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" लौटकर आना नही होगा " के लेखक प्रो जैन नहीं रहे ★ हिंन्दी साहित्य के प्रमुख समालोचक थे कांतिकुमार जैन ★ संस्मरण लेखन को साहित्य की केंद्रीय विधा में दिलाया स्थान @ राहुल सिलाकारी

" लौटकर आना नही होगा " के लेखक प्रो जैन नहीं रहे
★ हिंन्दी साहित्य के प्रमुख  समालोचक थे कांतिकुमार जैन
★ संस्मरण लेखन को साहित्य की केंद्रीय विधा में दिलाया स्थान


@ राहुल सिलाकारी 

 सागर । हिंदी के मूर्धन्य साहियकार, समालोचक प्रो कांतिकुमार जैन का आज लंबी बीमारी के बाद विध्यापुरम मकरोनिया स्थित निवास पर निधन हो गया । संस्मरण लेखन को हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान दिलाने वाले प्रो जैन की इस विधा की पहली पुस्तक का नाम " लौटकर आना नही होगा " था । 

हिंदी साहित्य के अग्रणी समालोचक प्रो कान्ति कुमार जैन का आज निधन हो गया । वो अपने पीछे पत्नी श्रीमती साधना और तीन पुत्रियां छोड़ गए ।उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर दीनन्दयाल नगर मुक्तिधाम में हुआ, मुखाग्नि उनके नाती सात्विक जैन ने दी । इस दौरान प्रो सुरेश आचार्य,कन्या महाविद्यालय हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ नरेन्द्र ठाकुर, राजा भैया राजपूत, आदि मौजूद रहे । 

 9 सितंबर 1932 को जिले के देवरिकला में जन्मे प्रो जैन ने सागर विवि से हिंदी साहित्य में एमए गोल्ड मैडल लेकर की । विभिन्न महाविद्यालयों में शिक्षण कार्य के बाद 1978 में वे सागर विवि के हिंदी विभाग में नियुक्त हुए, जहां विभागाध्यक्ष, बुंदेली पीठ के निदेशक रहते हुए 1992 में सेवानिवृत्त हुए । हिंदी साहित्य में प्रो जैन देश के अग्रणी समालोचक रहे है । उन्होंने संस्मरण लेखन को हिंदी साहित्य में विधा के रूप में स्थापित किया ।

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 प्रो जैन ने छत्तीसगढ़ की जनपदीय शब्दावली पर शोध कार्य किया । उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों में तुम्हारा परसाईं, छत्तीसगढ़ी: बोली, व्याकरण और कोश, नयी कविता, भारतेंदु पूर्व हिंदी गध्य, कबीरदास, इक्कीसवीं शताब्दी की हिंदी सहित संस्मरण पर लिखी गईं लौटकर आना नहीं होगा, जो कहूंगा सच कहूंगा आदि प्रमुख हैं । प्रो जैन ने विवि के हिंदी विभाग की बुंदेली पीठ से पत्रिका" ईसुरी"  शुरू की जिसे पूरे देश के साहित्यजगत में प्रतिष्ठित स्थान मिला । साहित्यजगत के अनेक सम्मानों से सम्मानित प्रो जैन अनवरत देश की प्रमुख प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में साहित्य लेखन और समालोचनाये लिखते रहे । पिछले वर्ष ही  22 फरवरी को कलकत्ता की साहित्यिक  पत्रिका "लहक"  की ओर प्रो जैन  सागर आकर "मानबहादुर सिंह लहक" सम्मान से  सम्मानित किया था । यह प्रो जैन का आखिरी सार्वजनिक कार्यक्रम रहा ।


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