवारी का किया सम्मान


सागर ।  मैंने आपको नव वर्ष की बधाई नहीं दी। हम अंग्रेजी नववर्ष मनाकर उनको पीड़ा पहुंचाएं  जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। यह गलत परंपरा है देश की संस्कृति,धर्म को न भूलें। हमारा नववर्ष चैत्र मास से शुरू होता है।जवान पर हिंदी और माथे पर बिंदी यह हमारे देश की पहचान है ,इसे कभी मत भूलना । उक्त कथन संत कमल किशोर  नागर जी ने ग्राम पटकुई बरारू स्थित वृंदावन धाम में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा सप्ताह के छठवें दिन श्रद्धालुओं के समक्ष व्यक्त किए।
संत श्री नागर जी ने श्रद्धालुओं को सीख देते हुए कहा कि हम थोड़ा पढ़ लिख गए और अच्छी नौकरी मिल गई तो हमने आधुनिक बनकर संस्कृति को भुला दिया। खासकर कुछ महिलाएँ तो और भी आगे निकल गई है चूड़ी नहीं पहनेंगी, मांग नहीं भरेंगे, बिंदी नहीं लगाएंगी, बिछड़ी ,पायल पैरों से गायब है। पेट तो मजदूर भी भरते हैं , लेकिन उनकी महिलाओं के माथे पर बड़ी बिंदी और मांग भरी हुई होती है। थोड़े से पैसे क्या आए कि शरीर से सब कुछ गायब हो गया। पेट तो कुत्ता भी भरता है ,लेकिन जो मांग भर्ती हैं वह भारतीय नारी हैं ।जो महिला मांग नहीं भर्ती ,बिंदी नहीं लगाती उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता।

कपड़े ऊंचे और कर्म नीचे हो गए:-

 संत श्री नागर जी ने कहा कि हम पढ़े तो थोड़ा लेकिन ल  बिगड़ ज्यादा गये है ,उससे ज्यादा खराब हालात यह हैं कि हमारी बहन, बेटियों ने अपने शरीर पर कपड़े कम कर दिए हैं। यहां तक कि अब ओछे, पतले और कपड़े ऊंचे हो गए हैं ।कपड़े ओछे हो और कीमत ज्यादा हो तो उसका कोई महत्व नहीं है। कपड़े से तन ढका हो और उनकी कीमत कम हो तो ही ठीक है। जब से कपड़े ऊंचे हुए हैं, तब से कर्म नीचे गिर गए हैं ।हम बंगलों में रहते हैं ,खूब कमाते हैं  फैशन में प्रतिस्पर्धा करते हैं, लेकिन चरित्र में हम बहुत नीचे चले गए हैं । जो चरित्र से गिर जाता है, उसके हजार जन्म बिगड़ जाते हैं। चरित्र बिगड़ जाए तो फिर मीरा, राम,कृष्ण  बौद्ध कहां से लाओगे।
 
घाव की तरह  शरीर भी ढको:-

 संत श्री नागर जी ने कहा कि जब शरीर पर घाव हो जाए और हम उस पर पट्टी ना बांधे तो मक्खियां  भिनभिनाने लगती हैं ,और पट्टी बांध लो तो मक्खियां नहीं आती। इसी तरह शरीर भी है, इसे ढककर रखो क्योंकि मक्खियां बहुत है। फिर कहते हो पुलिस ,शासन ध्यान नहीं देता। हम सिर्फ धन ,मकान ,जमीन ,जायदाद संभालने में लगे हैं। लेकिन संतान नहीं संभाल रहे ।आप अपने आप से सम्हलो और शरीर में ऐसा घाव ही मत होने दो जिस पर मक्खियां आकर बैठ सके। संत श्री ने कहा कि तिजोरी खुली छोड़ देना, धन संपदा ,जमीन जायदाद सूनी  छोड़ देना ,पर छोरी (लड़की) को सुनी नहीं छोड़ना। तिजोरी से चला गया तो लौट सकता है लेकिन छोरी चली गई तो फिर सिर ऊंचा नहीं होगा । कर्म ऐसे करो कि सिर हमेशा ऊंचा रहे,बाद में पछताने से कुछ नहीं होगा।


जब निधन हो जाए तो धन का महत्व नहीं:-

संत नागर जी ने कहा कि हमेशा भगवान से प्रार्थना करना कि हमें  ना किसी की   गरज हो और ना किसी का हम पर करज (कर्ज )हो ।बस इतना ध्यान रखना कि नमन मत छोड़ना ।जीवन में हमारे हाथ में पछतावा के अलावा कुछ नहीं है। आए तो पछता रहे ,बच्चे पैदा किए तो पछता रहे, धन कमाया तो, सुखी है तो, जा रहे हैं तो भी पछता रहे हैं। तो फिर इस जीवन का क्या। इसलिए भजन ही सब कुछ है। जो लोग धन-धन करते हैं उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि कब निधन का समय आ गया। यदि धन सत्य होता तो अंतिम यात्रा में हम हाय धन, हाय धन ही बोलते। अंतिम समय में हम सिर्फ राम नाम सत्य है बोलते हैं ।आप यह मान लो कि ना धन सत्य है, ना बेटा सत्य है, ना पत्नी सत्य है ,ना जीवन सत्य है। सिर्फ सत्य है तो ईश्वर सत्य है। राम ,कृष्ण सत्य है और इसी को भजने में ही जीवन का सार है।

