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मध्यप्रदेश में राजनीति का एनिमल फार्म ... @ ब्रजेश राजपूत/ सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट

मध्यप्रदेश में राजनीति का एनिमल फार्म ...

@ ब्रजेश राजपूत/ सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट 



मुंगावली के मोदी ग्राउंड पर चल रही सभा में बीजेपी के नेता और इलाके के महाराज माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब कहा कि हां कमलनाथ जी मैं कुत्ता हूं। मगर मेरा मालिक मेरा भगवान मेरी जनता है। हां कमलनाथ जी मैं कुत्ता हूं। मगर कुत्ता अपने मालिक की रक्षा करता है। हां कमलनाथ जी मैं कुत्ता हूं। मगर कुत्ते के मालिक को कोई धमकाता है तो कुत्ता काटता है। महाराज के मंुह से ये कुत्ता पुराण सुनकर जनता ने जोश में भले ही तालियां पीटीं हों मगर चुनावी भापणों का ये गिरता स्तर डरा गया। कुछ दिनों पहले सिंधिया ने ऐसी ही किसी सभा में अपने को कौव्वा भी कहा था, मैं काला कौव्वा हूं आउंगा और जो गलत होता चिल्लाउंगा। उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी पीछे नहीं हैं वो इन चुनावों में अपने आपको भूखा नंगा कहकर प्रचारित कर ही रहे हैं। कांग्रेस के एक नेता ने उनको तो एक बार ही ऐसा कहा मगर बीजेपी के नेता तो उनको ये कहने की हिम्मत कर नहीं सकते मगर शिवराज जी स्वयं अपने आपको सभाओं में भूखा नंगा कहकर उसे जनता को भूलने भी नहीं दे रहे।
मध्यप्रदेश में ये तीन तारीख को होने वाले उपचुनावों के लिये इस प्रकार का सहानुभूति बटोरने वाला प्रचार पहली बार देखने को मिल रहा है। दरअसल ये गुजरात मार्का चुनाव प्रचार है जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को महारत हासिल है। मोदी अपने प्रचार का यही तरीका अपनाते हैं और इसमें उनको तीन विधानसभा चुनाव और दो लोकसभा चुनावों में भारी सफलता मिली है। अपने को लेकर सामने वाले की कही बुरी बात को उठाओ और उसे इतना फैलाओ कि बोलने वाला ग्लानि में आ जाये। या फिर सामने वाले ने जो बोला है उसे भले ही कम लोगों ने सुना है मगर अपन बोलकर इतने लोगों को सुना दो कि हर आदमी सुन ले। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में मैं गुजरात में घूमा हूं। वहां चुनाव धीमी गति से शुरू होता है उसमें शुरूआती बढत विपक्षी पार्टी को मिलती है फिर धीरे से नरेंद्र मोदी उतरते हैं अपने खास अंदाज और अदा के साथ। कुछ दिनों तक वो विकास की बात करते हैं इस बीच में विपक्षी दल की तरफ से कोई ना कोई उन पर व्यक्तिगत टिप्पणी कर ही देता है और फिर मोदी धुआंधार कर देते हैं। हम सबको याद है सोनिया का लोकसभा चुनाव 2014 में कहा गया मौतों का सौदागर का जुमला जिसने पूरा चुनाव ही पलट दिया था। इसी चुनाव में रही सही कसर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने नीच राजनीति बोल कर पूरी कर दी थी। तब राजनीति शब्द खो गया था और नीच शब्द चल गया। बस फिर क्या था संचार के महारथी मोदी जी ने सभाओं में जनता से पूछ पूछ कर कांग्रेस की बैैंड बजा दी और हार पक्की कर दी थी। ऐसा ही कुछ अब मध्यप्रदेश के इन चुनावों में देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज इससे पहले तक अपने हर चुनाव में अपने किये गये कामों की बातें करते थे मगर इन चुनाव में वो भी सहानुभूति वोट बटोरने की कोशिश में कांग्रेसी नेता दिनेश गुर्जर के भूखे नंगे जुमले को ले उडे। बीजेपी दफतर में हुयी पत्रकार वार्ता में उन्होनंे जब ये दोहराया कि हां कमलनाथ जी मैं भूखा नंगा हूं इतनी बार बोला कि लगा कि अब ये जुमला चुनाव की दिशा बदल देगा। शिवराज अपनी सभाआंें मे अब कमलनाथ को सेेठ और अपने को भूखा नंगा बताकर माहौल बना रहे हैं। शिवराज को लेकर जनता में सहानुभूति तो है मगर ये सहानुभूति उनके महिलाओ और गरीबों को लेकर किये गये काम को लेकर ज्यादा है।
मध्यप्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता है। उनकी आम फहम छवि और कामन मेन चीफ मिनिस्टर की इमेज ने उनको पिछले दो विधानसभा चुनाव जितवाये मगर पिछला विधानसभा चुनाव वो हारे हैं। इसलिये इस चुनौती वाले और सरकार बचाने वाले चुनाव में वो मोदी मार्का प्रचार कर रहे हैं। मजा ये है कि कांग्रेस में रहकर हमेशा विरोधियों पर गरजने वाले महाराज भी शिवराज सिंह स्टाइल में ऐसे ही सहानुभूति वोट बटोरेंगे सोचा नहीं था। चुनावों पर गहरी समझ रखने वाले पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि ये मुददा विहीन चुनाव है इसलिये नेता अपने उपर लगे आरोप प्रत्यारोप को ही ढाल बनाकर मैदान में उतरे हैंं। कभी ये दुधारी तलवार चल जाती है कभी नहीं। इस चुनाव में असल मुददा यही है कि जनता 25 विधायकों का दलबदल स्वीकार करेगी या नहीं।
सच तो यही है कि मध्यावधि चुनावों सरीखे हो रहे इन चुनावों में कमलनाथ अपनी पंद्रह महीनों की सरकार की क्या उपलब्धि गिनाते तो शिवराज अपनी पांच महीने की सरकार के कितने गुणगाण करते। 2018 के चुनावों में शिवराज ने पंद्रह साल की सरकार का हिसाब दे ही दिया था और उस पर उठाये कांग्रेस के सवालों पर जनता ने अपना मत देकर सत्ता सौंपी थी मगर कांग्रेस की कमियों ने बीजेपी को सत्ता में वापसी का सुनहरा मौका दिया है। इसलिये कुत्ता बिल्ली कौवा अमीर गरीब सेठ साहूकार और उदयोगपति कहकर एक दूसरे नेता को उकसाया जा रहा है। जिस पर जनता ताली तो पीट रही है वोट देगी या नहीं ये पक्का नहीं है। मगर मध्यप्रदेश मंे जार्ज आरवेल के कालजयी उपन्यास एनिमल फार्म सरीखी हो रही ये राजनीति नयी है। एनिमल फार्म का एक खास जुमला है कि सब जानवर समान हैं लेकिन कुछ जानवर दूसरों से ज्यादा समान हैं। इसे याद रखिये और इसके प्रकाश में मैं कुत्ता हूं मैं कौब्वा हूं मैं भूखा नंगा याद करिये। और सोचिये ये मंच से भापण देने वाले जो अपने को कह रहे हैं क्या ये वहीं है और यदि ये वहीं हैं तो आप कौन हों।


ब्रजेश राजपूत,   एबीपी न्यूज़  नेटवर्क,  भोपाल
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