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फिर याद आये बैतूल के कुंजीलाल,,,,,

फिर याद आये बैतूल के कुंजीलाल,,,,,

ब्रजेश राजपूत /सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट

आज के इस कालम के लिये बहुत माथापच्ची के बाद कुछ और विषय सोचा था मगर सुबह सुबह आये कुछ वाटस अप ने पुरानी याद से जोड दिया। खबर बैतूल जिले से आयी जहां के सेहरा गांव में रहने वाले कुंजीलाल नहीं रहे। अब आप पूछेंगे कौन कुंजीलाल तो उसके लिये आपको चौदह साल पीछे ले जाना चाहूंगा। सेहरा गांव के साधारण से ज्योतिषी कुंजीलाल 2005 के इन्हीं अक्टूबर के दिनों में तब अचानक लाइम लाइट में आ गये थे जब हम स्टार न्यूज के संवाददाता थे और खबर मिली थी कि बैतूल जिले के किसी अंजान से ज्योतिषी ने करवा चौथ के रोज अपने मरने की भविष्यवाणी की है और उस पर तडका ये है कि उसकी बीबी ने करवा चौथ का व्रत रखा है और दावा किया है कि वो सावित्री बनकर अपने सत्यवान को यमराज के मुंह से छीन लायेगी। भविप्यवाणी वो भी अपनी ही मौत की सुनने में ही रोमांच पैदा करती है और उस पर पत्नी के करवा चौथ उपवास का टिवस्ट सब कुछ फिल्मी था और उन दिनों टेलीविजन पर खबरों से खेलने और उनको खींचने का नया नया फैशन चलना शुरू ही हुआ था। रोमांचक या मसालेदार खबरों को देर तक खींचते हुये दिखाने को न्यूज चैनल की भाषा में खेलना कहते हैं। 
सो हमारा दफतर इस खबर को खेलने की तैयारी में था इसलिये हम तडके ही बैतूल के पास के गांव सेहरा में दल बल यानिकी अपनी कैमरा टीम और ओवी यानिकी आउटडोर ब्राडकास्ट वैन के साथ मौजूद थे मगर ये देखकर हैरान थे कि इस अंजान से गांव में हम अकेले ही मीडिया वाले नहीं थे। भोपाल से सारे राप्टीय चैनलों और क्षेत्रीय चैनलों के हमारे साथी भी उसी अंदाज और उसी तैयारी से आये थे जिस तैयारी से हमें भेजा गया था। अंदाजा हो गया था कि आज मुकाबला कडा होना है। तब पीपली लाइव फिल्म नहीं आयी थी वरना हम कहते कि आज तो सेहरा गांव में पीपली लाइव होने वाला है खैर वो कुंजीलाल का दिन था और टीवी न्यूज चैनलों पर इतिहास बैतूल के उस छोटे से गांव में लिखा गया। जब सुबह तकरीबन दस बजे से चैनलों ने कुंजीलाल की कथित भविष्यवाणी का असर देखने के लिये लगातार कई घंटे लाइव कवरेज किया। सुबह से दोपहर हो गयी और दोपहर से शाम कंुजीलाल और उनका गांव टीवी चैनलों पर नानस्टाप खबर बना रहा। हम और हमारे दूसरे मीडिया मित्र कंजीलाल की हर हरकत और उनके छोटे से घर में हो रही हर हलचल पर बिना पलके झपकाये नजर रखे हुये थे और उधर स्टूडियो भी विद्वानों से सजे हुये थे। हमें दिन भर  खाना पीना तो छोडिये उस छोटे से गांव में अचानक आये ढेर सारे लोगों के लिये पानी भी मुश्किल से मिल रहा था और उस पर टीवी चैनल के लिये नानस्टाप लाइव कमेंटी करना कितना तनाव का काम होता है टीवी में काम करने वाले हमारे साथी ही जानते हैं। एक तरफ आपको घटनास्थल पर हो रही हलचलों पर नजर रखना है तो दूसरी तरफ चैनल पर लाइव भी रहना है। इस सब में कहां भूख प्यास। हम सारे साथियों का इस तरह लगातार लाइव रहने का ये पहला पहला अनुभव था। बाद में तो ऐसी बहुत घटनाएं हुयीं मगर टीवी न्यूज चैनल का इस तरह दिन भर किसी घटना को लाइव दिखाने का ये पहला मौका था। दिन भर की सच्ची झूठी कथा कहानी के बाद शाम को कुंजीलाल का बाल भी बांका नहीं हुआ और हम सब चैनल वालों ने फिर उनकी अच्छी लानत मलानत की। मगर कुंजीलाल टीवी चैनलों के इतिहास में इतना लंबा कवरेज पाकर अमर हो गयेे थे। आमिर खान प्रोडक्शन की अनुषा रिजवी के डायरेक्शन में बनी फिल्म पीपली लाइव में भी ऐसे ही किरदार को नत्था के रूप में दिखाया गया था कि जिसमें एक किसान अपनी मौत की भविप्यवाणी करता है और देश भर का मीडिया उसके गांव में आ जाता है और अच्छा खासा मजमा तमाशा कई दिनों तक जम जाता है। हमारे कुंजीलाल को भी बाद में गुमान हो गया था कि उनकी कहानी पर ही आमिर खान ने फिल्म बनायी है इसलिये उन्होंने आमिर खान को नोटिस भेज कर हर्जाना मांगा था मगर उनको कुछ फायदा नहीं हुआ। 
सेहरा गांव से तो हम लुट पिट कर आ गये थे और अगले दिन अखबारों ने टीवी चैनलों की खूब खबर ली। बहुत भला बुरा कहा खबर और संपादकीय तक लिखे गये उन दिनों की अखबारों की कटिंग्स इस दीवाली की सफाई तक मेरे पास थीं मगर चौदह  साल बाद ये सोच कर कि अब इनका क्या करना कबाड वाले को दे दीं मगर उस घटना के चौदह साल और छह दिन बाद कुंजीलाल नब्बे साल की उमर में इस दुनिया से चले गये। और इस बार उन्होंने कोई भविप्यवाणी नहीं की कि वो कब जायेंगे। हांलाकि इन सालों में उनकी पत्नी उनको पहले ही छोड कर जा चुकी थी। उनके बारे में कभी कभी कुछ अखबार वाले कुछ छापते थे तो मेरे बैतूल के दोस्त वामन पोटे और अकील अक्कू मुझे वो जरूर भेजते थे। टीवी रिपोर्टिंग के किस्सों की मेरी किताब आफ द स्क्रीन में भी कंुजीलाल की कहानी का जिक्र है सोचा था कि कभी इस किताब के सारे किरदारों पर एक बार फिर कहानी करने निकलूंगा तो शुरूआत बैतूल के सेहरा गांव से ही करूंगा और कुंजीलाल से मिलकर पूंछूगा कि उस मीडिया कवरेज के बाद जिंदगी में क्या क्या बदलाव आया। मगर जिंदगी में सारे सवालों के जबाव कहां मिल पाते हैं। आदरणीय कुंजीलाल को विनम्र श्रद्धांजलि...
ब्रजेश राजपूत, 
एबीपी न्यूज़,
भोपाल
( ये सारी तस्वीर २००५ की ही हैं )
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