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नहीं चाहिए ऐसी बिगड़ी धार्मिकता....▪️ग्राउंड रिपोर्ट : ब्रजेश राजपूत

नहीं चाहिए ऐसी बिगड़ी धार्मिकता....

▪️ग्राउंड रिपोर्ट : ब्रजेश राजपूत

महाशिवरात्रि पर सिहोर के कुबेरेश्वर धाम के आयोजन के में तीन लोगों की मौत,,,
पनाग़र में बागेश्वर धाम के आयोजन में एक बच्ची की दम घुटने से मौत ,,
रामनवमी पर इंदौर के बेलेश्वर झूलेलाल मंदिर में 36 लोगों की मौत ,,
लगातार चल रहा मौतों का ये सिलसिला हमें बता रहा है कि पिछले कुछ सालों में बढ रही धार्मिकता के इस बिगड़े स्वरूप की हम कितनी बडी कीमत चुका रहे है। शायद ये अब हम सबको अहसास हो रहा है कि अचानक हमारे आस पास के मंदिरों में बेतहाशा भीड बढने लगी है।


 सूने पडे मंदिरो में सोमवार की सुबह जल चढ़ाने आने वालों की संख्या बढ गयी है। मंगलवार और शनिवार को आपके मोहल्ले के हनुमान मंदिर पर हनुमान चालीसा का कई घंटों का अखंड पाठ होने लगा है। रामनवमी पर निकलने वाले लंबे जुलूस। नवरात्रि पर निकलती चुनरी यात्राएं। महाशिवरात्रि पर सडकों पर शिव बारात की चल यात्राएं। 


शहर में हर कुछ दिनों में होने वाली कथाएं और उनके विशाल पंडाल। कथावाचकों की विशाल शोभायात्राएं और साधु तपस्वी से ज्यादा उनका मान सम्मान होना। अलग अलग जगहों पर बने धाम के नाम पर मंदिरों में लगने वाली भारी भीड और वहां होने वाली भगदड़ और अव्यवस्थाओं को धर्म के नाम पर सहन करना। बता रहा है कि मेरा देश बदल रहा है और कुछ ज्यादा ही धार्मिक हो रहा है।  




इंदौर हादसे की जड में भी यही बढती धार्मिकता का आक्रामक और बिगड़ा स्वरूप है। जब शहर के सर्वोदय नगर के बेहद छोटे से संकरे मंदिर में नवरात्रि की नवमी के रोज दुर्गा प्रतिमा के सामने हवन करने पटेल नगर और स्नेह नगर के लोग उमड पडे बिना ये जाने की जिस छोटी सी जगह पर बैठकर वो हवन की पूर्णाहुति कर रहे हैं वहां उनको अपनी जिंदगी की आहुति देनी पड जायेगी। दरअसल पटेल नगर के पार्क के सामने की जमीन पर एक छोटा सा महादेव का मंदिर था जिसे श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर ट्रस्ट चलाता था। मंदिर से सटी ही बावडी थी जिसका उपयोग पार्क के पौधों को पानी देने के लिये किया जाता था। मगर ट्रस्ट  की नजर बावड़ी पर थी और कुछ साल में जैसे ही इस बावड़ी का पानी कम हुआ तो इसे लोहे के गर्डर पर सीमेंट बिछाकर ढक कर मंदिर का जीर्णोद्धार का नाम दे दिया गया। अब ये मंदिर शिव मंदिर के साथ ही दुर्गा मंदिर भी हो गया। 

बावड़ी को ढक कर उसके तीन तरफ देवी देवताओं की मूर्तियां रख दी गयीं। बात इतने पर ही नहीं रूकी। कुछ सालों में ही इस मंदिर के पास ही दूसरा बड़ा मंदिर भी ट्रस्ट बनाने लगा अब इसका जब स्थानीय रहवासियों ने विरोध किया तो नगर निगम ने ट्रस्ट को नोटिस भेजे मगर ट्रस्ट से जुडे नेताओं की पैठ बीजेपी में बढ़ते ही ये नोटिस नकारा साबित हो गये। 

