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मनौती पूरी होने पर निकलते है आग के अंगारों मे से ★ 9दिसंबर से 21दिसंबर तक लगेगा मेला, ★ लगातार 32 वर्षों से अधिक वर्षों से अग्निकुंड मेले में निकल रहे हैं पूर्व विधायक सुनील जैन

मनौती पूरी होने पर निकलते है आग के अंगारों मे से
★ 9दिसंबर से 21दिसंबर तक लगेगा मेला, 
★ लगातार 32 वर्षों से अधिक वर्षों से  अग्निकुंड मेले में निकल रहे हैं पूर्व विधायक सुनील जैन

★राकेश यादव, देवरी











देवरीकलां। प्रतिवर्ष भरा जाने वाला देव श्री खंडेराव जी के मेले का शुभारंभ गुरुवार को प्रारंभ हो गया है मंदिर के पुजारी के अनुसार आग के अंगारों पर से निकलने की यह परंपरा मंदिर निर्माण के साथ 400 वर्ष पुरानी है इस बार यह मेला 9 दिसंबर से 18 दिसंबर तक चलेगा। 

देवरी नगर के पूर्व विधायक सुनील जैन लगातार 32 वर्षों से अग्निकुंड मेले में से निकलती आ रहे हैं उन्होंने बताया कि देश में अमन चैन एवं शांति बनी रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ में हर वर्ष निकलता रहता हूं एवं आगे भी निकलता रहूंगा इस मेले में मेरी पत्नी श्री मतिनिधि जैन सहित परिवार के लोग भी निकलते हैं आज अग्निकुंड मेले में से सैकड़ों लोगों वैसे रात भर यादव डीपी रिछारिया अनुराधा कौशिक वंदना दुबे सहित सैकड़ों लोग निकल श्रद्धालुओं द्वारा मांगी गई मन्नत पूरी होने पर पीले वस्त्र धारण कर के मंत्र उच्चारण के साथ देव श्री खंडेराव महाराज की पूजा अर्चना का नंगे पैर आप के दशक के अंगारों पर से निकलते हैं इस मेले में कई राज्यों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।





कहां स्थित श्रीदेव खंडेराव जी का मंदिर 

सागर से दक्षिण में 65 किलोमीटर व नरसिंहपुर से उत्तर में  75 किलोमीटर दूरी पर सागर,नरसिंहपुर मार्ग पर देवरी कलां में स्थित है। यह प्रचीन भव्य व ऐतिहासिक आलोकिक मंदिर है। यहां प्रति वर्ष अगहन शुक्ल में चम्पाछठ से पूर्णिमा तक दिसंबर माह मे मेला लगता है। इस दिव्य मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक यहाँ षष्ठी से पूर्णिमा तक भक्त गण अपनी मनोकामना पूरी होने पर नंगे पैर आग पर से चलते है।

श्रीदेव खंडेराव कथा

खंडेराव मंदिर का इतिहास और महत्ता के अनुसार प्राचीन समय में मणिचूल पर्वत पर वहां कि प्राकृतिक छठा से मुग्ध होकर ऋषि लोग परिवार वहां वास कर हवन जप व पूजा कर अपनी तपस्या करते थे। इसी बीच वहां मणि व मल्ल नामक दो राक्षसों द्वारा उत्पात मचाकर यज्ञ देवी आपवित्र कर संमस्त संतो को घोर यातना देना शुरू कर दिया ऋषि वालावों के साथ अत्याचार किया। ऋषियों को गल मं रस्सी बांधकर कूपों में डुबाया इस प्रकार की अनेक यातनायें ऋषियों देकर  तपस्या विध्वंश कर दी। इस प्रकार पीडि़त संतो ने देवराज इन्द्र की शरण ली व सारा वृतांत देवराज को सुनाया देवराज वृतान्त सुनकर अत्यंत दुखित हुये परंतु इन राक्षसों का वंध करने में अपनी असमर्थता जताई उन्होने कहां कि ये दोनों राक्षस ब्राह्रमा से वरदान प्राप्त हैं अतः में इन्हें मारने (वध करने) में असमर्थ हूं। हम और आप सब श्रीहरि की शरण मे जाकर सारा वृतांत सुनायें शायद वे अपनी सहायता कर सके। अतः श्री देव ने यह अवतार धारण किया राजसी वैश धारणकर घोडे पर सवार हुये उसके बाद मल्ल से युद्ध कर उसका वध किया तब उसके द्वारा वरदान मांगा गया कि मेरा नाम आप के साथ जुड़ना चाहियें ताकि मेरा नाम भी अमर रहें आदि।




