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डॉ गौर का दर्शन मौजूदा दौर में अधिक प्रासंगिक: प्रो डी पी सिंह, अध्यक्ष विवि अनुदान आयोग


डॉ गौर का दर्शन मौजूदा दौर में अधिक प्रासंगिक: प्रो डी पी सिंह, अध्यक्ष  विवि अनुदान आयोग 

 

★ डॉ हरीसिंह गौर हम सबके लिये आदर्श . प्रो बलवंत शांतिलाल जानी

★ डॉ हरीसिंह गौर हम सबके प्रेरणा स्रोत . प्रो जनक दुलारी आही


सागर। सागर  विश्वव्यिालय के संस्थापक प्रख्यात विधि वेत्ता संविधान सभा के सदस्य दानवीर शिक्षा विद एवं समाज सुधारक डॉ हरीसिंह गौर के १५१ वा जन्म दिवस समारोह बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रात ८ बजे से कटरा बाजार में स्थित गौर प्रतिमा पर  कुलपति प्रो जनकदुलारी आही द्वारा माल्यार्पण कर किया गया। जिला प्रशासन द्वारा प्राप्त अनुमति एवम कोविड १९ के सुरक्षा मानको का अनुपालन करते हुये शोभायात्रा गौर मूर्ति कटरा बाजार से गौर वाचनालय और गौर जन्म स्थली गौर स्मारक होते हुये विश्वविद्यालय परिसर तक सीमित संख्या में अधिकतम निकाली गई। 

समारोह के द्वितीय चरण मे विश्वविद्यालय परिसर स्थित डॉ गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और डॉ गौर समाधि पर पुष्पांजलि समर्पित की। इस अवसर पर कुलपति  के साथ ही जिलाधीश सागर  दीपक सिह  ने विश्वविद्यालय परिसर स्थित डॉ गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और डॉ गौर समाधि पर पुष्पांजलि समर्पित की। जिलाधीश  ने कहा कि उन्होने सागर शहर मे सभी के दिलो मे गौर साहेब के प्रति एक अटूट श्रद्धा देखी ।




सरस्वती वंदना एवं गौर गीत की संगीत विभाग द्वारा प्रस्तुत किया गया। सर गौर वृतचित्र का प्रसारण किय गयाण्  स्वागत उद्बोधन कुलपति प्रो जनकदुलारी आही द्वारा दिया। उन्होंने अपने उद्बोधन में विगत वर्ष में विश्वविद्यालय को प्राप्त उपलब्धियों के बारे में बताया ।


मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष  प्रो डी पी सिंह ने अपने विचार रखे। प्रो डी पी सिंह ने कहा कि सागर विष्वविद्यालय की स्मृतियाँ आज भी हमारे सांसों में विद्यमान है। डाॅ. गौर का पूरा जीवन और कर्म हमारी श्रद्धा का आधार है। कोई भी विष्वविद्यालय षिक्षकों की प्रतिभा, शोध और लगाव के लिए जाना जाता है। इस अर्थ में सागर विष्वविद्यालय निष्चित रूप से उन्नयन की तरफ बढ़ रहा है। आज के दिन हमें यह विचार करना होगा कि हम डाॅ. गौर के सपनरें को किस तरह संपूर्णता में पूरा कर सकते हैं। मैं अपने शीक्षक साथियों का आह्वान करता हूँ कि वे डाॅ. गौर के महान व्यक्तित्व की प्रेरणा ले कर अपने विद्यार्थियों के भीतर वैज्ञानिकता, तार्किकता और सात्विकता का संचार करें। आज के समय में डाॅ. गौर के विचारों की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गयी है। डाॅ. गौर का शैक्षिक दर्षन, समाज-सुधार के विचार आदि इस बदलती हुई दुनिया के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। प्रो डी पी सिंह ने कहा कि  मुझे ऐसा मेहसूस हो रहा ह मानो मै आज सागर मे हू और गौर मूर्ति व गौर समाधि पर उनको प्रणाम करते हुये माल्यार्पण कर रहा हू।



