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‘स्वतंत्रता आंदोलन में बुंदेलखंड के वीर सेनानियों का योगदान’ विषय पर वेबीनार ★ 1842 में बुंदेला विद्रोह ने अंग्रेजों की नींद उड़ाई- डॉ. सिरोठिया

'स्वतंत्रता आंदोलन में बुंदेलखंड के वीर सेनानियों का योगदान' विषय पर वेबीनार

★ 1842 में बुंदेला विद्रोह ने अंग्रेजों की नींद उड़ाई- डॉ. सिरोठिया

महू (इंदौर). 'भारतीय स्वाधीनता संग्राम में बुंदेला विद्रोह सबसे पहले 1842 में हुआ था जिसने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी. सागर जिले के बलेहा गांव से 44 की संख्या में लोगों ने आजादी की लड़ाई में भागीदारी की.' यह बात वरिष्ठ लेखक एवं गीतकार डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया ने कहा. डॉ. सिरोठिया डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू एवं हेरिटेज सोसायटी पटना के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर 'स्वतंत्रता आंदोलन में बुंदेलखंड के वीर सेनानियों का योगदान' विषय पर विशिष्ट वक्ता की आसंदी से संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि 1921 में सागर में रतौना कसाईखाना का आंदोलन ने देशव्यापी पहचान दी. इसका आंदोलन का मुखर विरोध भाई अब्दुल गनी खान ने किया था. इसकी सूचना जब पंडित माखनलाल चतुर्वेदी को मिली तो अपनी यात्रा अधूरा छोडक़र वे सागर आए. उनका पत्र 'कर्मवीर' में आंदोलन के समर्थन में लगातार लेख प्रकाशित हुआ. बाद में उनके आग्रह पर लाला लाजपत राय ने 53 लेखों का प्रकाशन किया. उग्र विरोध के बाद रतौना कसाईखाना बंद करने का निर्णय अंग्रेजी शासन को लेना पड़ा. उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में उन तमाम लोगों का स्मरण किया जिनके बिना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा है. अनेक अनुछूये संदर्भों का उल्लेख करते हुए डॉ. सिरोठिया ने बताया कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को झांसी सौंपने से इंकार कर दिया था. तब अंग्रेजों ने उनके 6 लाख हड़प लिया था और 6 हजार रुपये प्रीविपर्स देना तय किया तो रानी ने लेने से मना कर दिया. उन्होंने बताया कि रानी द्वारा चपाती और कमल फूल अभियान आरंभ किया गया. यह चपाती आजादी के दीवाने अपने साथ लेकर निकलते थे और अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने पर खाने की सामग्री बताकर स्वयं को बचा लेते थे. सच तो यह था कि ये लोग राजाओं के पास जाते और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई का साथ देने के लिए आमंत्रण देते. जो राजा चपाती स्वीकार कर लेता तो मान लिया जाता कि उन्होंने सहमति दी है.   

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उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के साथ मिलकर विश्वासघात भी किया गया था. उन्होंने मई, 1842 की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि पॉलिटिकल एजेंट के साथ मिलकर हीरापुर के राजा को गिरफ्तार कर लिया गया. 27 तरह के करारोपण के खिलाफ बुंदेला राजाओं ने अंग्रेजी शासने के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. उन्होंने रामगढ़ की रानी अवंतिबाई का उल्लेख करते हुए उनकी वीरता की कहानी को सप्रसंग सुनाया और कहा कि जब वे अंग्रेजों से घिर गईं तो अपने सहयोगी के हथियार से स्वयं को खत्म कर शहीद हो गईं. डॉ. सिरोठिया ने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी कई कविताओं की पंक्तियों का वाचन भी किया. 
कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि ब्राउस सामाजिक दायित्व के साथ कार्य कर रहा है. इस श्रृंखला में अमृत महोत्सव के अवसर पर स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का स्मरण किया जा रहा है. वेबीनार का संचालन डॉ. विशाल पुरोहित ने किया तथा आभार योगिक साइंस विभाग के  डॉ. अजय दुबे माना. कार्यक्रम के सह-संयोजक हेरिटेज सोयायटी के महानिदेशक श्री अनंताशुतोष द्विवेदी ने विषय के बारे में जानकारी दी एवं विशेष वक्त डॉ. सिरोठिया  का स्वागत किया. वेबीनार के सफल संचालन के लिए डीन डॉ. डीके वर्मा एवं रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा के साथ विश्वविद्यालय परिवार का सहयोग रहा.।


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