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मन मस्तिष्क में सौम्यता एवं सरलता का भाव लाता है योग- कुलपति★ वर्तमान में योग एवं यज्ञ आधारित संस्कृति की आवश्यकता : योगाचार्य विष्णु आर्य

मन मस्तिष्क में सौम्यता एवं सरलता का भाव लाता है योग- कुलपति 
★ वर्तमान में योग एवं यज्ञ आधारित संस्कृति की आवश्यकता : योगाचार्य विष्णु आर्य



सागर ।योग वह तरंगें पैदा करने वाली विद्या है जिससे मन एवं मस्तिष्क में सौम्यता एवं सरलता का भाव उत्पन्न होता है। यदि मनुष्य में सौम्यता एवं सरलता आ जाती है तो मानवता का उद्धार होता है। मानवता के उद्धार के लिये योग को जीवन का अंग बनाना होगा। उक्त उद्गार प्रो. नीलिमा गुप्ता- कुलपति डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ने मानवता के लिए योग विषय पर बीस दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन के अवसर पर व्यक्त किए। प्रो. गुप्ता ने आगे कहा सर्वप्रथम हमें एक श्रेष्ठ व्यक्ति बनना होगा, श्रेष्ठ व्यक्ति से एक व्यक्तित्व का निर्माण होता है और व्यक्तित्व से मानवता विकसित होती है और इसके लिए भारतीय योग परंपरा की अनुशासित जीवन पद्धति सबसे अचूक उपाय है। हमें अपनी इस विद्या का प्रचार प्रसार एवं संवर्धन करना पड़ेगा तभी हम मानवता के लिये अपना योगदान दे पायेंगे।



वर्तमान में योग एवं यज्ञ आधारित संस्कृति की आवश्यकता : योगाचार्य विष्णु आर्य


कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि योगाचार्य विष्णु आर्य ने कहा कि समाज ने जब से योग और यज्ञ को छोड़ा तभी से विकृतियाँ एवं विषमताएँ बढ़ने लगी । इसके परिणामस्वरूप हमारे संस्कार एवं संस्कृति विलुप्त हो गये। यही मानवता के ह्रास का कारण बना। हमें पुनः योग एवं यज्ञआधारित संस्कृति की ओर लौटनाहोगा तभी मानवता की जड़े मजबूत होंगी। श्री आर्य ने श्री हनुमान जी के लंका प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि श्री ने उनसे सीता का पता लगाने को कहा था परंतु परिस्थिति अनुसार श्री हनुमान ने समुद्र लाँघा, लंका में युद्ध किया, लंका को जलाया, आवश्यकता हुई तो बंदी बने, सीता से श्री राम के लिये
चूडीमणि ली, इस प्रकार विभिन्न कार्यकलाप किए जो आवश्यक थे। विद्यार्थीयों का आवाहन करने हुए श्री आर्य ने उन्हें भी अपनी क्षमताओं को पहचानने और उपयोग करने का सफलता का मंत्र सिखाया ।

योग जीवन का परिष्कार करने की विद्या है

प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि मनुष्य के जीवन में संकल्प, समर्पण एवं निष्ठा बनी रहनी चाहिए। योग विषय ज्ञान को व्यवहार आचार विचार में उतारने एवं पालन करने की विद्या है। योग जीवन का परिष्कार करने की विद्या है। 

कार्यशाला का उद्देश्य विश्व शांति, मानव जीवन का विकास एवं पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करना है 
स्वागत भाषण देते हुए योग विभागाध्यक्ष प्रो. गणेश गिरी ने कहा कि यह कार्यशाला आगामी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के परिप्रेक्ष्य में आयोजित की जा रही है। इस कार्यशाला का उद्देश्य विश्व शांति, मानव जीवन का
विकास एवं पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करना है। विश्वविद्यालय के योग केन्द्र एवं ध्यान केन्द्र के संयुक्त तत्त्वाधानमें इस कार्यशाला में आधुनिक परिप्रेक्ष्य में योग परंपराएँ तथा मानवता के लिए योग विषय पर इस
कार्यशाला में देशभर के जान माने योग विशेषज्ञ व्याख्यान देंगे। 


आयुष मंत्रालय द्वारा योग दिवस का निर्धारित प्रोटोकाल का अभ्यास प्रतिदिन कराया जायेगा। साथ ही क्विजए रंगोली, भाषण, निबंध प्रतियोगिताएँ एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जायेगें।

कार्यक्रम के प्रारंभ में छात्रा अनुराधा सोनी ने आदियोगी की स्तुति प्रस्तुत की । विद्यार्थीयों ने योगाभ्यास की प्रदर्शन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अरूण कुमार साव ने तथा आभार ज्ञापन डॉ. नितिन कोरपाल ने किया।

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