विशिष्ट अतिथि कुलाधिपति प्रो बलवंतराय शांतिलाल जानी  ने अपने उद्बोधन में कहा कि डाॅ. गौर केवल सागर या बुन्देलखंड के ही नहीं पूरे भारत के प्रज्ञावान सपूत रहे हैं। डाॅ. गौर अपने समय में लोकल के लिए वोकल थे, जिसका विरल उदाहरण है, हमारा यह विष्वविद्यालय। वे सामाजिक स्तर पर, राजनैतिक स्तर पर और ज्ञान-विमर्ष के स्तर पर भी नये प्रतिमान स्थापित करने वाले व्यक्तित्व थे। उनकी लिखी हुई पुस्तकें विधि शास्त्र, साहित्य व दर्षन के क्षेत्र में दुनिया भर में आदर का केन्द्र रही हैं। उनके ज्ञान-दान के महत्व को स्वीकार करते हुए मैं कह सकता हूँ कि डाॅ. सर गौर भारतीय ऋषि परम्परा के आधुनिक स्वरूप थे।


कार्यक्रम में डेलीगेसी अध्यक्ष प्रो सुरेश आचार्य ने कहा कि डाॅ. सर गौर इस धरा-धाम के लिए अद्वितीय प्रेरणास्रोत हैं। वे एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने हौसले से बुन्देलखण्ड के ज्ञान और बोध के स्तर को बदल दिया था। उनका जीवन और कार्य आज भी हमारा मार्ग प्रषस्त कर रहे हैं। उन्होंने अपने सामाजिक कर्म से बल्कि लेखन से भी साहित्य की पूर्व से विद्यमान अवधारणाओं को परिवर्तित कर नये मानदंड स्थापित किया। आज उनके विचारों से नयी पीढ़ी को जोड़ने के लिए आवष्यक है कि उनकी लिखी पुस्तकों को भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराया जाय। 






कुलपति प्रो जनकदुलारी आही ने कहा डाॅ. हरीसिंह गौर अपने समय के प्रखरतम मेधा थे। आपने जीवन-भर षिखरों की यात्राएँ की, विचारों के खुले आकाश में आप विचरते रहे, किन्तु अपनी मातृभूमि सागर के उत्थान का स्वप्न आपके दिलो-दिमाग में हमेषा जगमगाता रहा। इन्हीं भावनाओं को मूर्त रूप देते हुए आपने इस विष्वविद्यालय की स्थापना की। हमें गर्व है कि हम डाॅ. गौर जैसे एक कर्मठ एवं दूरदर्शी संस्थापक के सपनों हिस्सेदार हैं। अपने संस्थापक से प्रेरणा लेकर हम अपने विद्यार्थियों को रचनात्मक, नवाचारधर्मी एवं ऊर्जावान्  बनाने हेतु संकल्पित हैं। डाॅ गौर अपने समय के अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व थे। उनकी पहुँच लगभग सभी ज्ञान-अनुशासनों में थी, उनका स्वप्न शिक्षा से वंचित मनुष्यता को ज्ञान के उजाले से रोषन करना था। डाॅ. गौर द्वारा स्थापित यह ज्ञान-पुंज निरन्तर प्रगति कर रहा है।

कुलपति प्रो जनकदुलारी आही ने जिला प्रशासन जन प्रतिनिधि वर्ग शहरवासी पुराछात्र मीडिया प्रतिनिधी वर्ग एवम विश्वविद्यालय परिवार के प्रति धन्यवाद दिया

कार्यक्रम में ऑनलाइन मोड के माध्यम से पुस्तकों का विमोचन मेधावी छात्र छात्राओ का सम्मान एवम पुरस्कारों की घोषणा की गई।

कार्यक्रम के समापन अवसर पर प्रभारी कुलसचिव श्री संतोष सोहगौरा द्वारा सभी धन्यवाद ज्ञापित किया गया।  श्री सह्गोरा ने कहा कि गौर साहब की रचनाये कालजयी है।







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