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Basant Panchami 2025 : बसंत पंचमी : बुंदेलखंड का एकमात्र उत्तरमुखी सरस्वती मंदिर सागर में : जहा विराजी है मां सरस्वती ▪️एकल आदमकद प्रतिमा के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए जुटेंगे श्रद्धालु

Basant Panchami 2025 : बसंत पंचमी : बुंदेलखंड का एकमात्र उत्तरमुखी सरस्वती मंदिर सागर में : जहा विराजी है मां सरस्वती ▪️एकल आदमकद प्रतिमा के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए जुटेंगे श्रद्धालु

Edited By : Vinod Arya

Basant Panchami 2025 : 02 फरवरी 2025

तीनबत्ती न्यूज : 31 जनवरी, 2025

सागर : मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के सम्भागीय मुख्यालय सागर शहर इतवारा बाजार में एकमात्र उत्तरमुखी सरस्वती मंदिर है। यहां मां सरस्वती की उत्तरमुखी आदमकद प्रतिमा के रूप में विराजमान है। धार्मिक आस्था का केंद्र बने इस मंदिर में बसंत पंचमी पर  03 फरवरी 2025 को विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना करने चारो तरफ से श्रद्धालु  जुटते। है। अपनी मनोकामनाओं को पूरी करने अलग अलग विधियों से पूजा अर्चना करते है। इसके लिए पिछले तीन दिनों से मंदिर परिसर की साफसफाई और  सजावट का काम चल रहा है। 




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सन 1971 में हुई थी  प्राण प्रतिष्ठा

मंदिर के पुजारी यशोवर्धन चौबे ने बताया कि उनके पिता प्रभाकर चौबे ने वर्ष 1962 में बरगद का पेड़ लगाकर मंदिर का निर्माण शुरू कराया था। जिसके बाद शहर के लोगों ने सहयोग किया और मंदिर वर्ष 1971 में बनकर तैयार हो गया। मंदिर निर्माण में उस समय ,काले खा मोहम्मद हनीफ, कपूर् चंद डेंगरे, रामचंद्र भट्ट, गुलाब चंद बेशाखिया, फूंदी  लाल नेमा, शंकर लाल गुप्ता,राजकुमार हर्षे , हरिनारायण रावत सहित अनेक लोगो की अहम भूमिका रही। इसी साल तत्कालीन सांसद मनिभाई पटेल के सहयोग से मां सरस्वती की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी।  उत्तरमुखी प्रतिमा होने से मंदिर का विशेष महत्व है।

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उत्तरमुखी मंदिर का महत्व 

पंडित यशोवर्धन चौबे बताते है कि उत्तरमुखी मंदिर होने से इस मंदिर का विशेष महत्व है। क्योंकि मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं और उत्तर दिशा की अधिस्ठात्री हैं। इस कारण यहां मूर्ति की स्थापना उत्तर मुखी की गई। एकल उत्तरमुखी प्रतिमा का यह एकमात्र मंदिर है। वसंत पंचमी पर मंदिर में विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं।


ऐसी मान्यता है कि माघ माह पंचमी तिथि पर मां सरस्वती प्रकट हुई थीं। वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की विशेष रूप से पूजा-आराधना होती है। मां सरस्वती को संगीत, कला, वाणी, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। इस दिन विद्या आरंभ करने से ज्ञान में वृद्धि होती है। वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त कहा जाता है और इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त के किए जा सकते है। 

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                फाइल फोटो

108 बादाम और मखाने की चढ़ाई जाती है माला

पंडित चौबे बताते हैं कि यदि किसी की शादी में कोई अचडन आ रही है तो ऐसे लोग 108 बादाम की माला माता को चढ़ाते हैं। वहीं विद्यार्थी ज्ञानवर्धन के लिए मां सरस्वती को 108 मखाने की माला अर्पित करते हैं। ऐसा करने से उनकी मनोकामना पूरी होती है। पंडित चौबे बताते हैं कि मां प्रतिमा की ऐसी प्रतिमा जो किसी ऊंचे आसन पर बैठी मुद्रा में हो, लेकिन पांव जमीन पर छुएं, सागर स्थित सरस्वती मंदिर में है. यहां माला को समाहित करने के लिए समय और मूर्ति का विशेष ध्यान रखा जाता है. सूर्य अस्त होने से पहले इस माला को माता को समर्पित करना होता है. भूल कर भी बादाम की माला, खड़ी प्रतिमा, माता के छाया चित्र, फोटो, नामावली पर न चढ़ाएं. क्योंकि, यह श्रद्धा का विषय है, उपहास का विषय नहीं है. विश्वास का विषय है, इसलिए उपहास के रूप में माला समाहित न करें।

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अनार  की लकड़ी से जीभ पर उकेरते हैं ॐ आकृति 

वसंत पंचमी के पर्व पर मंदिर में सुबह से देर रात तक धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। इस दौरान 14 संस्कार कराए जाते हैं। इनमें विशेष अक्षर आरंभ संस्कार कराया जाता है। अनार की लकड़ी से शहद से वर्ण विन्यास के लिए छोटे बच्चों की जीभ के अग्रभाग पर ॐकी  आकृति उकेरी जाती है। ताकि बच्चा ज्ञानवान हो।

बसंत पंचमी पर होंगे ये कार्यक्रम

वसंत पंचमी पर इतवारा बाजार स्थित मां सरस्वती देवी मंदिर में विशेष पूजन चौबे ने बताया कि सुबह 5 बजे मां का पंचामृत अभिषेक किया जाएगा। इसके बाद पांच नदियों के जल से मां सरस्वती का जलाभिषेक किया जाएगा। सुबह 7 बजे मंगला आरती, दोपहर 12 बजे राजभोग आरती की जाएगी। शाम 6 बजे श्रृंगार आरती एवं रात्रि 12 बजे शयन आरती की जाएगी। इसके अलावा सनातन धर्म के 16 में से 12 संस्कार यहां पर कराए जाएंगे। 

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पंडित यशोवर्धन प्रभाकर चौबे ने बताया कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त से पहले तक सीमन्तोत्रयन, जातकर्म, अन्नप्राशन, नामकरण, निष्क्रमण, चूडाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त एवं समावर्तन संस्कार कराए जाएंगे। नामकरण संस्कार शोनक सूत्र के अनुसार, निष्क्रमण संस्कार संतान भ्रमण विधि से, चूर्णाकर्म संस्कार केशच्छेदन, अश्वलायन गृह सूत्र अनुरूप, कर्णभेदन संस्कार कात्यायन गृहसूत्रन के अनुरूप, मोली पूजन संस्कार स्लेट, पेंसिल एवं भोजपत्र के द्वारा कराया जाएगा।

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एडिटर: विनोद आर्य
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