श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी 350 शताब्दी शहीदी दिवस पर 23 नवंबर को वाहन रेली और कीर्तन का आयोजन
तीनबत्ती न्यूज: 21 नवंबर, 2025
सागर : सिख गुरु श्री तेग बहादुर साहिब जी के 350 शताब्दी शहीदी दिवस पर अनेक आयोजन किए जाएंगे। शहीदी दिवस पर 23 नवंबर को वाहन रेली और 22 से 25 नवंबर तक कविता, शब्द कीर्तन श्री गुरुद्वारा भगवानगंज में आयोजित किए जाएंगे श्री गुरुसिंघ सभा सागर ने सभी से कार्यक्रम में शामिल होने की अपील की है।
विहिप के जिला अध्यक्ष अजय दुबे, गुरु सिंघ सभा के प्रधान सतविंदर सिंह होरा, जितेंद्र सिंह चावला, जस्सी सरदार और हिन्दू मंच के डा उमेश सराफ ने आज मीडिया से चर्चा की और श्री तेग बहादुर सिंह की शहीदी को याद करते हुए नमन किया। विहिप के अजय दुबे ने कहा कि हिंदू सिख सभी एक ही है। हम सभी गुरु तेग बहादुर सिंह और उनकी शहादत को नमन करते है। सागर में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में बढ़चढकर हिस्सेदारी होगी । जितेंद्र सिंह चावला ने कहा कि सिख गुरुओं की शहादत से भारत धर्म निरपेक्ष बना है। प्रधान सतविंदर सिंह होरा ने कार्यक्रम की जानकारी दी।
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ये है कार्यक्रम
23 नवंबर को विशाल वाहन रेली निकाली जाएगी। वाहन रेली रविवार को समय दोप. 2:30 बजे से शुरू होगी। विशाल वाहन रैली गुरुद्वारा गुरूअमर दास नगर भैंसा से प्रारंभ होकर शहर के मुख्य मार्गों से होती हुई शाम 6 बजे गुरुद्वारा श्री गुरूसिंघ सभा भगवानगंज पहुंचेगी।
*22 नवंबर शनिवार को हिन्द की चादर श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी पर केंद्रित बच्चो का विशेष कार्यक्रम- कविता, शबद कीर्तन समय- शाम 6 बजे से
*23 नवंबर 2025 को 350 साला शताब्दी श्री गुरुगोविन्द सिंह जी के गुरिआयी दिवस को समर्पित कीर्तन दीवान होगा। प्रातः 8:30 बजे समाप्ति श्री अखंड पाठ साहिब
प्रातः 9:00 से 11:00 बजे तक एवं शबद कीर्तन भाई आतमजीत सिंह जी अमृतसर द्वारा उपरांत अरदास एवं हुकुमनामा दोप. 11:15 बजे समाप्ति उपरांत गुरू का लंगर वरतेगा।
रात्रि दीवान रात्रि 7:30 बजे संध्या दा दीवान रात्रि 8:00 से 09:00 बजे तक शबद कीर्तन भाई आतमजीत सिंह जी अमृतसर द्वारा किया जावेगा
*24 नवंबर दिन सोमवार को कीर्तन दीवान प्रातः 8:00 बजे से 9:00 बजे तक शबद कीर्तन ज्ञानी गुरूवचन सिंह जी (हजूरी रागी) प्रातः 9:00 से 10:30 बजे तक एवं शबद कीर्तन भाई आतमजीत सिंह जी अमृतसर द्वारा शबद कीर्तन किया जावेगा . रात्रि दीवान रात्रि 7:00 बजे संध्या दा दीवानरात्रि 8:00 से 09:00 बजे तक शबद कीर्तन भाई आतमजीत सिंह जी अमृतसर द्वारा शबद कीर्तन किया जावेगा
*25 नवंबर 2025 दिन मंगलवार कोभाई मतिदास जी, भाई सतिदास जी और भाई दयाला जी के शहीदी दिवस को समर्पित कीर्तन दीवान
प्रातः 8:30 बजे समाप्ति श्री अखंड पाठ साहिब प्रातः 9:00 से 10:00 बजे आरती एवं शबद कीर्तन हजूरी रागी जत्था ज्ञानी गुरुवचन सिंह जी द्वारा प्रातः 10 बजे से दोप 12:00 बजे शबद कीर्तन भाई आतमजीत सिंह जी अमृतसर शबद कीर्तन किया द्वारा उपरांत अरदास एवं हुकुमनामा
श्री तेग बहादुर सिंह जी का संक्षिप्त परिचय
गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे, जिनका जन्म 1 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में हुआ था। बचपन में उनका नाम 'त्यागमल' था, लेकिन बाद में उन्होंने योद्धा के रूप में अपनी वीरता दिखाई, जिसके बाद उनका नाम 'तेग बहादुर' (तलवार का धनी) रखा गया। उन्होंने औरंगजेब की जुल्म-ओ-सितम और ज़बरन धर्मांतरण के खिलाफ़ खड़े होकर धार्मिक स्वतंत्रता और मानवीय मूल्यों की रक्षा की, जिसके कारण 1675 में उन्हें दिल्ली में शहीद कर दिया जहां आज गुरूद्वारा शीशगंज साहिब है गुरू तेग बहादुर जी के धड़ का संस्कार गुरू जी का भक्त भाई लखीशाह बंजारा ने ले जाकर अपने घर में रख कर पूरे घर में आग ली थी जहां आज गुरूद्वारा रकाबगंज साहिब है
पंडित कृपाराम कश्मीरी पंडित के नेतृत्व में कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर जी के पास आये थे औरंगजेब द्वारा मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए मजबूर किए जाने के कारण औरंगजेब के अत्याचारों से बचाने की गुहार लगाने आए थे। वे गुरुजी से मदद मांगने आए थे और गुरुजी के पुत्र, नौ वर्षीय गोबिंद सिंह जी के कहने पर गुरु तेग बहादुर जी ने उनकी बात सुनने और कश्मीरी पंडितों से मिलने का निर्णय लिया।
औरंगजेब का अत्याचारः उस समय औरंगजेब ने कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार करते हुए उन्हें जबरन इस्लाम कबूल कराने का आदेश दिया था।
मदद की गुहारः इस अत्याचार से परेशान होकर कश्मीरी पंडितों का एक समूह गुरु तेग बहादुर जी के पास मदद के लिए आया था।
गुरुजी का निर्णयः गुरु तेग बहादुर जी ने अपने पुत्र के प्रेरणादायक शब्दों से प्रभावित होकर, कश्मीरी पंडितों की बात सुनी और उनकी समस्याओं को हल करने का निर्णय लिया, जिसके कारण उन्हें स्वयं बलिदान देना पड़ा।
गुरुगद्दी संभालना
सिखो के आठवें गुरु 'गुरु हरि कृष्ण जी' के ज्योति ज्योत समा जाने से पहले वो सब भक्तों को 'बाबा बकाला' कह कर आप को गुरुगद्दी सौप गए थे। सिखो के नौवें गुरु हुए और आप 44 साल की उम्र में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
धर्म का प्रचार
शांति, क्षमा, सहनशीलता के गुणों वाले गुरु तेग बहादुरजी ने लोगों को प्रेम, धकता, भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने लोगों की सहायता के लिए कुंए खुदवाए, पेड़ लगवाए, और तालाबों की खुदवाई करवाई। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरत्ता से उसे परास्त कर दिया। उनके जीवन का प्रथम दर्शन मही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है।
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी पर तिलक जंजू राखा प्रभ ताका, कीनो बडो कलू महि साका।। साधन हेति इति जिनि करी, सीस दिया पर सी न उचरी।।
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी पर
गुरू तेग बहादुर के चलत भयो जगत को सोक,
है है है सब जग भयो जै जै जै सुर लोक ।
विश्व इतिहास में धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में श्री गुरु तेग बहादुर जी का स्थान अद्वितीय है। सन् 1675 में धर्म की रक्षा के लिए श्री गुरु तेग बहादुर जी को ने अपना बलिदान दिया था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने श्री गुरु तेग बहादुर जी को मौत की सज़ा सुनाई थी, क्योंकि श्री गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम धर्म को अपनाने से इंकार कर दिया था। उन्हें सबसे निस्वार्थ शहीद माना जाता है और उनकी शहादत को हर साल 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सदियो पहले एक ऐसे गुरू आये थे , जो धर्म पताका (झंडा) फहरा गये, दुनिया को धर्म का पाठ पढ़ा कर, धर्म की ही खातिर, वह खुद की बलि चढ़ा गये।











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