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एक साल पहले क्या हो रहा था इन दिनों…

एक साल पहले क्या हो रहा था इन दिनों…

  ब्रजेश राजपूत/सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट 
कहते हैं पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा इतिहास होता है, 2018 के विधानसभा चुनाव पर लिखी अपनी किताब ' चुनाव है बदलाव का ' के पन्ने पलट रहा हूं, और पिछले  साल इन दिनों का भोपाल में हुआ राजनीतिक घटनाक्रम आंखों के सामने घूमने लगा है। सबसे पहले बात भोपाल में कांग्रेस दफतर इंदिरा भवन की जहाँ पर दिसंबर ग्यारह तारीख को सुबह से ही चहल पहल थी और ये चहल पहल शाम होते होते रौनक और फिर देर रात तक जीत के शोर शराबे खुशी उल्लास में बदल गयी। दफतर में लाइट की चमक दमक और एक तरफ जय जय कमलनाथ तो दूसरी तरफ से अबकी बार सिंधिया सरकार के नारे लग रहे रहे। लगातार आ रहे चुनाव परिणाम दिल की धडकनें बढा रहे थे मगर इधर रात खत्म होने को थी और ये तय नहीं हो पा रहा था कि कौन बनायेगा सरकार, क्योंकि देर रात के परिणाम थे कांग्रेस 112 और बीजेपी 109 बहुमत के जादुई आंकडे 216 से दोनांे दल दूर खडे थे। शायद पहली बार कई घंटे पार्टी दफतर में एक साथ एक छोटे से एंटी चैंबर में गुजारने ओर ढेर सारी ब्लेक काफी पीने के बाद कांग्रेस के जब तीनों दिग्गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया रात ढाई बजे जब अपने अपने घरों को रवाना हुये तो बाहर खडे हम प्रेस के लोगों को बुलाया और दावा कि हमारे पास बहुमत है और हम सरकार बनायेंगे। हमने पूछा कैसे तो जबाव मिला अब ये सुबह बतायेंगे। 
तडके सुबह तक चुनाव परिणाम बदले और दो और सीटें कांग्रेस के खाते में आ गयीं और कांग्रेस पहुंची 114 तक मगर बहुुमत अब भी दूर था हां ये जरूर था कि चार निर्दलीय, दो बीएसपी और एक एसपी जीते थे जिनको कांग्रेस के खेमे में लाने के लिये पार्टी ने अच्छी खासी जमावट कर ली थी। कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है तो गोवा के एपीसोड से मिले सबक के बाद सौ सीटों के पार होते ही कांग्रेस कार्यालय से रात में ही राजभवन फैक्स कर सरकार बनाने के लिये दावा पेश करने का समय भी मांग लिया गया। उधर बीजेपी भी बाजी छोडने के लिये तैयार नहीं थी देर रात में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने टृवीट कर बीजेपी के सरकार बनाने की रेस में होने का दावा किया। उफ क्या दिन था वो जो सुबह आठ बजे से शुरू हुआ तो देर रात तक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। रात में तीन बजे घर पहुंचते पहुंचते भी अगले दिन की तैयारियों में दिमाग लगा हुआ था और अगला दिन भी सुबह जल्दी शुरू हो गया। तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह ने तकरीबन दस बजे टवीट किया ओर कहा कि हम जनमत का सम्मान करेंगे और सरकार नहीं बनायेंगे इस्तीफा देने राजभवन जा रहा हूं अभी। बस फिर क्या था कैमरा लेकर भागे राजभवन जहंा शिवराज अपने काफिले के साथ राजभवन में प्रवेश कर रहे थे, थोडी देर बाद शिवराज दूसरे गेट से निकले तो पहले गेट से कमलनाथ अपने काफिले के साथ राजभवन में दावा पेश करने जा रहे थे। ये सीन आज भी राजभवन के सामने से गुजरते हैं तो याद आता है, पंद्रह साल पुरानी सरकार जा रही है नयी सरकार आ रही है और शिवराज हम कैमरों की भीड देखकर रूक कर मुस्कुराकर कहते हैं बीजेपी की हार की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है मैंने इस्तीफा दे दिया नाव आई एम फ्री। तेरह साल का मुख्यमंत्री अपनी सत्ता राजभवन को सौंप कर घर की ओर रवाना हो गया। उधर कमलनाथ के सिविल लाइंस के घर की सुरक्षा बढा दी गयी प्रशासन को संकेत मिल गये कि प्रदेश के संभावित मुख्यमंत्री अब कमलनाथ ही हैं। मगर क्या कमलनाथ का मुख्यमंत्री बनना इतना आसान था नहीं कांग्रेस आलाकमान के सामने बडा संकट था कमलनाथ और सिंधिया में से किसे चुनें किसे प्रदेश की कमान संभालने को दें, और ये सस्पेंस भी तेरह तारीख को खत्म हुआ जब राहुल गांधी ने अपने टिवटर हेंडल से कमलनाथ और सिंधिया की एक साथ फोटो टवीट की और रूसी लेखक लियो टालस्टाय का क्वोट लिखा दो सबसे बडे लडाके होते हैं धीरज ओर समय,,ऐसा लगा कि राहुल ने अपने दोस्त सिंधिया को धीरज रखने ओर समय का इंतजार करने की सलाह देकर अनुभवी कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपने का फैसला कर लिया जिसका अनुमोदन तेरह तारीख की रात में भोपाल के कांग्रेस दफतर में हुयी विधायक दल की बैठक में किया गया। सच में ये रात भी बडी सस्पेंस भरी थी कयास लग रहे थे कि क्या सिंधिया आसानी से आलाकमान का ये फैसला मानेंगे या फिर दूसरी राह चुनेंगे। अंदर विधायक दल की बैठक चल रही थी ओर बाहर हम टीवी पत्रकार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के उत्साह को झेल रहे थे। खैर ये सस्पेंस भी देर रात खत्म हुआ और हम अगली सुबह हम फिर भोपाल के नूर उस सबाह होटल में थे जहां खबर थी कि सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ मीटिंग कर रहे हैं, मगर यहंा तो अपने विधायकों के महाराज मस्ती के मूड में थे, लाइव के पहले मुझे अपनी जैकेट उतार कर देने की तैयारी करने लगे फिर जब इंटरव्यू पर बैठे तो मुझे फिटनेस पर टिप देने लगे कुल मिलाकर ऐसा लगा कि उन्होंने अपने नेता की धीरज धरने की सलाह मान ली थी। और फिर 17 को ही कमलनाथ सरकार का शपथग्रहण समारोह हुआ जिसमें भी ऐसी ही ढेर सारी बातें हैं जो ' वक्त है बदलाव का' में हैं,,जिनका जिक्र फिर कभी,,                               
ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज,भोपाल 

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