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वो काटा होय..उडती पंतग..कटता वक्त.. .लॉक डाऊन में

वो काटा होय..उडती पंतग..कटता वक्त.. .लॉक डाऊन में

सागर। कोरोना वायरस के चलते लॉक डाऊन है। घर मे रहने की सख्त हिदायतों के चलते  घर मे लोगो का खासतौर से  नई पीढ़ी का समय काटना मुश्किल हो रहा है । ऐसे मेंसमय बिताने में मोबाइल टीवी के अलावा पतंग बाजी भी खूब हो रही है । लोग नए नए तरीके समय बिताने के खोजते रहते है। ऐसे में पंतग जरूर आसमान में जमकर गोते लगा रही है ।

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लाक डाऊन के चलते अरसे बाद घरों में रह रहे लोग। अब छतों पर भी इकठ्ठा हो जाते है । 
लोग छतों पर शाम को निकल आते है और पतंगबाजी का आनन्द ले रहे है। बीचबीच में वो काटा होय....। की आवाजें भी लगती रहती है। इनमे महिलाये ,बच्चे सभी शामिल है।  लेकिन इसमे शोसल डिस्टेंस के नियमो का पालन नही हो रहा है। तो बिना मास्क के लगाए जमकर पंतग उड़ाने और वो काटा होय...चिल्लाने में लगे रहते है। पंतग कटने पर लॉक डाऊन को धता बताते हुए सड़को पर भी पंतग पकड़ते है । कई बार पुलिस भी इनकी मदद कर देती  है।

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असली हीरो: Mp के राजगढ़ में 450 किमी. पैदल चल पहुंचा पुलिसआरक्षक ,ड्यूटी ज्वाइन करने

असली हीरो: Mp के राजगढ़ में 450 किमी. पैदल चल पहुंचा पुलिसआरक्षक ,ड्यूटी ज्वाइन करने 

@राजगढ़ से मनीष सोनी
 
राजगढ़। कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए जारी देशव्यापी लॉकडाउन के बीच मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के पचोर थाने में पदस्थ पुलिस कांस्टेबल ने अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए उत्तर प्रदेश के अपने गृह जिला इटावा से मध्य प्रदेश के राजगढ़ तक करीब 450 किलोमीटर की यात्रा की। इस दौरान कभी वह पैदल चला, तो कभी लोगों से मोटरसाइकिल पर लिफ्ट ली।
कांस्टेबल दिग्विजय शर्मा (22) अपनी स्नातक की परीक्षा (बैचलर ऑफ आर्ट्स) देने के लिए 16 मार्च से 23 मार्च तक छुट्टी पर था जो बंद होने के कारण स्थगित हो गयी।' उन्होंने आगे कहा, "मैंने अपने अधिकारी एवं पुलिस स्टेशन पचौर के प्रभारी निरीक्षक से फोन पर संपर्क किया और उनसे कहा कि मैं इस मुसीबत के समय में अपनी ड्यूटी में शामिल होना चाहता हूं। उन्होंने परिवहन सुविधा उपलब्ध न होने के कारण मुझे घर में रहने की सलाह दी । मेरे परिवार ने भी यही सलाह दी लेकिन मैं खुद को नहीं रोक सका ।' 

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उन्होंने कहा, "मैंने 25 मार्च की सुबह इटावा से पैदल ही राजगढ़ की यात्रा शुरू की। मैं इस दौरान करीब 20 घंटे तक चला जिसमें मैंने मोटरसाइकिल पर सवार लोगों से लिफ्ट भी ली और 28 मार्च की रात राजगढ़ पहुंच गया ।' उन्होंने कहा, "मैंने अपने अधिकारी के साथ जिले में अपनी एंट्री दर्ज कराई ।' उन्होंने कहा, 'मेरी इस यात्रा के दौरान सामाजिक संगठनों ने मुझे भोजन प्रदान किया । एक दिन मुझे खाने के लिए कुछ नहीं मिला । '

