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जैन मंदिर ट्रस्ट को दान का मकान बताकर तोड़ने के मामले में मोदी परिवार की अपील खारिज : कोर्ट से स्टे रहेगा यथावत

जैन मंदिर ट्रस्ट को दान का मकान बताकर तोड़ने के मामले में मोदी परिवार की अपील खारिज : कोर्ट से स्टे रहेगा यथावत


तीनबत्ती न्यूज : 03 जुलाई ,2025

सागर। बड़ा बाजार की लुहार वाली गली में  जैन समाज के सागरोदय ट्रस्ट के लिए दान का बताकर हरीश विश्वकर्मा और रामप्रसाद विश्वकर्मा के निवास वाले  मकान को सामूहिक रूप से तोड़ने और बलात कब्जा करने के मामले में एक बार फिर सागर की स्थानीय अदालत से दानकर्ता संतोष मोदी और सुमित मोदी को राहत नहीं मिली है। मोदी ने    जिला न्यायाधीश विशेष कोर्ट (विद्युत अधिनियम-2003) प्रशांत कुमार सक्सेना के समक्ष अपील की थी। इसमें मोदी ने चतुर्थ व्यवहार न्यायाधीश मीनू पचौरी दुबे द्वारा विश्वकर्मा परिवार को दिए गए स्टे को खत्म करने की मांग की थी। लेकिन प्रशांत सक्सेना की अदालत ने  दोनों पक्षों की  सुनवाई के बाद पिछली अदालत के दिए गए फैसले को यथावत रखा है। 

मीडिया के सामने आया पीड़ित परिवार

पीड़ित विश्वकर्मा परिवार की तरफ से पैरवी कर रहे  एड. रामगोपाल उपाध्याय और हरीश विश्वकर्मा ने आज मीडिया के समक्ष अदालत के निर्णय संबंधी जानकारी दी।

उन्होंने  बताया कि  20 दिसंबर 2024 को भीड़ ने सामूहिक हमला कर मकान को  क्षतिग्रस्त कर दिया था। उसके बाद सागरोदय ट्रस्ट के जमीन के मामले में दो अन्य बड़े विवाद हुए। गौड़ बाबा वाले मंदिर हमले की घटना ने तनाव बढ़ा दिया था। प्रशासन ने इन मामलों में कम धाराओं में मामले दर्ज किए और उचित कार्यवाही नहीं की। 

पीड़ित हरीश विश्वकर्मा ने सिविल कोर्ट में गए। कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि मेरे पक्षकार के मकान को धन-बल व राजनीतिक प्रश्रय की दम पर तोड़ा गया। उसे बेदखल करने की कोशिश की गई। मोदी परिवार भले स्वयं को सागरोदय ट्रस्ट से अलग बता रहे हैं लेकिन सच ये है कि इन्हीं लोगों ने ट्रस्ट के लिए जमीन दान की है और मेरे पक्षकार को बेदखल कर उसके हिस्से पर ट्रस्ट की गतिविधियां करना चाहते हैं। एड. दुबे ने कहा कि, स्टे हटाने की मांग कर रहे मोदी बंधुओं व अन्य ने मेरे पक्षकार के पड़ोस में बने दो और मकान पर कब्जा करने की कोशिश की। उन्होंने वहां एक हिंदू मंदिर तोड़ा। जिससे शहर में तीन दिन तक वर्ग संघर्ष के हालात रहे। 

घटना के बाद बना ट्रस्ट


अधिवक्ता राम गोपाल ने बताया कि तोड़फोड़ की घटना के बाद ट्रस्ट बना है। लेकिन जब तोड़फोड़ की गई तो धार्मिक ट्रस्ट की आड लेकर पूरी घटना को अंजाम दिया गया। ये सभी तथ्य अदालत में रखे गए। अदालत के समक्ष मोदी बंधुओं ने कहा कि विश्वकर्मा बंधुओं ने दिगम्बर जैन समाज तथा सागरोदय तीर्थ क्षेत्र के न्यासियों को पक्षकार नहीं बनाया है। वादीगण ने शासन के जवाबदेह को भी पक्षकार नहीं बनाया है। मकान नबर 188 के स्वामित्व का दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं किया गया है। सागर नगर का श्री देव पारसनाथ मंदिर तथा श्रीदेव आदिनाथ मंदिर को सागरोदय तीर्थ के रूप में विकसित किया गया है, जो लोक न्यास अधिनियम के तहत विधिवत् पंजीकृत ट्रस्ट है। उक्त न्यास का विधान व नियमावली है। जिसमें लेख है कि मोदी परिवार का अथवा उनके उत्तराधिकारियों का अचल संपत्तियों में कोई अधिकार नहीं होगा। उनका विवाद से कोई लेना देना नहीं है, उन्हें अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है। वादीगण ने स्वीकार किया है कि गैरिज को ध्वस्त कर दिया गया है। मकान नंबर 189 को गैरिज वाला हिस्सा गिराया जा चुका है, जिसके स्वामी दिगम्बर जैन समाज तथा सागरोदय तीर्थ है, प्रतिवादीगण का उनसे कोई संबंध नहीं है। मकान नं. 189 को बदलकर 188 बुलाया जा रहा है। अतः अप्रचलनशील आवेदन सव्यय निरस्त किये जाने का अनुरोध किया है। 

दोनों पक्षों पर विचारण के बाद न्यायधीश सक्सेना ने आदेश पारित किया कि महत्वपूर्ण यह है कि जवाबदावे में प्रतिवादीगण स्वयः ही विवादित स्थल से अपना कोई संबंध न होना कहते है तथा यह भी सही है कि वादीगण ने अपने वादपत्र में प्रतिवादीगण के अतिरिक्त उन व्यक्तियों को पक्षकार नहीं बनाया है, जिनके नाम उन्होंने प्राथमिकी में लिखाए है। परंतु इस न्यायालय के मत में वादीगण का विशेष अधिकार है कि के संपत्ति के संबंध में किस व्यक्ति के विरूद्ध घोषणा चाहते है। जवाबदावे में प्रतिवादीगण ने सागरोदय दस्ट तथा दिगम्बर जैन समाज को पंजीकृत ट्रस्ट होना लेख किया है तथा उनके न्यासियों को पक्षकार न बनाया जाना क्षेपित किया है। अब प्रश्न यह है कि अभिलेख पर इन दोनों ही दूस्टों से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये गए है तथा प्रतिज्ञात किये गए इन तथ्यों का कोई प्रमाणन प्रतिवादीगण की ओर से भी नहीं किया गया। निः संदेह प्रतिवादीगण की स्वीकारोक्ति से भी प्रथम दृष्ट्या प्रकरण वादीगण के पक्ष में दर्शित होता है। आधिपत्य में खलल, सुविधा का संतुलन तथा अपूर्णीय क्षति को भी उनके पक्ष में दर्शित करता है। तब इस न्यायालय के मत में विचारण न्यायालय का आलोच्य निर्णय विधि एवं तथ्यों से परे नहीं है तथा ऐसे विधि सम्मत आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। परिणामस्वरूप अपीलार्थीगण के द्वारा प्रस्तुत यह विविध सिविल अपील विधिसम्मत न होने से निरस्त की जाती है। विचारण न्यायालय के आलोच्य आदेश की पुष्टि की जाती है।

अधिवक्ता ने कहा कि धर्म को कवच बनाकर  खुद की संपत्ति को दान में बताकर ट्रस्ट में बदला दिया। उन्होंने कहा कि लोकन्यास के नियमों का उल्लंघन भी ट्रस्ट के गठन में किया गया है। 

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