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मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों से युक्त करती है योग आधारित शिक्षा-डाॅ. अजय तिवारी

मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों से युक्त करती है योग आधारित शिक्षा-डाॅ. अजय तिवारी
सागर।स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय में  ''उच्च शिक्षा के संवर्धन का विवेचनात्मक अध्ययन'' विषय पर शिक्षा विभाग द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। दीप प्रज्जवलन के अवसर पर स्वास्ति वाचन डाॅ. सुकदेव बाजपेयी नेे किया। विवि केेके  प्रबंध निर्देशक डाॅ.अनिल तिवारी नेे  कहा कियोग के समग्र सत्य को समझने और उसके अनुसार जीने की कला ही सही शिक्षा है, अन्यथा हम जीवन के सत्य और वैश्विक सत्य से वंचित रह जाते हैं। यदि हम योग के व्यक्तिक और पारिवारिक एवं सामाजिक सत्यों का पूरी ईमानदारी के साथ मूल्यांकन करेंगे तो व्यष्टि से समष्टि की ओर जायेंगे और यही मानवीय चेतना का मूल स्वभाव है। 
 संगोष्ठी का औचित्य बताते हुए श्रीमति बिन्दु दुबे ने कहा की योग एक मात्र वह साधन है, जो छात्रों को नियंत्रण एवं व्यवस्थित प्रणाली में कार्य करने की प्रेरणा देता है। जिससे स्वस्थ्य मन एकाग्रता शांति का अनुभव करता है। स्वस्थ्य जीवन एवं निरोग रहने के लिए योग सर्वोत्तम साधन है। क्योंकि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मस्तिष्क होता है। 
अहमदाबाद से पधारे डाॅ.सुरेन्द्र पाठक ने कहा- सनातन परंपरा अतियुग प्राचीन काल से प्रवाहमान है। संघर्ष से तनाव आता है। वात्सल्य, प्रेम, मुदिता से विकास होता है। भौतिकवादी (पाश्चात्य) परंपरा एवं उसकी मानसिकता मनुष्य को व्यक्तिवादी बनाती हैं अतिविश्वास की अवधारणा आ जाने से मनुष्य मूल्यों से दूर हो जाता है। ज्ञान में मांसा के अनुसार सत्यम, ज्ञानम, आनंदम इति ब्रहृा। चित्त की शुद्धि के द्वारा हम आत्मसाक्षात्कार करते हैं। और शिक्षा संस्कार व्यवस्था के द्वारा हमारी मानसिक स्थिति का सुधार करती है। शिक्षा का धर्म है छात्र की रूचि के अनुसार उसके लक्ष्य निर्धारण में ध्येय तक पहुँचने का साधन बने योग में हीन भावना नहीं है। 
योगाचार्य श्री विष्णु आर्य ने इस विषय पर बोलते हुए कहा- योग के प्रतिदिन अभ्यास से हमारे जीवन के सभी अभ्यास श्रेष्ठ परिष्कृत और दिव्य हो जाते है। नियमित योगाभ्यास ही स्वस्थ्य समृद्ध एवं आदर्श जीवन का आधार है। ओर सत्य कहें तो यही जीवन का लक्ष्य है। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलाधिपति डाॅ.अजय तिवारी ने कहा कि मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों से युक्त करती है योग आधारित शिक्षा मनष्ुय प्रकृति या परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है और मनुष्य के पिण्ड व ब्रह्याण्ड में बीज रूप में जो सम्पूर्ण ज्ञान, संवेदना, सामथ्र्य, पुरूषार्थ, सुख शान्ति व आनन्द सन्निहित है, उसका पूर्ण प्रकरीकरण व जागरण केवल योगविद्या एवं योगाभ्यास से ही संभव है। आज विश्व समुदाय के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौतियां है, हिंसा, अपराध, आतंकवाद, युद्ध, नशा, भ्रष्ट आचरण व भ्रष्टाचार, विचारधाराओं का चरम संघर्ष, अन्याय, अमानवीय असमानता, स्वार्थपरता, अहंकार एवं अकर्मण्यता और इन सबका समाधान है, योग विद्या - अध्यात्म विद्या का समग्रबोध, योग का नियमित अभ्यास एवं योगमय दिव्य श्रेष्ठ आचरण। छात्रों ने संगोष्ठी में सहभागिता की। श्रीमति अंतिमा शर्मा एवं डाॅ.आषुतोष शर्मा ने मंच संचालन किया। 
मंच को शोभायमान डाॅ.सुनीता जैन, डाॅ.दीप्ती शुक्ला, साथ ही सभागार में डाॅ.राकेश गौतम, डाॅ.दिनेश सिंह, श्रीमति नेहा दुबे, डाॅ.सुनीता दीक्षित, एवं सभी छात्र, छात्रा उपस्थित रहे। आभार ज्ञापन डाॅ.सुकदेव बाजपेयी के द्वारा किया गया। शांतिमंत्र के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।
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