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सुख परमात्मा की देन दुख स्वयं मनुष्य की उपज : देवदास जी महाराज

सुख परमात्मा की देन दुख स्वयं मनुष्य की उपज : देवदास जी महाराज

तीनबत्ती न्यूज : 23 फरवरी,2024
सागर: भोपाल बीना बाईपास बम्होरी रेंगुवा स्थित होटल रियार्थ इन में आयोजित तीन दिवसीय कथा प्रवचन के द्वितीय दिवस पूज्य संत श्री देवदास जी महाराज ने मनुष्य जीवन के कर्तव्य का आख्यान सुनाते हुए कहा कि भगवान किसी को जन्म से दुख नही देते पर जन्म के बाद ऐसा कोई मनुष्य नही जिसको दुख नही कारण संसार के मायाजाल में मानव परमात्मा को विस्मृत कर देता है यदि परमात्मा से जुड़ा रहे तो कोई दुखी नही सभी सुखी हैं।संसार में ऐसा कोई मनुष्य आज तक नही जन्मा जिसको कोई दुख ना हुआ हो किंतु दुख का एहसास ना होना ही सुख है। 

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उन्होंने कहा की दुख मनुष्य को अपने करीबियों से ही मिलता है करीबी रिश्तेदार हों या परिवार के लोग या मित्र इनसे ही दुख मिलता है सभी ग्रंथो का सार रामचरित मानस में हैं और तुलसीदास जी ने मानस में लिखा है *बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद ग्रंथन गावा*।। चौरासी लाख योनियों में पड़ने के बाद मानुष शरीर मिलता है ये तुलसी बाबा लिख रहे सभी ग्रंथ कहते हैं और मनुष्य का जीवन ही सुख से परिपूर्ण होता है यानी भगवान ने आपको सुख भोगने ही मनुष्य का जन्म दिया जिसके लिए देवता भी तरसते हैं पर हमने चुगली निंदा और ईर्ष्या में गवा दिया सुख का रसास्वादन किया ही नहीं। जब बुढ़ापा आता है तो डंडा छड़ी के सहारे उठते बैठते राम राम कहने की बारी सबकी आने वाली है इसलिए उस अवस्था के पहले राम नाम जपने की आदत डाल लो ,जागते सोते खाते समय चलते हुए जीवन के किसी भी मोड़ पर राम राम कहोगे तो बुढ़ापा अच्छे से गुजरेगा और राम नाम सत्य भी अच्छे से होगा।


गृह कारण नाना जंजाला,ते अति दुर्गम शैल विशाला
महाराज श्री ने ग्रहस्थ जीवन को समझाते हुए कहा कि ब्रह्मचारी से त्यागी से भी कथित यदि कोई है तो वो सर्व सुविधायुक्त होने के बाद भी  ग्रहस्थ जीवन है और गृहस्थी की शेल अर्थात पर्वत रूपी चट्टान इतनी विशाल है जिसको पार करना बहुत कठिन हैं संसार में दुख ही दुख व्याप्त है यदि सुख की चेष्ठा करते हो तो भगवान का चिंतन करना पड़ेगा भगवान के चिंतन बगैर गृहस्थी का पर्वत पार करना संभव नहीं है प्रभु के भजन से सारी थकान मिट जाती है आत्मिक आनंद मिलता है इसे ही सुख कहा जाता है।

चिन्मय स्वरूप थे बाबा देवरहा
जो भी मनुष्य भगवान से कुछ याचना किए बगैर सदा भगवान का चिंतन करता है ईश्वर तुल्य ही हो जाता है बाबा देवरहा बाबा भी भी ऐसे ही ईश्वर अनुगामी थे। सत्य का अनुसरण करना चित्त प्रभु में मग्न रखना और प्रसन्न रहना दूसरो को प्रसन्न करना इसे ही चिन्मय आनंद कहा जाता है ऐसे ही आत्म ज्ञानी ब्रह्मलीन बाबा देवरहा जी थे। सागर में बाबा की स्थापना होना यहां के लोगों का सौभाग्य है।आज शनिवार को प्रवचन के साथ पंडाल में फूलो की होली और हवन पूर्णाहूति होगी।

ये रहे मोजूद

प्रवचन सुनने पंडाल में यजमान प्रतापनारायण दुबे,अजय दुबे,मोनी बाबा, डॉ सुखदेव मिश्रा,अंकलेश्वर दुबे, गोलू रिछारिया,सुनील श्रीवास्तव,पप्पू तिवारी, राजकुमार सुमरेड़ी,डॉ एस एन मौर्य, भरत तिवारी,संजय चौबे,शिवप्रसाद तिवारी,कपिल स्वामी,अनुज परिहार,राम शर्मा,उदय प्रताप सिंह, के एम दुबे, रविशंकर दुबे,श्याम मनोहर पचौरी, भगवत पाठक,विजय ठाकुर,सुनील श्रीवास्तव,चंदू सोनी,राजू सोनकिया, दीनानाथ मिश्रा, अनिल भट्ट, राघवेन्द्र नायक, अंकित दुबे, राजेंद्र गर्ग, सहित बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित थी।




एडिटर: विनोद आर्य
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+91 94244 37885

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