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"आजादी का अमृत महोत्सव" ★ इतिहास लेखन के लिए हमें गांव की ओर जाना होगा जहां असंख्य अनाम शहीद है:डॉ सुधांशु झा ★ बुद्धिज्म पर जल्द ही ऑनलाईन कोर्स भी-कुलपति प्रो. आशा शुक्ला

"आजादी का अमृत महोत्सव"

★ इतिहास लेखन के लिए हमें गांव की ओर जाना होगा जहां असंख्य अनाम शहीद है:डॉ सुधांशु झा

★ बुद्धिज्म पर जल्द ही ऑनलाईन कोर्स भी-कुलपति प्रो. आशा शुक्ला

महू (इंदौर)। 'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमृत महोत्सव के अवसर पर आजादी के नायकों का और सम्पूर्ण आजादी का स्मरण करना हम सबके लिए गौवर की बात है. हमारी आजादी क इतिहास उस आमजन, ग्रामीण और किसान के उत्सर्ग का स्मरण किए बिना पूरा नहीं हो सकता जिन्होंने देश की आजादी के लिये अपने प्राणों का न्योछावर कर दिया।' यह बात केन्द्रीय विश्वद्यिालय साउथ बिहार में सेंटर फॉर हिस्टोरिकल एवं आर्कालॉजिकल विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधांशु कुमार झा ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नवीन परिप्रेक्ष्य : ग्रामीण बिहार प्रतिबिंब' को संबोधित करते हुए कहा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इतिहास लेखन के लिए हमें गांव की ओर जाना होगा जहां असंख्य अनाम शहीद हैं जिनके बारे में हम जानते भी नहीं हैं. दुनिया भर में भारत का स्वाधीनता आंदोलन अतुलनीय है. उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन अहिंसक था लेकिन अंग्रेजी शासक ने अहिंसा का जवाब हिंसा से दिया.  
लार्ड बुद्धा चेयर बीआर अम्बेडकर यूर्निवसिटी ऑफ सोशल साइंस एवं हेरीटेज सोसायटी पटना के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित वेबीनार संगोष्ठी में डॉ. झा ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में ऐसी कई घटनाएं हैं जब अंग्रेजों ने निहत्थे अहिंसक आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाकर उन्हें शहीद कर दिया. ग्रामीण भारत की चर्चा करते हुए डॉ. झा ने कहा कि महात्मा गांधी का आंदोलन चम्पारण से शुरू होता है. गांधीजी का सविनय अवज्ञा आंदोलन बिहार से ही आरंभ होता है. उन्होंने इतिहास लेखन की चर्चा करते हुए इस बात की चिंता जाहिर की कि इतिहास लेखन में कई धाराओं ने कार्य किया लेकिन दुर्भाग्य से कुछ लोगों ने कुछेक नेताओं तक ही स्वाधीनता संग्राम को केन्द्रित कर दिया. उन्होंने कहा कि स्वाधीनता संग्राम के लिए लडऩे वाले नेताओं के योगदान को ना तो कम किया जा सकता है और ना ही विस्मृत लेकिन नए भारत में इतिहास लेखन में ग्रामीण समाज के योगदान को रेखांकित किया जाना चाहिए.।

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डॉ झा ने अपनी चर्चा में स्वाधीनता संग्राम में मध्यप्रदेश के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश शहीद चंद्रशेखर की जन्मस्थली और कार्यस्थली रही है. उन्होंने गुंडादाई, बेया बाई, बिरजू गोंड जैसे शहीदों का उल्लेख करते हुए कहा कि घास काटते निहत्थे लोगों को अंग्रेजी पुलिस ने अपनी गोली का शिकार बना दिया. बैतूल जंगल सत्याग्रह का उल्लेख करते हुए डॉ. झा ने कहा गुंजन सिंह के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह में कौमा गोंड पुलिस गोली का शिकार होकर शहीद हो गए. ऐसे अनेक नाम है जिन्हें तलाश कर स्वाधीनता संग्राम के दस्तावेज का हिस्सा बनाना है. उन्होंने बिहार के मुंगेर का उल्लेख करते हुए कहा कि यहां भी पुलिस ने निहत्थे 17 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. जब सवाल उठा तो कहा गया कि चार हजार की भीड़ थाने पर हमला करने आयी थी जबकि सच्चाई यह है कि आज भी उस जगह पर चार हजार लोग इक_ा नहीं हो सकते हैं. उन्होंने अंत में कहा कि ग्रामीण भारत के योगदान को रेखांकित कर अमृत महोत्सव को गौरवशाली बनाया जा सकता है.
कार्यक्रम के आरंभ में अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने कहा कि नई पीढ़ी को यह बताना होगा कि आजादी के लिए हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. आजादी ऐसे ही नहीं मिल गई है. नई पीढ़ी को हमारे शहीद पुरखों से परिचय कराना होगा और इसके लिए इतिहास लेखन की आवश्यकता है. उन्होंने आश्वस्त किया कि विश्वविद्यालय पुस्तकाकार में विद्वान लेखकों के विचारों का प्रकाशन करेगा. कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय एवं आभार प्रदर्शन हेरिटेज सोसायटी, पटना के महानिदेशक अनंतआशुतोष द्विवेदी ने दिया और कार्यक्रम का संचालन ब्राउज के डॉ. अजय दुबे ने किया. विशेष सहयोग प्रोफेसर डीके वर्मा, डीन सोशल साइंस एवं रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा का रहा.

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