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मानवता का संचार अहिंसा के बिना संभव नहीं है : ऐलक श्री सिद्धान्त सागर जी

मानवता का संचार अहिंसा के बिना संभव नहीं है : ऐलक श्री सिद्धान्त सागर जी

सागर। अहिंसा मानवता का प्रतीक है मानवता का संचार अहिंसा के बिना संभव नहीं है मानव अधिकार रक्षा की बात जब की जाती है तब यह सोच भीतर से आना चाहिए कि अहिंसा का आदर किए बिना मानव अधिकार की रक्षा होना संभव नहीं है।उक्त आशय के विचार परम पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी के शिष्य ऐलक श्री सिद्धान्त सागर जी महाराज ने श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान के समापन के अवसर पर दिए।ऐलक श्री ने कहा
 प्रत्येक युद्ध के बीच शोषण और अधिकारों को बनाने की बात ही देखी जाती है। अधिकार बढ़ाने के लिए लोग सब कुछ प्रयास करते हैं। अधिकारों का लोभ मानवता के प्रति अपराध करने के लिए प्रेरित कर देता है। जब मानवता अपमानित होने लगती है तब वह आप यह निश्चित कर लेना कि कहीं ना कहीं हिंसा अपना सिर उठा रही है। जब भी विवाद हुए हैं पहले मानव के दिल और दिमाग में क्रूरता आती है, व्यक्ति अपने स्वार्थ में जब अंधा हो जाता है तो व्यक्ति क्रूरता के प्रति समर्पित हो जाता है,अतः हम यह कह सकते हैं की क्रूरता ही हिंसा का आधार बनती है। जहां हिंसा फैल जाती है वहां पर अकाल, दुर्भिक्ष ,भूकंप और महामारी फैलने लगती है।  मांसाहार, नशाखोरी, वेश्यावृत्ति और अवैध संबंधों से हिंसा फैलती है। यदि मानव को मानवता के सम्मान के लिए खड़ा करना है तो हमें अहिंसा की शरण में जाना होगा, तभी हम मानवता का सम्मान निर्धारित कर सकते हैं।
मुनीसेवा समिति सदस्य  मनोज जैन लालो ने बताया सुबह विधान के समापन पर विश्व शांति यज्ञ, हवन विधानाचार्य ब्रह्मचारी संजीव भैया कटंगी,अमित भैया सहज,प्रिंस भैया के द्वारा कराया गया।इसके बाद श्री जी की शोभायात्रा निकाली गयी जो वर्धमान कॉलोनी से शुरू होकर बडा बाजार होती हुई वापिस श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ,वर्धमान कॉलोनी पहुची,जहाँ श्रीजी का अभिषेक,शांतिधारा की गई।

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