पकड़ो ,मत जाने दो और पकड़ो मत ,जाने दो मैं काफी अंतर है:-

संत नागर जी ने कहा कि अपना जीवन सादा रखो। भगवान शंकर ने अपने विवाह में श्रृंगार न कर सादगी का संदेश दिया। ठाकुर जी जब ब्रज से और राम जी जब अयोध्या से जाने लगे तो वहां के लोगों ने कहा कि पकड़ो, मत जाने दो, यह आस्था का प्रतीक है। और जब कृष्ण मथुरा पहुंचे और पहलवानों ,हाथियों को उठाकर पटका, राम का रावण से युद्ध हुआ, तो कंस और रावण की एक ही आवाज थी पकड़ो मत, जाने दो। उन्होंने कहा कि नीति के बिना राज,कुसंगत से संगत और शराब से खानदान समाप्त हो जाते हैं। इसलिए हमेशा ध्यान रखो की बुरी आदतों को हमेशा पकड़ो मत, जाने दो और अच्छी आदतों, कर्म, भगवान को हमेशा पकड़ो, मत जाने दो का ध्यान रखो।


घर में हमेशा छह का सेट होना चाहिए:-

 संत नागर जी ने कहा कि जिस प्रकार बर्तनों के  विभिन्न संख्याओं के सेट होते हैं। उसी तरह परिवार में भी सेट होना चाहिए। आजकल हम दो, हमारे दो पर आधारित है। या फिर दो का सिर्फ  पति-पत्नी दो का सेट भी चल रहा है। परिवार वह अच्छा है, जिसमें छह का सेट हो यानी वृद्ध माता पिता, लड़का- बहू, बेटा, बेटी होना चाहिए। ध्यान रखना कि केला का छिलका कितना भी खराब हो परंतु चिपका रहे है तो केला सुरक्षित रहता है। इसी तरह वृद्ध माता-पिता कितने भी बुरे क्यों ना हो ,उन्हें छोड़ना मत। उनका अनुभव कब, कहां काम आ जाए कोई भरोसा नहीं। वृद्ध कैसे भी हो हम उनसे ढके हैं, सुरक्षित है और लुटेरे लुचचो से बचे हैं इसलिए आदर्श घर मे छह सदस्यों का सेट होना जरूरी है।




वेदों का सार श्रीमद् भागवत में निहित:-

 संत नागर जी ने कहा कि संपूर्ण वेदों का सार श्रीमद् भागवत कथा में निहित है ।जब हम कथा को विदा करेंगे  वेदना होगी। वेदना से किसी का नुकसान नहीं होता है। इसका कारण वेद है ।आप 4-5 एक जगह बैठकर कथा सुनते हो, सुविधाजनक न हो  परंतु वेदना नहीं होती ।क्योंकि वेद आपके शरीर में प्रवेश कर रहा है ।श्रीमद्भागवत में भगवान विराजमान है और वेद आपको वेदना से लड़ने की शक्ति देता है। अंदर के मनोविकार मिटाकर ही साधना सफल होगी ,और यह वेद सुनने से आएगी।




कंस वध, कृष्ण- रुक्मणी विवाह का वृतांत सुनाया :-

संत नागर जी ने श्रीमद्भागवत कथा में श्रीकृष्ण द्वारा ब्रज छोड़ने, गोपियों के वियोग, कृष्ण द्वारा कंस वध ,कृष्ण रुक्मणी विवाह ,महाभारत के कुछ प्रसंगों को विस्तार से वर्णन किया।

मंत्री भूपेंद्र सिंह ,मोकलपुर, तिवारी का सम्मान

सागर मैं प्रथम वार संत नागर जी कथा कराने के उपलक्ष में खनिज विकास निगम के उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मोकलपुर एवं वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ सुशील तिवारी का संत नागर जी ने हाटकेश्वर धाम प्रतीक चिन्ह एवं गमछा भेंट कर सम्मान किया । शाम को नगरी प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह संत नागर जी से भेंट कर उनका आशीर्वाद लिया ।इस अवसर पर यजमान श्रीमती राम श्री, श्याम केशरवानी ,मदन सिंह राजपूत, राकेश राय ,विनोद गुरु, जगदीश गुरु, राजेश केशरवानी आदि उपस्थित थे।

स्वयं भोजन बनाते हैं नागर जी:-
 संत कमल किशोर नागर जी की दिनचर्या कुछ हटकर ही है। उनके शिष्य राकेश राय, मदन सिंह ने बताया कि संत नागर जी कथा के लिए जहां भी जाते हैं कुटिया में निवास करते हैं। अपना राशन बिस्तर  साथ लेकर चलते हैं। संत श्री अपना भोजन स्वंय बनाते हैं ।पीने के लिए नर्मदा जल का उपयोग करते हैं, जो वह अपने साथ लेकर आते हैं। नियमित निस्तार के लिए ही बाहर का पानी लेते हैं  और जरूरत के हिसाब से दूध लेते हैं। सुबह 4:00 बजे उठकर स्नान, भजन से संत नागर जी की दिनचर्या शुरू होती है ।संत श्री के साथ कथा में भजन संकीर्तन में जयंत ,धर्मेंद्र एवं दुर्गेश संगीत पर संगत देते हैं। जहां भी कथा होती है यह लोग वहां साथ ही जाते हैं।



1 टिप्पणी: