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भारतीय संस्कृति के संरक्षक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सौ साल ▪️भूपेन्द्र सिंह, पूर्व गृहमंत्री, विधायक

भारतीय संस्कृति के संरक्षक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सौ साल

                                                   ▪️भूपेन्द्र सिंह, पूर्व गृहमंत्री, विधायक


( फोटो: सागर ने RSS के पथ संचलन का पुराना फोटो: इसमें वर्तमान में केंद्रीय मंत्री डा वीरेंद्र कुमार, लेखक और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह, योगाचार्य विष्णु आर्य और पूर्व विधायक भानु राणा दृष्टिगोचर हो रहे है।)

तीनबत्ती न्यूज : 01 अक्टूबर ,2025

माँ भारती के वैभव को पुर्नप्रतिष्ठित करने, गुलामी की मानसिकता से उबारने और सांस्कृतिक चेतना जागृत करने के उद्देश्य से नागपुर शहर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन एक छोटे से प्रयास के रूप में रा.स्व.से.संघ की शुरुआत की थी। सौ वर्षों की इस अविस्मरणीय यात्रा में संघ ने सेवा, समर्पण और संगठन के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण में अद्वितीय योगदान दिया है । संघ ने स्वतंत्रता के पूर्व ही समाज में आत्म गौरव का भाव जगाया, भारत को राष्ट्र-चेतना दी और “वसुधैव कुटुंबकम” के दर्शन से विश्व शांति, एकता एवं सद्भाव का संदेश दिया । संघ के लिए ‘‘राष्ट्र प्रथम है’’ 


1925 में स्थापना के समय रा.स्व.से.संघ का उद्देश्य था - भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण, सामाजिक समरसता का निर्माण और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी। यह संगठन भारतीय संस्कृति के संरक्षण और पुनरुद्धार का एक मजबूत स्तंभ बनकर उभरा। संघ भारतीय समाज में अपनी गहरी छवि बनाने में सफल रहा है, उसने देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को भी गहराई से प्रभावित किया है। रा.स्व.से.संघ का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति का संरक्षण, संवर्धन और प्रचार है। विभिन्न सनातनी उत्सवों पर सामाजिक समरसता के माध्यम से संस्कृति को जीवंत बनाए रखने का प्रयास करते हैं। 

सौ वर्षों की इस यात्रा में रा.स्व.से.संघ ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उसकी मूल भावना और उद्देश्यों में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है। भले ही हमारी पूजा पद्धति भिन्न हो सकती हैं, परंतु संस्कार तो समान ही रहने चाहिए। इसी विचारधारा के चलते आज संघ देश के कोने-कोने में पहुंचने में सफल रहा है। पिछले 100 वर्षों से सतत रूप से हिंदू सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्पराओं तथा संस्कारों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए माँ भारती की सेवा में अपने आप को समर्पित किए हुए है। आज भारत व सम्पूर्ण विश्व का हिंदू अपने आप को गर्व से हिंदू कह रहा है तो यह संघ की अनथक तपस्या का ही परिणाम है। 


उपलब्धियों की अनंत यात्रा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष केवल उपलब्धियों की सूची भर नहीं, बल्कि भारतीय समाज के उत्थान, राष्ट्रीय व्यक्तित्व निर्माण और वैश्विक संस्कृति के पुनर्निर्माण की प्रगतिशील यात्रा है। संगठन की दृष्टि, सेवा भावना, अनुशासन और मातृभूमि के प्रति समर्पण से भारत को आत्मनिर्भर, समरस और समृद्ध राष्ट्र बनाने का सपना साकार करने का दृढ़ संकल्प ही संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि है । 

आरंभ से ही संघ ने जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा से ऊपर उठकर भारतीय समाज को संगठित करने का प्रयास किया। शाखा के अभिनव प्रयोग से समाज में अनुशासन, समर्पण और राष्ट्रीयता की भावना पैदा हुई । संघ नई पीढ़ी को राष्ट्र भक्ति, संस्कार और सामाजिक सेवा के मूल्यों से जोड़ने में प्रयासरत हैं। डिजिटल युग में भी संघ की शाखाएँ सक्रिय हैं और नई तकनीकों का उपयोग कर समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला रही हैं। संगठन का मानना है कि मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए मजबूत संस्कृतिवान और आत्मनिर्भर नागरिक आवश्यक हैं। इसके माध्यम से लाखों युवा प्रेरित होकर देश सेवा में जुटे हैं। संघ ने लाखों युवाओं को राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित किया। शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और सामाजिक सुधार के क्षेत्रों में कई सफल अभियान चलाए। स्वयंसेवक आपदा राहत और सामाजिक सुधारों में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं।  


सौ वर्षों की इस यात्रा में रा.स्व.से.संघ ने कई चुनौतियों का सामना किया परंतु संगठन ने अपनी मूल भूमिका में स्थिरता बनाए रखी, अपनी गतिविधियों को विस्तार दिया। आज, रा.स्व.से.संघ ने एक मजबूत सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में अपनी पहचान बनाई है। 

संघ का शताब्दी संकल्प है कि सेवा, संस्कार और समरसता के माध्यम से एक संगठित, आत्मनिर्भर एवं वैश्विक शांति दायक भारत का निर्माण किया जाए । सौ वर्षों की यह यात्रा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और सामाजिक सेवा का एक प्रतीक है। संघ की प्रतिबद्धता, दृढ़ता और सेवा भावना ने देश को नई दिशा दी है। वह भारत को विश्व के श्रेष्ठ राष्ट्र बनाने में अपना योगदान जारी रखेगा। आज के समय में जैसे-जैसे वैश्वीकरण और आधुनिकता का प्रभाव बढ़ रहा है, भारतीय संस्कृति को चुनौती मिल रही है। ऐसे वातावरण में, रा.स्व.से.संघ और उससे जुड़ी संस्थाएँ अपनी भूमिका निभाकर परंपराओं का संरक्षण कर रही हैं। 


आज संघ स्थापना का 100वां वर्ष धूमधाम से मना रहा है और वह दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि संघ भारत का एक ऐसा संगठन है जो अपनी स्थापना के दशकों के बाद भी अपनी विचारधारा व उद्देश्यों से जरा भी नहीं भटका है। शताब्दी वर्ष में संघ का समाज में पंच परिवर्तन लाने पर विशेष ध्यान है। इसमें ‘‘सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब प्रबोधन, स्वदेशी जीवनशैली और नागरिक कर्तव्य’’ शामिल हैं। इन पंच परिवर्तन से सामाजिक जीवन में अनुशासन, देशभक्ति और नागरिक सहभागिता बढ़ेगी। इससे राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और राष्ट्रोन्नयन की आधारभूमि तैयार होगी। संघ के स्वयंसेवकों में स्वावलंबन,अनुशासन और सेवा भावना का विकास करने हुतु सतत प्रयास चलते हैं ताकि वे समाज की सेवा कर सकें। 

मुझे गर्व है कि आज भारत ही नहीं दुनिया में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा सामाजिक संगठन होना दुर्लभ है जो अविरल अनथक रूप से समाज सेवा के साथ राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध है। वन्देमातरम्......

▪️लेखक : भूपेंद्र सिंह , पूर्व गृहमंत्री, पूर्व सांसद और खुरई से विधायक है।

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