पार्क की जमीन पर पहले छोटा मंदिर फिर उससे लगा पार्षद कार्यालय वही एक बड़ा मंदिर और मंदिर के चारों तरफ की फेंसिंग भी लगा कर बडी जमीन कब्जे में कर ली गयी। और ये सब चूंकि पार्क की जमीन पर हो रहा था तो विरोध भी हल्का ही हुआ। नगर निगम के नोटिस के जवाब में ट्रस्ट ने कहा कि ये मंदिर सौ साल पुराना है पार्क से पहले का और जिसका जीर्णोद्धार जनता कर रही है। ट्रस्ट ने ये भी दावा किया कि मंदिर से लगी बावड़ी का बेहतर रखरखाव कर उससे जनता को साफ़ पानी देने की कोशिश की जा रही है। बताया गया कि इस नवरात्रि पर मंदिर से जुडे प्रबंधन ने बोला कि मंदिर की मूर्तियां आने वाले दिनों में नये बन रहे मंदिर में रख दी जायेंगी इसलिये इस बार हवन पूजन भव्य होना चाहिये। 

नवमी के रोज हवन का आयोजन मां दुर्गा की मूर्ति के सामने उसी कंक्रीट की छत पर हुआ जिसके नीचे बावडी दबी थी। पटेल नगर, सर्वोदय नगर और स्नेह नगर के श्रद्धालुओं की भीड हवन में शामिल होने के लिये बढी और लोहे के गर्डर डाल कर बनी पुरानी छत सवा ग्यारह बजे भरभराकर गिर गयी। बस फिर क्या था इस छोटे से मंदिर में अफरा तफरी मच गयी। किसी को ये नहीं मालूम कि कितने लोग गिरे हैं और उनको निकाले कैसे। 


बावडी की दीवार से सटी सीढियां भी थीं कुछ ने उससे उतरने की कोशिश की मगर वो भी टूट रहीं थीं पहले पुलिस फिर नगर निगम के बचाव दल के लोग जब आये तो किसी को ये भी नहीं मालूम था कि इस बावड़ी के कुएं की गहराई कितनी होगी, उसमें पानी है या कीचड़ भरा है। छोटी रस्सियां और सीढ़ियां काम नहीं आयीं। शुरुआत में ऊपर गिरे कुछ लोग निकाले गये तो भोपाल तक सरकार को खबर दी गयी कि सब सुरक्षित हैं 18 लोग निकाल लिये गये हैं और भी जल्द ही निकाल लिये जायेंगे मगर ये क्या जीवित लोग निकलने के बाद जब लाशें निकलने का सिलसिला शुरू हुआ तब जाकर प्रशासन को इस हादसे की भयावहता का अंदाज़ा हुआ। साठ फीट गहरी अंधेरी संकरी से बावड़ी में जब नगर निगम के प्रयास नाकाफी दिखे तब इंदौर के पास महू से सेना को बुलाया गया और शवों की जो गिनती 10 से 15 पर आकर अटक गयी थी वो सुबह होते होते 35 तक जा पहुंची। सुबह करीब सवा ग्यारह बजे उस सुनील सोलंकी का आखिरी शव निकला जो लोगों को बचाने की कोशिश में बावड़ी में जा गिरा था.

अगले दिन इस मंदिर के सामने पटेल नगर की गली के छह घरों से जब बारह लाशें उठीं तो पत्थर दिल इंसान भी पसीज कर सुबक उठे। ये सारे लोग गुजराती समाज के थे जिन्होंने मंदिर के नाम पर हो रहे अतिक्रमण का विरोध किया था जिसका जवाब  ट्रस्ट के लोगों ने नगर निगम को पिछले साल 25 अप्रैल को लिखा  था कि प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार का विरोध किया गया तो उन्माद फैल जायेगा। 


आज मंदिर के आसपास की गलियों में उन्माद तो नहीं शोक फैला है। स्नेह नगर में भी सिंधी समाज के पंद्रह परिवारों ने अपनों को खोया है। शनिवार को जब कांग्रेस के नेता इन गलियों में गये तो शोक संतप्त महिलाओं ने कहा कि इस मंदिर पर बुलडोजर चलना चाहिए क्यूँकि जब जब इस मंदिर की घंटी बजेगी हमारा दुख बढेगा। सरकारी जमीन पर जबरिया कब्जा कर उस पर ऐसे मंदिर निर्माण कर हम कैसा समाज बनाना चाहते है ? इंदौर की दर्दनाक घटना के बाद इस पर गंभीरता से सोचना होगा। 

▪️ब्रजेश राजपूत,  एबीपी न्यूज़, भोपाल



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एडिटर: विनोद आर्य
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