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सागर के रसखान है मायूस सागरी: प्रो सुरेश आचार्य▪️जनाब मायूस सागरी को मिला साहित्य सरस्वती सम्मान -2024

सागर के रसखान है मायूस सागरी: प्रो सुरेश आचार्य
▪️जनाब मायूस सागरी को मिला साहित्य सरस्वती सम्मान -2024



तीनबत्ती न्यूज : 23 मार्च,2024
सागर :  श्री सरस्वती पुस्तकालय एवं वाचनालय ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2024 का साहित्य सरस्वती सम्मान बंडा के जनाब मायूस सागरी जी को प्रदान किया गया। पूर्व सांसद  लक्ष्मीनारायण यादव, समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर, प्रो सुरेश आचार्य, संस्था के सचिव षुकदेव प्रसाद तिवारी, अध्यक्ष के के सिलाकारी , कोशाध्यक्ष आर एस यादव , साहित्य सरस्वती की संपादक डाॅ लक्ष्मी पाण्डेय के कर कमलों से प्रदान किया गया। इस अवसर पर वाचनालय की पत्रिका साहित्य सरस्वती के 11 वें अंक के प्रवेषांक का विमोचन भी किया गया।


कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए संस्था के सचिव सुकदेव प्रसाद तिवारी ने संस्था की सामाजिक गतिविधियों की जानकारी दी, वाचनालय की पत्रिका और सागर के साहित्यकारों के संदर्भ में किये जा रहे कार्यो के बारे मे जानकारी दी।  रधु ठाकुर ने अपने विचार रखते हुए कहा कि मायूस सागरी ने बुन्देलीभाषा में जो माधुर्य लाया है वह ब्रजरज में देखने मिलता है इसको पढ़कर लगता है कि इसे बार बार पढ़ा जाए।  प्रो सुरेश आचार्य ने अपने उद्बोधन में मायूस सागरी की  तुलना रसखान से की उन्होंने कहा कि आपके हिन्दी और उर्दू साहित्य का अच्छा प्रभाव है ; आपने बुन्देली के सौन्दर्य को साध लिया है। समीक्षक टीकाराम त्रिपाठी  ने सागरी जी के साहित्य के बारे में विचार रखे उन्होंने  कहा कि यदि सागरी जी ने इतना साहित्य लिखा है कि पूरा साहित्य प्रकाषित हो जाए तो उसकों पढ़ने  मे वर्शो लग जाए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व सासंद लक्ष्मीनारायण यादव जी कहा की पुरस्कार की सार्थकता साबित हुई, मायूस जी उनकी रचनाओं का एक अलग सौन्दर्य है। मायूस जी के व्यक्तित्व में जितनी सहजता है उतना ही  अपनापन उनके साहित्य में है।  इस अवसर पर षहर की अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा मायूस जी का षाल एवं श्रीफल से सम्मान किया । 


कार्यक्रम की षुरूआत में माॅ सरस्वती का पूजन किया गया एवं अतिथियों  का सम्मान किया गया । अंत में संस्था के सचिव षुकदेव तिवारी ने सभी का आभार माना, इस अवसर पर पूरन सिंह राजपूत, उमाकांत मिश्र, आषीश ज्योतिशी, नलिन जैन, लक्ष्मीनारायण चैरसिया, नम्रता फुसकेले, संतोश श्रीवास्तव, गजाधर सागर, राम षर्मा, राजू चैबे सहित अनेक साहित्यकार, कवि एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।



मायूस सागरी : कालजयी कति बजरज लेखन में अनुवाद सहित हिंदी, उर्दू व बुंदेली में दर्जनों रचनाएं


वैसे नाम तो उनका शेख अब्दुल रज्जाक है लेकिन लोग उन्हें मायूस सागरी के नाम से जानते हैं। 85 साल के मायूस सागरी को कभी हालात की वजह से सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ देना पड़ा। लेकिन लिखने का शौक था, उनके बड़े भाई शाइर थे। भाई ने प्रेरित किया तो लिखना शुरु किया फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इतना लिखा कि आज उनकी रचनाओं पर कॉलेज और विवि के छात्र पीएचडी कर रहे हैं। हिंदी, उर्दू और बुंदेली में समान रुप से कलम चलाने के साथ ही कृष्ण से लेकर रत्नावली तक पर लिखने वाले वे बुंदेलखंड के इकलौते साहित्यकार हैं। मुस्लिम होने के कारण साहित्य जगत में उन्हें बुंदेलखंड का रसखान भी कहा जाता है।

मायूस उनका तकल्लुस है, पर वे मायूस कभी नहीं हुए रहीम, रसखान की परंपरा को अपनाने वाले कवि, शाइर मायूस सागरी कहते हैं आजकल सब कुछ पालिटिक्ल हो चुका है इसलिए वे वर्तमान हालात पर कुछ भी नहीं कहना चाहते। हां इतना जरुर है कि वे अपने लेखन से खुश हैं और आखिरी सांस तक लिखना जारी रखेंगे। मायूस उनका तकल्लुस है यह उनके बड़े भाई ने दिया था। ये अलग बात है पर मायूस वे कल भी नहीं थे और आज भी नहीं हैं। उन्होंने बताया कि एक रचनाकार को अपनी सभी कृति प्रिय होती हैं और ये पाठक ही तय करते हैं कि उन्हें पढ़ने में क्या ज्यादा पसंद आया। सागरी ने बताया कि स्व. डीपी मिश्र रचित कृष्णायन जैसी अनमोल रचना रद्दी में बिक गई थी जो बड़ा दुखद था। इसका 4 हजार पेज का काव्य अनुवाद मेरे लिए बड़ा सुकून देने वाला रहा। उन्होंने बताया कि इसकी प्रस्तावना राष्ट्रपति स्व. राजेंद्र प्रसाद ने लिखी थी। उन्होंने बताया कि कहते हैं कि रामचरित मानस की रचना तभी हो पाई जब तुलसीदासजी एवं रहीम साहेब की बातचीत हो गई। साहित्य को किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। अमीर खुसरो ही मेरे प्रणेता हैं।

सागर में पुरव्याऊ टौरी पर जन्में और बंडा में स्थायी निवास बनाने वाले मायूस सागरी को यूं तो कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। साहित्यिक अवदान के लिए शनिवार को उनके लिए सरस्वती सम्मान से नवाजा जाएगा। सरस्वती वाचनालय ट्रस्ट की ओर से इस सम्मान में 1 लाख रुपए नकद के साथ ही सम्मान पत्र भेंट किया गया।। 
सागरी की प्रमुख रचनाएं- ब्रजरज (कृष्ण काव्य) मनपीर, मोर- पग, रस (बुंदेली गजलें) बतरस (बुंदेली गीत) वंश चौपाई, साखी, बिजौरा (बुंदेली दोहे) ब्रजरज टीका, फाग फहार (बुंदेली चौकड़ियां) ईदगाह व सौत (कहानी) वाणी, भाव वृत, सौम्या, श्रेया, कैंकयी संवाद, सुरज का दुख- मुक्त छंद- चाणक्य नीति, विदुर नीति व कृष्णायन- काव्य अनुवाद- इसके अलावा हिंदी व उर्दू के गजल संग्रह भी प्रमुख हैं।

 
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एडिटर: विनोद आर्य
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+91 94244 37885

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