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एक जून, 2018 को मध्य प्रदेश पुलिस में भर्ती हुए शर्मा ने कहा, 'मेरे बॉस ने मुझे घर पर आराम करने के लिए कहा क्योंकि मेरे पैरों में सूजन हो गयी है।' कांस्टेबल ने कहा, 'मैं जल्द ही अपनी ड्यूटी ज्वाइन करूंगा। ' राजगढ़ जिले के पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा ने कहा '' कांस्टेबल दिग्विजय शर्मा को मुसीबत के समय पर काम करने की प्रतिबद्धता और समर्पण के लिए प्रशंसा पत्र दिया गया है।

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कमिश्नर ने लिया कोरोना आपदा नियंत्रण का जायजा,मानसिक विक्षिप्तों की व्यवस्था के निःर्देश

कमिश्नर ने लिया कोरोना आपदा नियंत्रण का जायजा,मानसिक विक्षिप्तों की व्यवस्था के निःर्देश

सागर। सागर कमिश्नर एवं नगर निगम प्रकाशक श्री अजय सिंह गंगवार ने मंगलवार को प्रशासन द्वारा किए जा रहे कोरोना वायरस नियंत्रण एवं रोकथाम के लिए उपायों का जायजा लिया । इस अवसर पर नगर निगम कमिश्नर  रामप्रकाश अहिरवार,  सिटी मजिस्ट्रेट,  पवन बारिया, उपायुक्त डॉ प्रणव कमल खरे सहित निगम के अधिकारी कर्मचारी उपस्थित थे । कमिश्नर श्री गंगवाल ने मंगलवार को सिविल लाइन रेलवे स्टेशन,  सदर, भगवान गंज,  मोती नगर चौराहा,  बड़ा बाजार, तीन बत्ती,  कटरा बाजार,  नमक मंडी  परकोटा बस स्टैंड,  बीड़ी अस्पताल में बनाया गया आइसोलेशन वार्ड एवं तहसील आदि का निरीक्षण कर आवश्यक दिशा निर्देश दिए । 
पढ़े: कोरोना ने भेद को भुला कर एक ही वर्ग दे दिया "इंसानियत" @ होमेंद्र देशमुख

कमिश्नर एवं नगर निगम के प्रशासक श्री गंगवाल ने नगर निगम कमिश्नर श्री रामप्रसाद अहिरवार को निर्देश दिए शहर की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए एवं दवा का छिड़काव निरंतर कराते रहें ।उन्होंने समस्त कर्मचारियों से सुरक्षित होकर जिसमें प्रमुख रूप से  मास्क, गुलब्स एवं सैनिटाइजर का उपयोग करते रहे । उन्होंने समस्त लोगों से अपील की कि लॉकडाउन का उल्लंघन ना करें एवं अपने घरों पर ही सुरक्षित रहें । उन्होंने रेलवे स्टेशन पर मौजूद गरीब निर्धन लोगों से व्यवस्था  की जानकारी ली ।उन्होंने भगवान गंज में निरीक्षण के दौरान मिले मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए । मोती नगर चौराहे पर शहर में प्रवेश करने वाली समस्त गाड़ियों को सेनीटाइज करने के भी निर्देश दिए ।
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कोरोना ने भेद को भुला कर एक ही वर्ग दे दिया “इंसानियत” @ होमेंद्र देशमुख



         कोरोना ने भेद को भुला कर एक ही                    वर्ग दे दिया "इंसानियत"
                            @
                   होमेंद्र देशमुख

अजीब दुनिया हो गई है ! अब यहां भाई भाई को नही पहचान रहा है । कई जगह खून के रिश्ते बेमानी हो रहे हैं । पुलिस के सख्ती से छुप के गली में निकल , कहीं रास्ते मे टकरा गए तो हाथ मिलाना तो बंद है ,नमस्कार भी नहीं कर रहे । गलत मत समझिए, असल मे सब के चेहरे पर चढ़ा मास्क आपस मे बड़ा कन्फ्यूज़न पैदा कर रहा है । अब किसी इमरजेंसी में कॉलोनी या अपार्टमेंट टाउनशिप के परिसर में लोग आपस मे पहचान के पहले फोन पर बात कर लेते हैं । मैं नीली कमीज और पीले मास्क पहना हूं , तुम्हारा फूफा हूं या मेडिकल वाला गुप्ता जी हूं । आपके लिए दवाई लेकर आया हूँ । गेट पर आकर ले जाओ ।
यह तो एक व्यंगात्मक उदाहरण है । पर सच कहें तो कोरोना ने कई रिश्तों ,वर्ण ,वर्ग के भेद को भुला कर एक ही वर्ग दे दिया है —
"इंसानियत"…!
पुराने शहर के *काजी कैम्प* के इदरीश भाई का एक दिन फोन आया ,मुन्ना भाई इदरीश खान बोल रिया हूं, काज़ी केम्प ,कांग्रेस नगर कने सौ-एक सौ पच्चास लोग दो दिन से खाने के लिए मोहताज़ हें । सब किराए पे रेते हें, कोई होटल पे कमाता था कोई टायर की दुकान पे । कोई लखनउ का हे कोई कानपुर का हम दो दिन तलक अपने घरों से सिप्लाई कर रिये थे अब हमारे कन्ने भी ख़तम हो गया । बैरागढ़ एसडीएम से बात करी, तो कह रिया कि सरकार और मुनिसपेलेटि केवल फुटपाट और मोहताज़ को पैकेट देंगे । मेरे कन्ने पूरी रिकारडिंग भी है आपको भेज रिया हूं । माननीय शिवराज जी तो बड़ी बड़ी फेंक रिये हैं फेसबुक पे, वो सच नई हे क्या ..
मैंने उसी क्षेत्र की खबरों में सक्रिय रहने वाले पत्रकार मित्र आबिद मुमताज़ से बात कर जानकारी दी ,उनसे पूछा किसी मस्ज़िद या कमेटी की आपको जानकारी हो तो कुछ लोगों को बता दीजिये भाई ।

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वो भी नगर निगम भोपाल के लोगों के साथ किसी दूसरे एरिया में ऐसे ही किसी शुक्ला या मिश्रा के यहां खाना बांट रहे थे । उन्होंने ज़ल्दबाज़ी में जवाब और सुझाव दिया । आप आलोक शर्मा जी को लगा लो आपकी बात नही टालेंगे । वो सिटी एरिया में किचन चलवा कर खाना बंटवा रहे ।
पूर्व महापौर आलोक शर्मा को किसी अखबार में दो दिन पहले ही पूड़ी सेंकते देखा था । उनसे बात की ,थोड़ी झिझक भी थी कि । जहां न उनकी पार्टी के लोग वोट मांगने जाते, न कोई उम्मीद करते, उनकी पार्टी के पार्षद नही जीतते वहां वो मदद पहुचाएंगे या नहीं..?
उन्होंने तपाक ,इदरीश भाई को फोन करवाने कहा । रात 11 बजे इदरीश भाई का फ़ोन आया ,शर्मा जी ने अस्सी पैकेट भिजवा दिए थे ,उसी को बंटवा रिया हूं ,कल के लिए सुबह से लिखवाने कहा है ,सभी एक सौ पच्चास कन्ने खाना आ जायेगा ।

