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जगदीप खुश रहो ... ....... तुम्हारा राजेश बैन

जगदीप खुश रहो ... ....... तुम्हारा राजेश बैन


तीनबत्ती न्यूज : 15 जून ,2025

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार, नया इंडिया भोपाल के संपादक श्री जगदीप सिंह बैस का लम्बी बीमारी के बाद भोपाल में निधन हो गया है। उनका अंतिम संस्कार आज रविवार को जबलपुर के सिहोरा के  खितौला स्थित हिरन नदी मंझगवा घाट पर हुआ। 

पत्रकार जयदीप सिंह बेस के साथ पिछले 30 सालों की मित्रता का अनुभव जनसंपर्क विभाग के उप संचालक राजेश बैन बता रहे है : 

जगदीप चल दिए अनंत यात्रा पर

जब सांसे ही साथ छोड़ दें तो तमाम कोशिशों के बावजूद जीवन की बाजी हारना तय है।कुछ इसी तरह के खेल में मेरे दोस्त "जगदीप" आज अनंत यात्रा पर चल दिए।जगदीप को मैं हमेशा"मालगुजार"कहता था, वे थे भी मालगुजार,लोगो पर सब कुछ खर्चने वाले मालगुजार। ग़ज़ब का दोस्त- उससे मैने काफी कुछ सीखने की कोशिश की- सोचिए मालगुजार वह भी फक्कड़, विनम्र,यायावर, लोगों पर सब कुछ,बोले तो सब कुछ लुटाने वाला और किसी के लिए भी जान तक देने वाला।उन्होंने नए संदर्भों में मालगुजार की परिभाषा गढ़ दी।जगदीप के साथ यही कोई 25-30 साल का मेरा साथ रहा है।

वे एकदम पत्रकार थे पर मौजूदा समय में एकदम अनफिट।जगदीप को दुनियादारी महज़ इतनी ही आती थी कि वे लेखनी से लोगों की किस किस तरह की मदद कैसे कर सकते हैं,वे अखबार में रहे फिर टी वी में और आखिर में फिर समाचार पत्र, वे नया इंडिया की पहचान या ये भी कह सकते हैं कि पूरक बन गए । मुझे लगता है हरिशंकर व्यास जी भी मेरी इस बात से इत्तेफाक रखेंगे कि जगदीप नया इंडिया को और नया इंडिया जगदीप को ओढ़ते - बिछाते थे।जैसा जगदीप था वैसा ही जगदीप का सबके लिए हमेशा खुला रहने वाला दिल,,,,।

ऐसे कई कलमकारों को भी आप भी जानते हैं जिन्हें उन्हें मंच और पहचान दी,कमाई से उनका लेना देना इतना था कि जमापूंजी लुटा कर भाई पत्रकार था।किसी को अपने हिस्से का घर दे देता तो किसी यार को कार,,,,,। बदले में जगदीप क्या पाते थे केवल और केवल साथियों के चेहरे पर आई मुस्कुराहट। खुशी और उससे उपजने वाला संतोष और संतुष्टि ही उसकी कमाई या यूं कहे कि उसकी दौलत थी,,,,

 जगदीप से सीखने की कोशिश

जगदीप से मैने कई पाठ बिना उसे बताए उसके व्यक्तित्व से सीखने की कोशिश की है,,उससे सीखा जा सकता है बड़ी से बड़ी खुशी को ज़ज़्ब करना और बड़े से बड़े दुख को हंसते हुए पी जाना,वह दोनों ही परिस्थितियों में हमेशा सामान्य ही रहा। ग़ज़ब की शख्सियत,असल में वह इंसान था। बहुत बड़ा इंसान,उसकी विनम्रता और हर मामले को चुटकियों में निबटाने की अद्भुत कला।जगदीप की जगह कोई और होता तो जैसा जमाने का चलन है,इस भौतिकता वादी युग में कहा का कहा होता,,पर उसका कद इस सबसे ऊपर था। उसे शहर में भी गांव,खेत,नदी, तालाब,चौपाल और पगडंडियां ढूंढने की आदत थी।भोपाल में बड़े से घर को भी उसने गांव का प्यारा सा लुक देकर रखा था ।उस बड़े से घर तक जाने का रास्ता पगडंडी ही था।सरकार और जनप्रतिनिधियों की कोशिशों के बावजूद उनके घर का रास्ता कच्चा ही रहा,,,,प्रकृति से ऐसा जुड़ाव

मालगुजार पिछले साल इन्हीं गर्मियों के दिनों में मेरे साथ बी एच ई एल के जंगल में 6 से 7 किलोमीटर मार्निंग वॉक किया करते थे। दरअसल वे मार्निंग वॉक के साथ अपनी बीमारी को हरा रहे होते थे। हराने की रणनीति बना रहे होते थे।धुन का पक्का आदमी शाम को भीषण टेंप्रेचर में भी एम पी नगर की सड़कों पर घंटे दो घंटे तेज चलकर बीमारी को हरा रहा होता था।जिस दिन फाइनल दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जांच कराने गया उस दिन मेरे घर मेरे साथ आया और चाय पीते हुए कहा कुछ नहीं है फिर भी जांच कराने में क्या जाता है? उसे क्या पता था एक साल में वह चला जायेगा।

ये कुछ नहीं है

जैसे उसे शक्ति देता था, दिल्ली के अस्पताल के छठवीं मंजिल पर लिफ्ट के होते हुए भी सिर्फ यह जतलाने के चढ़ गया कि देखो, कुछ भी नहीं है : डाक्टर को भी उसने यही कहा कुछ बड़ा होता तो मैं सीढ़ियां कैसे चढ़ पाता? वह लगातार अपनी जीवटता से सब कुछ हराने की दम रखता था।जगदीप अपनी बीमारी को हरा रहे थे और बीमारी उन्हें चकमा दे रही थी।

सोचा नहीं कि मौत पर सरकारी प्रेस एडिट भी करूंगा

ग़ज़ब इंसान था मेरा दोस्त। इच्छा शक्ति ऐसी कि सबको यक़ीन था कि वह एक दिन इस संकट से उभर जाएगा।पर बीमारी ने हम सबसे जगदीप को छीन लिया।।देखिए कभी नहीं सोचा था कि उसके लिए आने वाले सरकारी प्रेस नोट को एडिट भी करूंगा।

पिछले इतवार को जगदीप ने प्रायः सभी दोस्तों को फोन लगाए। मुंबई में होने के कारण फोन नहीं उठाने के खेद व्यक्त किया और बातों ही बातों में बताया कि अब देखो जो होना है वह तो होगा।  अपनी तरफ से तो सब कुछ कर ही रहे हैं।जगदीप का प्रार्थनाओं पर भी बड़ा भरोसा था,अच्छा इसे यूं भी कह सकते हैं कि वह भरोसा था और आदमी भी भरोसे का था।पिछले हफ्ते सेहत ने जो रंग ढंग दिखाए वे अजीबो- ग़रीब थे,मै उससे मिलना चाहता था पर विदा करना नहीं, इसलिए अस्पताल के दरवाज़े जाकर भी लौट आया,खुश रहो दोस्त,,

तुम्हारा राजेश बैन



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