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अंबेडकर विश्वविद्यालय में मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्ववाद शोध पीठ की स्थापना ,मानद आचार्य सुनीता पाठक नियुक्त

अंबेडकर विश्वविद्यालय में मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्ववाद शोध पीठ की स्थापना ,मानद आचार्य सुनीता पाठक नियुक्त 

महू। डॉ बी आर अंबे डकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू ने मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद पर शोध पीठ की स्थापना की है। इस शोध पीठ पर मानद आचार्य के रूप में श्रीमती सुनीता पाठक को नियुक्त किया गया है। सुनीता पाठक मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्ववाद की विगत 23 वर्षों से अध्येता हैं। वे सोमैया विद्या बिहार मुंबई में जीवन विद्या अध्ययन केंद्र में शोध अधिकारी और गांधी विद्या मंदिर में मूल्य शिक्षा प्रकोष्ठ की ओएसडी थीं और आई ए एस ई मान्य विश्वविद्यालय सरदारशहर में चेतना विकास मूल्य शिक्षा विभाग में मूल्य शिक्षा अध्यापन कार्य करती रही है। इससे पूर्व बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल में महिला अध्ययन केंद्र में शोध सहायक के रूप में 'स्त्री एक मानव' शोध परियोजना में कार्यरत रही है। उन्होंने देशभर में अनेक राज्यों में जीवन विद्या शिविरों का प्रबोधन किया है।

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मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद की उद्गम स्थली मध्य प्रदेश नर्मदा नदी के उद्गम अमरकंटक है। श्रद्धेय श्री ए नागराज जी ने 1950 से 2016 तक अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन के रूप में मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्व वाद का प्रतिपादन किया और गहन साधना के द्वारा विभिन्न वांग्मयों की रचना की। 
मध्यस्थ दर्शन  सह अस्तित्ववाद के प्रणेता श्रद्धेय ए. नागराज जी हैं  जिन्होंने आदर्शवाद और भौतिकवाद के विकल्प में अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन मध्यस्थ दर्शन  सह अस्तित्ववाद का प्रतिपादन किया।

उन्होंने द्वंदात्मक भौतिकवाद के विकल्प में समाधानात्मक भौतिकवाद, संघर्षात्मक जनवाद के विकल्प के रूप में "व्यवहारात्मक जनवाद" और रहस्यात्मक अध्यात्मवाद के विकल्प के रूप में "अनुभवात्मक अध्यात्मवाद" का प्रतिपादन किया। 
इसी प्रकार भोगोन्मादी समाजशास्त्र के विकल्प के रूप में "व्यवहारवादी समाजशास्त्र", कामोन्मादी मनोविज्ञान के विकल्प के रूप में "मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान" और लाभोन्मादी अर्थशास्त्र के विकल्प में "आवर्तनशील अर्थशास्त्र" वांग्मय मानव जाति को लोग अर्पित किए।
श्रद्धेय श्री ए  नागराज जी ने मानव अनुभव दर्शन, मानव व्यवहार दर्शन, मानव अभ्यास दर्शन, मानव कर्म दर्शन भी अमूल्य निधि के रूप में मानव जाति को अर्पित किए। उन्होंने परंपरागत आचार संहिता के विकल्प के रूप में मानवीय आचार संहिता रूपी मानवीय संविधान मानव जाति को लोकार्पण किया। 
उपरोक्त सभी दर्शन, वाद, और शास्त्र के आधार पर परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था की अवधारणा को व्यवस्था के विकल्प के रूप में प्रस्तुत  है जिसमें वर्तमान सभी तंत्रों की समस्याओं का समाधान दिखता है। 
मध्यस्थ दर्शन से अस्तित्ववाद के आधार पर शिक्षा के मानवीकरण के प्रयोग देश में अनेक शैक्षणिक संस्थाओं में किए जा रहे हैं यूनिवर्सल ह्यूमन वैल्यू के रूप में एआईसीटीई ने स्टूडेंट इंडक्शन प्रोगाम और अनेक तकनीकी विश्वविद्यालय और इंजीनियरिंग कॉलेज में एक क्रेडिट कोर्स के रूप में पढ़ाया जा रहा है छत्तीसगढ़ सरकार और दिल्ली सरकार ने व्यापक रूप में जीवन विद्या मध्यस्थ दर्शन के आधार पर शिक्षकों को  मूल्य शिक्षा प्रशिक्षण का कार्य किया है।
यह शोध पीठ नागराज जी के अनुसंधान के निष्कर्षों को शिक्षा वस्तु, पाठ्यक्रम निर्माण और अन्य अकादमिक गतिविधियों से जोड़ने का कार्य करेगा।
उनकी नियुक्ति श्री ए नागराज की पुत्री डॉक्टर शारदा शर्मा की अनुशंसा और विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद के अनुमोदन से की गई है।


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