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नाम है सेहतगंज पर यहां बनती है शराब ! जो समाज को जहर पिला रहे थे आज रायसेन के पर्यटन स्थल महादेव पानी तिराहे पर इस गांव में लगी डिस्टलरी का बदबू से सब परिचित होंगे । जब हम सागर की ओर से रात-बेरात लौटते, गाड़ी में झपकी ले रहे हों तो ड्राइवर से पूछने की जरूरत नही कि भोपाल कितनी दूर रह गया । चाहे आप शीशा-बंद मर्सिडीज़ के अंदर क्यों न बैठे हों । नर्सिंगगढ़ हाइवे पर पार्वती नदी के पार भी यही हाल है । हालांकि पिछले कुछ सालों में प्रसाशन की सख्ती, आधुनिक प्लांटों के कारण ये बदबू थोड़ी कम हुई है पर बंद तो अब भी नही हुई । समाज को जहर पिलाने के लिए बदनाम ये आधुनिक प्लांट कोरोना से निपटने आजकल दवा बना रही हैं । कोरोना का कोई दवा नही, अब सेनेटाइजर और मास्क का उपयोग और सावधानी ही सबसे बड़ी दवा बन गए हैं । भले सरकार का आदेश या कोई मजबूरी हो लेकिन समाज मे गैर इज्जतदार ,बदनाम ,डिस्टलरी उद्योग के कर्मचारी, शराब व्यवसाय और व्यवसायी के इन संयंत्रों में कोरोना के फैलाव को रोकने का सबसे कारगर 93 प्रतिशत एल्कोहल युक्त हैंड, और पूरा परिसर को सैनेटाइज़्ड करने वाला सैनेटाइज़र बना कर पूरे देश को रोज हजारों लीटर , 90 मिली,180 मिली, 35 लीटर और 250 लीटर के पैक में भेजा जा रहा है । बचाव और राहत के काम मे लगी कई सरकारी लोकल और स्थानीय एजेंसियां इनके सैनेटाइज़र रोज गेलनों में खरीद रही हैं ।
असल मे तकनीकी रूप से डिस्टलरीज में तीन तरह के स्प्रिट बनते हैं ,शराब बनाने के अलावा उस स्प्रिट को दवा कंपनियों को पहले भी भेजा जाता रहा है लेकिन स्थानीय जरूरतों के कारण स्प्रिट से यहीं कारगर सैनेटाइज़र बनवा रही है ।

डिस्टलरीज़ कोई भी हो, इनमे अब पिया हुआ,झूमता ,गुंडागर्दी करता आदमी काम नही करता । यहां आपके हमारे घर के ग्रेजुएट ,इंजीनयर बच्चे, सीए, आईटी, लैब ,और क्वालिटी एक्सपर्ट ,कारपोरेट अम्प्लॉयी की तरह काम करते हैं ।
खैर, डिस्टलरीज का मैं न वकील हूं न हिमायती । पर सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व और नेताओं अधिकारियों को पल्लवित करने वाली लाइसेंस्ड उद्योग है यह उद्योग । शराब ' यानी धीमा ज़हर ! लेकिन देश भर में चल रहे सालों से हवा में बदबू फैलाती, नदियों को गंदा करती ये अलग अलग डिस्टलरीज़ आज लोगों के सेहत का ख़याल रख रही हैं । ये मेरा निजी अनुभव है 1995 से जब भी मैं सेहतगंज से गुजरता था । हमेशा इस गांव के नाम और यहाँ हो रहे विपरीत व्यवसाय को लेकर लिखने का मन करता था । आज उस गांव का नाम और मेरा लिखना ,दोनो सार्थक हो रहा है ।
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राजधानी के एक अच्छे अस्पताल में मेरा आना जाना हैं ,वहां के डॉक्टर फारुख ने मुझे कल फ़ोन किया पांच कर्मचारी को अशोकगार्डन के जनसेवा किचन में हैंड सैनेटाइज़र चाहिए,आप मीडिया में हैं , कहीं से हो सकता है क्या ..?
कहाँ वो डॉक्टर,-कहाँ मैं क्वेरेन्टाइन में कमरे में घुसा पड़ा सम्भावित मरीज !
मैंने एक मित्र से बात की 10 मिनट बाद मेरे बताए हुए जगह पर डॉक्टर साहब ,विशेष अनुमति के कारण ,एप्रेन पहन, मास्क लगा ,कार चला कर खुद पहुच गए । तब उन्हें चार बड़े पैक के बॉटल मिल पाए । पर मैंने उन्हें किसी खाली शीशी में छोटे पैक बना लेने का निवेदन कर क्षमा मांग ली । मेरे लिए तो यह डॉ फ़ारुख द्वारा दिया गया गौरव का अवसर था । वह ऐसा वर्ग जिसे मैं कोई मदद करूँ यह बहुत ही कम मुमकिन है ।
*बात* यह है कि कोरोना के खौफ और बचाव के तरीकों ने समाज मे फैले वर्ग, जाति, व्यवसाय, धर्म, वर्णभेद को मिटा सा दिया है । यह प्रयास समाज के उन दो विपरीत सोच को करीब लाने का काम कर रहे हैं जो एक दूसरे को कमतर या अभिजात्य समझ डिस्टेन्स मेंटेन करते हैं ।
कोरोना से बचने डिस्टेन्स जरूरी है लेकिन मात्र एक मीटर ! इससे ज्यादा नही । यह विभीषिका देश और समाज को नया 'मील का पत्थर' उसका नाम होगा …
"इंसानियत"..!
ऐसी मुझे आशा है..
भोपाल में पत्रकार होने के कारण ,क्वेरेंटाइन में बीत रहे मेरे एक और दिन के साथ..
आज बस इतना ही…!