इस प्रकार दोनों राक्षसों को दिये गये वरदान की पूर्ति हेतु श्री देवाअधि देव महादेव द्वारा राजसी वस्त्र घोड़े की सवारी व गंगा पार्वती का इक्ट्ठा रूप म्हालसा आई के रूप में अपने साथ बिठाकर भक्तों का कल्याण करते हैं आदि।

महाराष्ट्र का देवता बुंदेलखंड मैं
मणिचूल पर्वत महाराष्ट्र की सीमा पर होने से श्रीदेव उपासक महाराष्ट्र प्रांत में अधिक है। महाराष्ट्र में कुलदेवता के रूप में पूज्य हैं।

आग से निकलते है श्रृद्धालु-

आग से निकलने की प्रथा भी मंदिर निर्माण के  समकक्ष है। राजा यशवंत राव जी के एक लोते पुत्र युवराज किसी अज्ञात बीमारी से ग्रसित होकर मरणासन्न स्थिति में थे तक राजा यशवंत राव जी द्वारा देवखंडेराव जी से प्रार्थना कर कहां गया कि आप का दिया हुआ यह पुत्र है। इसकी रक्षा करें उसी रात राजा यशवंत राव जी पुनः श्री देव ने दर्शन  देकर कहां कि तुम मेरे दर्शन में जाकर हल्दी के उल्टे हाथ लगाकर प्रार्थना करों। एक लबं व चौड़े गड्डे नाव की आकृति के में करीब 1 मन लकड़ डालकर जलाकर विधि विधान से आपकी पूजा कर ठीक दिन में12 बजे नंगे पैर आग पर चलूंगा मेरा बेटा ठीक हो जावें। श्री देवी ने उनकी प्रार्थना सुनी व राजा के पुत्र को ठीक किया तब से यह प्रथा प्रारंभ है। जो आज भी चलती जा रही हैं। दस दिन में करीब 700 के आसपास श्रद्धालु नंगे पैर आग पर चलकर अपनी मनौती पूरी करते है। 
मंदिर की विशेषता





मंदिर के निर्माण की एक बड़ी ही अनोखी विशेषता हैं कि मदिर में बने दक्षिण तरफ के ताक के सूर्य की रोशनी अगहन सुदी षष्टी को ठीक 12 बजे पिण्ड पर पड़ती है जो कि एक दर्शनीय है।
पुजारी के अनुसार- सन् 1850 से वैद्य परिवार के पास मंदिर है जो कि उनकी सेवा करते हैं, मंदिर प्रबंधक  श्री नारायण मल्हार वैद्य देव प्रधान के पुजारी हैं, वही सबसे छोटे भाई विनायक मल्हार वैध मेले व उत्सव का प्रबंध देखते हैं।
मनोती माँगना बोलना करना 
प्रथा है कि श्री देव मंदिर में हल्दी के उल्टे हाथ लगा अपनी मनोकामना कहे कार्य होने पर हाथ सीधे करना आवश्यक है जो बोलना कि वह पूरा करें नारियल बांधने की प्रथा है यह धन्य कहलाता है कार्य जैसे ही पूरा हो नारियल तत्काल फोड़ना  चाहिए यदि इस कार्य में विलंब करते हैं तो आगे भी कार्य अवरुद्ध होता है।
स्थानीय प्रशासन का सहयोग-  
देवरी माननीय एसडीएम का सहयोग प्राप्त है और पुलिस स्थानीय शासन,नगर पालिका  देवरी व नगरवासियों को भरपूर सहयोग होने से वे ( अग्नि झुण्डों मेंसे निकलने वालों की संख्या को देखते हुये मेले की अवधि 5 से बडाकर 10 दिन करनी पड़ी। )
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