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इतना सन्नाटा क्यों है भाई....... ब्रजेश राजपूत/ सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट

इतना सन्नाटा क्यों है भाई....... 
ब्रजेश राजपूत/ सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट 
पहले एक दिन का जनता कफर्यू, फिर २१ दिन का करोना कफर्यू और इसी दरम्यान चौदह दिन के सेल्फ आइसोलेशन के चलते घर से निकलना बिलकुल ही कम हो गया है। मगर जब निकलो तो हर ओर सिवाय सन्नाटे के कुछ नहीं हैं। ये सन्नाटे का शांति काल है। जब घर के आसपास की लंबी लंबी सडकों पर दूर दूर तक कोई वाहन नहीं दिखता। ना लोग है और ना ही कोई शोर है। मोहल्ले की सूनी सडकों पर भी आवागमन तकरीबन ठप है। जिन गलियों में कभी बच्चों का शोर नहीं थमता था वहां दिन भर में एक बार ही ये सन्नाटा टूटता है जब गाडी वाला आया जरा कचरा निकाल का गाना बजाते हुये नगर निगम के सफाई कर्मचारी आते हैं। 
भोपाल के सरकारी मोहल्लों में अच्छी सफाई हो रही है, कचरा कम निकल रहा, घरों के आसपास का माहौल साफ सुथरा है बाहर आसमान साफ है  प्रदूपण गायब हुआ तो हवा भी स्वच्छ है। घरों के आसपास चिडियों और पंक्षियों की मधुर आवाजें सुनायी देती हैं तो घरों  के अंदर से रामायण और महाभारत के डायलाग्स की आवाजें आने लगीं है। रामायण में संगीतकार गायक रवींद्र जैन की तीखी आवाज के भजन गीत और चौपाईयां सुनने मिल रहीं हैं तो महाभारत में गायक महेंद्र कपूर की अलग सी भारी आवाजें कानों में रोज सुनाई पडनेे लगी हैं। बच्चे रामायण और महाभारत काल की साफ स्वच्छ हिंदी सुनकर अपनी हिंदी सुधारने में लग गये हैं। लोेग घरों में है, दफतर जाना नहीं है इसलिये परिवार के साथ दिन भर खाने और पकाने के कार्यक्रम चलते रहते हैं। बच्चों को पढाई से लंबी फुरसत मिल गयी है। वो सारे बच्चे जो रोज सुबह स्कूल ओर शाम को कोचिंग जाकर आने वाले दिनों में कठिन परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे थे अब एकदम रिलेक्स हो गये हैं। सारी तैयारियां ठंडे बस्ते में हैं। ये ऐसे दिन हैं जिनकी कल्पना कुछ दिनों पहले तक लोग काल्पनिक निबंध लिखने तक में नहीं कर सकते थे।  

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और ऐसे में यदि आपको अस्पताल जाना पड जाये तो ये बुरी कल्पना किसी बददुआ से कम नहीं है मगर किसी काम से मेरा घर के पास की अस्पताल में जाना हुआ तो वहां का नजारा भी बदला हुआ था। जिस अस्पताल में अक्सर शाम के वक्त पैर रखने को जगह नहीं मिलती थी वहंा बैठने के सोफे खाली पडे हैं एक दो मरीज अपनी फाइल लेकर डाक्टर से मिलने को बैठे हैं। रिसेप्यशन पर कोरोना का असर था। सोशल डिस्टेंसिंग करने के लिये एक बाड लगा दी गयी थी यानिकी लोग दूर से ही बात करें। उधर आईसीयू में भी वीरानी छायी है, जहां अंदर जाने के लिये लोग गार्ड से हुज्जत करते थे, जूतों चप्पलों की भीड दरवाजे पर पडी रहती थी। वहंा अब अंदर जाने की कोई रोक टोक नहीं। अंदर भी तो वहीं सन्नाटा है। जहां कभी एक बेड खाली नहीं होता था वहां इस वक्त एकाध बिस्तर पर ही मरीज लेटा है और उसके आसपास ना तो रिश्तेदारों की भीड भाड है और ना ही हर कुछ घंटों में आकर दवा खिलाने और इंजेक्शन लगाने वाले पैरामेडिकल स्टाफ की। 
मैंने वहां स्टाफ से पूछा इतना सन्नाटा क्यों है भाई उसने हंसकर जबाव दिया ये करोना काल है लोग छोटी छोटी हेल्थ समस्याओं को लेकर घरों से नहीं निकल रहे। सब घरों में है आराम से परिवार के साथ दिल दिमाग को सुकून है तो फिर काहे की बीमारी और बीमारी बाँटने वाले रेस्तरां होटल बंद है लोग घरांे में बन रहा ताजा खाना खा रहे  हैं तो छोटी मोटी बीमारी से वैसे ही बचे हुये हैं। अस्पताल में बनी दवा की दुकान भी सूनी पडी है। हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं दवा देने वाले कभी जिनके पैसे लेने और वापस देने में हाथ नहीं रूकते थे वो अब मोबाइल के वाटसएप् और टिक टाक देखने में व्यस्त हैं। 
एक दिन में करीब सौ से ज्यादा मरीज देखने वाले अस्पताल के डाक्टर पंकज अग्रवाल खुद ये हालत देखकर हैरान हैं उनका कहना था कि भाई मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा खालीपन नहीं देखा। ओपीडी तो छोडिये कोई इमरजेंसी भी नहीं आ रही। किसी को दिल का दौरा नहीं पड रहा, किसी की ब्लड सुगर नहीं बढी और ना ही किसी का बीपी उपर नीचे हो रहा है आखिर ये हो क्या रहा है ऐसा लग रहा है जैसे राम राज सा आ गया। पहले सर्दी खासी बुखार वाले रोज आते थे आजकल वो भी एकदम कम हो गये है भला ऐसा क्यों हो रहा है समझ से परे है। 
मगर सच ये है कि बडा दर्द छोटे दर्द को भुला देता है। बडी तकलीफ में आदमी छोटी तकलीफ भूल जाता है। करोना के आगे  सारी बीमारियां छोटी हो गयी हैं ऐसा लगता है। पर ऐसा नहीं है ये हालत ऐसे ही बने रहेंगे। जैसे ही घरों से निकलने और बाजार रेस्तरां खुलने की छूट मिलेगी लोग अपनी सालों पुरानी आदतों पर आ जायेंगे और बीमारियों से दोस्ती कर फिर अस्पताल आने लगेगे। 

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सामान्य जिंदगी जीने से लोग तनाव और बीमारियों से दूर रहते हैं ये बात मुझसे बहूत पहले किसी कुंभ में उन बाबा ने बतायी थी जिनके दरवाजे पर तनावमुक्त जिंदगी जीने की आकांक्षा रखने वाले देशी विदेशी भक्तों की भीड लगी रहती थी। जब मैंने पूछा कि इनकी जिंदगी में शांति भरने के लिये आपको बहुत मेहनत करनी पडती होगी तो वो मुस्कुरा कर बोले जरा भी नहीं सरल और सामान्य जिंदगी जीने के पाठ पढाते है और ये देखते ही देखते ठीक हो जाते हैं।  सच है सबसे मुश्किल है सरल ओर सामान्य होना ये करोना काल हमें ये सिखा कर जायेगा यदि हम सीख सकंे तो।   

ब्रजेश राजपूत,एबीपी न्यूज भोपाल
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