★लेखक एबीपी न्यूज़ भोपाल के वीडियो जर्नलिस्ट है 
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लॉकडाउन के अनुभवों से सीख लें @डॉ. वर्षा सिंह

    लॉकडाउन के अनुभवों से सीख लें
                         @
                  डॉ. वर्षा सिंह

कुछ दिनों से मेरे घर में गौरैया चिड़िया ने नल की पाईपलाईनों के बीच एक घोंसला बनाया हुआ है। लॉकडाउन से पहले अपने कामों की व्यस्तता के कारण इस ओर मेरा ख़ास ध्यान गया ही नहीं था। अब जबकि लॉकडाउन के चलते लगातार चौबीसों घंटे  पिछले एक सप्ताह से मैं अपने घर पर ही  हूं तो सुन रही हूं गौरैया के नन्हें बच्चों की वे आवाजें जो दिन भर पूरे घर में गूंजती रहती हैं। 
हां बहुत सी ऐसी चीजें है जिनका एहसास हम घर से बाहर रहकर कर ही नहीं पाते हैं। यह जरूर है कि लॉकडाउन की स्थिति में हमें लगातार घर में रहने के लिए विवश होना पड़ा है और यह लॉकडाउन भी कोरोना वायरस के संक्रमण की विभीषिका से बचाने के लिए लागू किया गया है किंतु हर एक लाभप्रद बात के पीछे अनेक पॉजिटिव बातें भी निहित होती हैं। यदि घर से बाहर नहीं जा पाने को माइनस प्वाइंट मानें तो लॉकडाउन का प्लस प्वाइंट यह है कि घर में रहकर हम घर में होने वाली उन चीजों को भी अब जान रहे हैं जिन्हें जानने की फुर्सत हमें पहले कभी नहीं मिल पाई है। 

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जहां तक लॉकडाउन की स्थिति में समय व्यतीत करने का प्रश्न है तो महिलाओं के पास कार्यों की कमी कभी नहीं रहती है । सुबह उठने से लेकर रात को बिस्तर पर जाने के बीच कितने छोटे-बड़े काम महिलाओं के जिम्मे सुपुर्द रहते हैं कि उन्हें करते - याद रखते हुए ही पूरा दिन व्यतीत हो जाता है । अब जबकि बाहरी कार्य जैसे कहीं आना-जाना किसी से मिलना-जुलना, अन्य सामाजिक कार्यों की व्यस्तताएं बिल्कुल भी नहीं हैं, किसी किस्म के साहित्यिक आयोजन भी नहीं हो रहे हैं तो मैं घर में रहकर उन कामों की ओर स्वयं को केंद्रित कर रही हूं जिन्हें करने की इच्छा होने के बावजूद मैं कर नहीं पाई थी। इन कामों की सूची में सबसे पहला काम मम्मी यानी मेरी माता जी के पास बैठकर उनकी बातें सुनना भी शामिल है । घर के बड़े बुजुर्ग कई दफा हमें आवाज़ देते हैं, वे अपनी कोई बात कहना चाहते हैं लेकिन समय के अभाव में ठीक उसी वक्त हम उन पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, उनका कहा सुन नहीं पाते हैं । बाद में जब हम फुर्सत में हो कर उनकी बात सुनने जाते हैं तब तक वे भूल चुके होते हैं कि वे क्या कहना चाह रहे थे और यहां-वहां की छोटी-मोटी बात होकर रह जाती है। वे अपने मन की बात जस की तस कर ही नहीं पाते । लॉकडाउन के दौरान मैंने महसूस किया कि माता-पिता के प्रति बच्चे अपना दायित्व तभी अच्छी तरह निभा सकते हैं जब किसी एक दिन वे पूरी तरह माता-पिता की सेवा में व्यतीत करें, उनकी बातें सुनें। अब जबकि लॉकडाउन की स्थिति है तो तत्काल ही उनकी वे सभी बातें सुनकर हम उनके मन को संतुष्ट रहे हैं, जिनका एहसास हम घर से बाहर रहकर कर ही नहीं पाते हैं।
      तो मुझे लगता है कि भविष्य में आने वाले दिनों में जब लॉकडाउन की स्थिति समाप्त हो जाएगी और हम पुनः सामान्य जीवन के दैनिक कार्य करने लगेंगे तब उस वक्त इस लॉकडाउन के अनुभवों से सीख ले कर सप्ताह में कोई एक दिन हम ऐसा चुने जिसमें हम अधिक से अधिक समय अपने घर के बुजुर्गों के साथ पूरी तरह समर्पित भाव से व्यतीत करें। इस तरह घर के बुजुर्गों को भी आत्मसुख का अनुभव करा सकते हैं और स्वयं भी आत्मसंतुष्टि पा सकते हैं।

पढ़े : प्रेरक वृत्तांतः जिंदगी से सीखती    जिंदगी -भूपेन्द्र गुप्ता 'अगम

जहां तक प्रशासन की बात है तो लॉकडाउन में कम से कम मुझे तो इस बात की पूरी तरह संतुष्टि है कि मेरे शहर सागर का प्रशासन बहुत चुस्त है। पूरी तरह समर्पण भाव के साथ हमारी जिले के अधिकारी, पुलिस विभाग और प्रशासन के साथ समाजसेवी, पत्रकार सभी जागरूकता से सेवा कार्यों में लगे हैं। ज़िला प्रशासन का जिम्मा जिला कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक के पास है जो एक महिला हो कर पूरी तत्परता के साथ मैदानी निरीक्षण -परीक्षण कर जनता को हर प्रकार की हर संभव सुविधाएं, मदद आदि उपलब्ध कराने के लिए तत्परता से कार्य कर रही हैं। इसी प्रकार पुलिस विभाग में कार्यरत समस्त स्टाफ हर समय लॉकडाउन में अपने घरों में बंद नागरिकों की सुरक्षा-सुविधा के प्रति जागरूकता के साथ अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रखने का जो लॉकडाउन का क़दम उठाया है, वह वास्तव में स्तुत्य है। इस तरह का कदम हमारे देश के सुरक्षा के लिए अत्यंत जरुरी है ।तो आइए हम सभी मिल जुलकर लॉकडाउन के शेष बचे हुए दिनों में निर्धारित नियमों का पूरी आस्था के साथ पालन करें ताकि हम, हमारा परिवार, समाज, देश और साथ ही संपूर्ण विश्व सुरक्षित रह कोरोना वायरस की इस संक्रमणकारी आपदा से मुक्ति पा सके।
डॉ. वर्षा सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, सागर म.प्र.
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प्रेरक वृत्तांतः जिंदगी से सीखती जिंदगी -भूपेन्द्र गुप्ता 'अगम

प्रेरक वृत्तांतः जिंदगी से सीखती जिंदगी
-भूपेन्द्र गुप्ता 'अगम'
परसों सरकार से अनुमति लेकर वर्क फ्राम होम में लाकडाऊन अपनी भतीजी को लेने इंदौर गया ।सूने रास्ते जाते में जगह जगह पुलिस तो मिली लेकिन कही कोई पूछताछ नही.।
जैसे ही देवास पहुंचे सब्जी बाजार में भीड़ टूट पड़ी भीड़ ..देखकर पहले लगा क्या हो गया फिर सोचा फेक्टरियों में काम करने वाले मजदूरों की बस्ती है जब हाथ में पैसा आता है तब ही राशन भरते हैं ..हर चेहरे पर चिंता है ..जल्दी है ।आगे आधा किलोमीटर बढ़ने पर भीड़ खतम हो गई ।सन्नाटा फिर शुरू ..तभी गूगल मेप ने लोकेशन गाईड करनी शुरू कर दी आधा घंटे में उसे लेकर लौटे तो लौटने का रास्ता दुःख और तकलीफ उठाने वाली लंबी भीड़ का रास्ता बन गया।
सड़कों पर 20 से 25 साल के सैकड़ों नौजवान बच्चियां सर पर बोझा रखे ,नौजवान अपनी पीठ पर बैग लादे चले जा रहे हैं।
जिग्याशा वश मैने देवास रोड पर फ्लाई ओवर के नीचे सुस्ताते नौजवानों से चर्चा की।वे जबलपुर के आसपास रहने वाले बच्चे थे।मैंने पूछा कहां से आ रहे हो..बोले गुजरात से पैदल.. ये बच्चे अमूल दूध फेक्टरी में काम करते थे ।डेली वेजर टाईप के हैं।मैने पूछा आनंद ! गये कैसे थे बोले ट्रेन से तो पैदल क्यों लौट रहे हो..निश्वास छोड़कर बोला सब बंद है क्या करते..।
मैने पूछा खाना का क्या हुआ..कहां खाया ..बोला कहीं कहीं दयालुओं ने खिलाया कहीं भूखा भी रहना पड़ा ..कुछ दयालू ट्रक ड्राईवरों ने पच्चीस पचास किलोमीटर छोड़ दिया फिर पैदल..छः-सात सौ किलोमीटर चलते हुऐ  रास्ते भर किसी  सरकार ने मदद नहीं की ..जनता ने की है
भगवान ने की है ।चले क्यों आये वहीं रुकते अदित (एक लड़का ) बोला इतनी बड़ी मुसीबत है.पता नहीं घरवाले कैसे.हैं..उन्हें कैसे छोड़ दें उन्हीं के लिये तो गांव छोड़कर निकले थे।
मैं उनकी आंखों में देखता हूं.उन्हें अभी और पांच सौ किलोमीटर चलना है ।
मैने पूछा एक आदमी मेरे साथ चलेगा ? सबने मना कर दिया..दस-बीस के समूह में ही वे जाते हैं।यह सामूहिकता ही सामुदायिकता का संदेश है।गरीबी कितना ही हमलावर हो गरीब इस सामुदायिकता से समझौता नहीं करता।
भारत के इस आर्थिक पलायन में ही भारत की जिजीविशा छुपी है और असहायता भी कि किस तरह शासन के संसाधनों से मोटे होते थैलीशाह इन विषम परिस्थितियों में गायब हो जाते हैं और तिल तिलकर खटता हुआ मध्यम वर्ग किस तरह इन भूखे प्यासों पर अपने हिस्से से मदद के लिये उतर पड़ता है। 
जो पूंजीपति ,बाबा सरकार के समर्थन से दुनिया के बड़े सेठ बन गये हैं उनकी करुणा के हाथ कहीं दिखाई नहीं वे सिकुड़ गये हैं मगर समाज के असमर्थों के हाथ लंबे हो गये हैं। उनके दरवाजे नहीं खुलते..बस खिड़कियां खुलतीं हैं।फिर भी समाज नहीं हारता मानवता नहीं हारती वह चलती रहती है .तेज कदम अपनी आंखो में अपनों की चिंता से तरबतर।
हम दो घंटे में घर पहुंच गये फजल भाई ने नान स्टाप 500किलोमीटर गाड़ी चलाई,उनका शुक्रिया।पत्नी खुश हो गई कहीं रुके तो नहीं थे ,उतरे तो नहीं थे ..सुना है हवा में.भी आ गया है।कान भले पत्नी की चिंता साझा कर रहे हों मगर आंखों में वही अदित और उस जैसे वे बच्चे ही झूल रहे थे जो जिंदगी से जिंदगी सीखते अपनों तक पहुंचना चाहते हैं।
सरकार सुने.तो अच्छा वर्ना भगवान तो उनकी सुनेगा,,यही भरोसा तो उनकी आंखों में तैर रहा था।
-लेखक स्वतंत्र विश्लेषक हैं
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